पाकिस्तान की माइनॉरिटी कॉकस की संसदीय समिति को पेश की गई एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मुल्क में मौजूद 1,817 हिंदू मंदिरों और सिख गुरुद्वारों में से सिर्फ 37 ही आज सक्रिय हैं. यह 1947 के विभाजन के बाद अल्पसंख्यक समुदायों के पलायन और सरकारी दमन व उदासीनता का परिणाम है.
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में हुई बैठक में साझा किए गए इस डेटा से पता चलता है कि इन पवित्र स्थलों में से ज्यादातर ढहने की कगार पर हैं. रखरखाव के लिए फंड की कमी और स्थानीय अल्पसंख्यक आबादी के तेजी से घटने के कारण कई मंदिर और गुरुद्वारे जर्जर हालत में पहुंच चुके हैं.
मंदिरों पर मंडरा रहा अतिक्रमण का खतरा
समिति के प्रमुख सदस्यों में से एक केसूमल खेल दास ने कहा कि विभाजन के समय हिंदू और सिख बड़ी संख्या में भारत चले गए थे, जिसके बाद इन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सुनसान छोड़ दिया गया. अब ये जगहें अतिक्रमण और तोड़फोड़ के खतरे में हैं.
उन्होंने सरकार से मांग की कि इन स्थलों को राष्ट्रीय धरोहर मानते हुए इनके संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए और उन्हें भारत समेत दुनिया भर के श्रद्धालुओं के लिए दोबारा खोला जाए, ताकि इंटरफेथ टूरिज़्म को बढ़ावा मिल सके और आपसी समझ भी मजबूत हो.
स्कूलों में पढ़ाया जा रहा 'हेट मटेरियल'
रिपोर्ट में शिक्षा प्रणाली में फैली उन खामियों को भी चिन्हित किया गया है, जहां स्कूलों के पाठ्यक्रम में ऐसा 'हेट मटेरियल' मौजूद है जो अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव को बढ़ावा देता है. पाकिस्तान की 24 करोड़ आबादी में लगभग 4% अल्पसंख्यक हैं- जिनमें हिंदू 1.6%, ईसाई 1.3% और अहमदी 0.2% शामिल हैं.