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सालों का अपमान और अब 8.40 करोड़... कश्मीर के आकिब नबी ने जीत ली IPL की दौड़

आकिब नबी डार का आईपीएल तक का सफर संघर्ष, धैर्य और घरेलू क्रिकेट में निरंतर प्रदर्शन की मिसाल है. बारामूला से निकलकर उन्होंने संसाधनों की कमी, कई आईपीएल फ्रेंचाइजियों द्वारा ठुकराए जाने और शुरुआती असफलताओं का सामना किया...

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आकिब नबी की IPL तक की जिद्दी उड़ान. (Photo, PTI)
आकिब नबी की IPL तक की जिद्दी उड़ान. (Photo, PTI)

जिस पल दिल्ली कैपिटल्स (DC) के लिए नई गेंद हाथ में लेकर आकिब नबी डार दौड़ेंगे और सामने मिचेल स्टार्क खड़े होंगे, उस पल सिर्फ एक ओवर शुरू नहीं होगा- उस पल बारामूला की गलियों में दबा एक सपना सांस लेगा. यह आईपीएल का मैदान होगा, लेकिन आकिब के लिए वह हर ‘ना’, हर नकार और हर अकेली शाम का जवाब होगा.

अबू धाबी के ऑक्शन हॉल में जब बोली 8.40 करोड़ रुपये पर थमी, तो यह सिर्फ एक नंबर नहीं था. यह उन पांच-छह सालों का हिसाब था, जब आकिब हर ट्रायल से खाली हाथ लौटे. 30 लाख रु. के बेस प्राइस से 28 गुना उछाल- यह किस्मत की छलांग नहीं, बल्कि सब्र की कमाई थी.

हर दरवाजे पर दस्तक, हर बार खामोशी

मुंबई इंडियंस, राजस्थान रॉयल्स, कोलकाता नाइट राइडर्स, गुजरात टाइटन्स, सनराइजर्स हैदराबाद- नाम बड़े थे, जवाब छोटे. हर ट्रायल के बाद वही सवाल- 'क्या मुझमें कुछ कमी है?' पिछले साल दिल्ली कैपिटल्स ने बुलाया भी, लेकिन राज्य कैंप ने मौका छीन लिया. इस बार, जब नाम पुकारा गया, तो कई टीमों ने फिर नजरें फेर लीं- लेकिन दिल्ली रुकी, बोली बढ़ाई और भरोसा जताया.

29 साल के हो चुके आकिब का क्रिकेट किसी चमकदार अकादमी से नहीं निकला. यह गली क्रिकेट था- टेनिस बॉल, टूटे बैट और असमान जमीन... न सही मैदान, न सही जूते. उन्हें यह तक नहीं पता था कि तेज गेंदबाज को स्पाइक्स चाहिए होते हैं.

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जम्मू में पहला जेकेसीए ट्रायल... पैरों में 500 के स्पोर्ट्स शूज, सामने वो लड़के- जिनके पास किट, कोच और आत्मविश्वास था. आकिब ने सीनियर से स्पाइक्स उधार लिए, गेंद डाली और नाम नहीं आया. उस दिन सिर्फ चयन नहीं टूटा, भरोसा भी डगमगाया.

घर में पढ़ाई से समझौता नहीं होता था. पिता गुलाम नबी डार सरकारी स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाते हैं. बेटा डॉक्टर बने- यही सपना था. क्रिकेट से नाराजगी थी, चिंता थी, डर था. अंडर-19 में चयन हुआ तो पिता का दिल पिघला. आज वही पिता सबसे बड़े प्रशंसक हैं.

आखिरी साल... और टूटी उम्मीदों से निकली राह

2016 में अंडर-19 का आखिरी साल... एकदिवसीय नहीं, चार दिवसीय क्रिकेट. कूच बिहार ट्रॉफी ने उन्हें वह मौका दिया, जिसे वह छोड़ नहीं सकते थे. इसके बाद भी रास्ता आसान नहीं था- चोटें आईं, मौके रुके, लेकिन आकिब रुके नहीं.

2024- 25 रणजी ट्रॉफी... 8 मैच, 44 विकेट. हर रन-अप के साथ एक सवाल- 'अब भी अनदेखा करोगे? क्वार्टर फाइनल में केरल के खिलाफ एक रन से बाहर होना दिल तोड़ गया, लेकिन औक़िब की पहचान बन चुकी थी.

7/24 और एक चीख, जो सबने सुनी

राजस्थान के खिलाफ 7 रन देकर 24 विकेट- यह आंकड़ा नहीं, एक ऐलान था. 2025–26 रणजी के पहले हिस्से में टॉप-5 विकेट टेकरों में अकेले सीम गेंदबाज अब नजरें हटाना मुश्किल था.

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सैयद मुश्ताक अली में सात मैच, 15 विकेट. मध्य प्रदेश के खिलाफ 21 गेंदों में 32 रन और फिर तीन विकेट- मानो कहना हो, 'मैं सिर्फ गेंदबाज नहीं हूं.'

कोच ने कुछ नहीं बदला- बस आत्मविश्वास लौटाया. इनस्विंग सीखी, डर छोड़ा और गेंद से बात होने लगी. कश्मीर का ‘डेल स्टेन’ अब उपनाम नहीं... यह उस लड़के की पहचान है, जिसने हार मानने से इनकार कर दिया.

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