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साइकिल से भी स्लो चलती है भारत की ये ट्रेन, लेकिन इसके दीवाने हैं दुनिया भर के टूरिस्ट

तेज रफ्तार के जमाने में भी एक ट्रेन है जो साइकिल से धीमी चलती है, लेकिन दिलों पर तेजी से राज करती है. यही धीमापन इसे भारत की सबसे खूबसूरत ट्रेन बनाता है. यही वजह है कि हर साल देश-विदेश से लोग सिर्फ इसके सफर का एहसास लेने पहुंचते हैं.

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साइकिल से धीमी ट्रेन (Photo: Pixabay)
साइकिल से धीमी ट्रेन (Photo: Pixabay)

आजकल वंदे भारत जैसी ट्रेनें सुपर-स्पीड से दौड़ रही हैं, लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी ट्रेन भी है, जो हमें पुराने जमाने की याद दिलाती है. यह ट्रेन इतनी धीमी चलती है कि शहर का कोई साइकिल सवार भी इससे तेज निकल जाए. जी हां, हम बात कर रहे हैं मेट्टुपालयम से ऊटी जाने वाली नीलगिरि पैसेंजर की.

यह ट्रेन एक घंटे में मुश्किल से 9 किलोमीटर का सफर तय करती है. सोचिए, 46 किलोमीटर की दूरी तय करने में इसे पूरे 5 घंटे लग जाते हैं. लेकिन इसकी यही धीमी रफ्तार इसे भारत की सबसे खास और रोमांटिक ट्रेन बनाती है, जिसके दीवाने सिर्फ देसी नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटक भी हैं.

भारत की सबसे धीमी ट्रेन

तमिलनाडु में चलने वाली मेट्टूपालयम–ऊटी टॉय ट्रेन देश की सबसे धीमी पैसेंजर ट्रेन मानी जाती है. पूरा सफर सिर्फ 46 किलोमीटर का है, लेकिन ये दूरी तय करने में करीब 5 घंटे लग जाते हैं. यानी स्पीड बस 9 किमी प्रति घंटा. आज जब लोग 200 की रफ्तार वाली ट्रेन पर चर्चा करते हैं, यह ट्रेन पहाड़ों पर एक-एक कदम चढ़ती हुई आगे बढ़ती है और यही स्लो सफर इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती है. खिड़की से बादलों को धीरे-धीरे गुजरते देखना, जंगल के बीच अचानक सुरंग खुलना, रास्ते में छोटे-छोटे झरने... ये सब मिलकर इस सफर को यात्रा से ज्यादा एक एहसास बना देते हैं.

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150 साल पुरानी कहानी

इस लाइन का सपना 1854 में देखा गया था. हालांकि पहाड़ काटकर रेल लाइन बनाना आसान नहीं था. इंजीनियरिंग की बड़ी चुनौती थी. यही वजह है कि निर्माण शुरू होने में 40 साल लग गए. 1891 में काम शुरू हुआ और 1908 में ये पूरा रास्ता तैयार हुआ. सोचिए, आज से 100 से ज्यादा साल पहले पहाड़ों पर इतनी शानदार रेलवे लाइन बनाई गई. इसलिए इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा मिला है. ये भारत की उन तीन माउंटेन रेल में से एक है, जिनकी दुनिया तारीफ करती है.

5 घंटे का सफर में अनगिनत नजारे

यह ट्रेन देश की सबसे तेज चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस से लगभग 18 गुना धीमी है. लेकिन जो लोग इसकी नीली बोगियों में सफर करते हैं, उनके लिए समय ठहर सा जाता है. मेट्टुपालयम से ऊटी (उधगमंडलम) तक का यह सफर 5 घंटे में पूरा होता है, लेकिन यात्री शिकायत नहीं करते. क्योंकि उनकी खिड़कियों से दिखती है धुंध भरी घाटियां, ऊंचे-ऊंचे यूकेलिप्टस के जंगल और पहाड़ों पर बनी सीढ़ीदार ढलानें.

यह ट्रेन मैदानों से शुरू होती है और ऊंचाई पर चढ़ती जाती है. इस पूरे रास्ते में यह ट्रेन 208 मोड़ों, 250 पुलों और 16 सुरंगों से गुजरती है. इस दौरान हर मिनट एक नया और खूबसूरत नजारा मिलता है. कई लोग इस सफर को 'पहाड़ों के बीच चलता-फिरता संग्रहालय' कहते हैं, क्योंकि इसके डिब्बे और गियर की आवाज एक अलग ही एहसास देती है.

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टिकट और टाइमिंग 

यह टॉय ट्रेन कल्लर, कुन्नूर, वेलिंगटन और लव्डेल जैसे खूबसूरत स्टेशनों से होकर गुजरती है और आखिर में ऊटी पहुंचती है. इस खड़ी चढ़ाई को पार करने के लिए इसमें एक ख़ास 'रैक-एंड-पिनियन' सिस्टम लगा हुआ है, जो इसे फिसलने से बचाता है, जो कि इसकी इंजीनियरिंग का एक कमाल है. अगर आप इस ट्रेन में सफर करना चाहते हैं, तो यह सुबह 7:10 बजे मेट्टुपालयम से चलती है और दोपहर तक ऊटी पहुंच जाती है. वापसी में, यह दोपहर 2 बजे ऊटी से रवाना होकर शाम 5:35 बजे मेट्टुपालयम पहुंचती है.

इस ऐतिहासिक सफर के लिए टिकट की कीमत भी बहुत ज्यादा नहीं है. प्रथम श्रेणी (First Class) टिकट का दाम करीब ₹600 है, जबकि द्वितीय श्रेणी टिकट प्रथम श्रेणी के मुकाबले आधी कीमत पर मिलती है. 

यही वजह है कि यह सफर सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने का जरिया नहीं है, बल्कि यह समय में पीछे जाने और प्रकृति को धीमे-धीमे महसूस करने का एक शानदार अनुभव है.

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