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Indresh Upadhyay: शाम के समय कौन से 5 कार्य नहीं करने चाहिए? कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय से जानें

Indresh Upadhyay: हाल ही में कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने जयपुर में शिप्रा शर्मा संग विवाह रचाया, जिसकी वजह से उनके कई पुराने प्रवचन वायरल हो रहे हैं. उन्हीं में से एक है शाम के कौन से 5 काम नहीं करने चाहिए.

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शाम के समय न करें ये कार्य कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने बताया (Photo: instagram/bhaktipath)
शाम के समय न करें ये कार्य कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने बताया (Photo: instagram/bhaktipath)

Indresh Upadhyay Marriage: वृंदावन-मथुरा के जाने माने कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने 5 दिसंबर, शुक्रवार को शिप्रा शर्मा संग सात फेरे लिए. इनका विवाह जयपुर में संपन्न हुआ और जिसमें देश के जाने-माने कथावाचक, साधु-संत भी पहुंचे थे. कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय का वैदिक विवाह हुआ था जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब तेजी से वायरल हो रही हैं. विवाह के कारण अब इंद्रेश उपाध्याय जी के कई पुराने प्रवचन के विडियो सामने आ रहे हैं. दरअसल, उन्होंने अपने एक प्रवचन में बताया था कि शाम के समय कौन से कार्य नहीं करने चाहिए. तो चलिए जानते हैं उन कार्यों के बारे में. 

सोना नहीं चाहिए

कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने अपने प्रवचन में बताया था कि पृथ्वी पर सबके आगमन का समय निश्चित है जैसे संध्या का समय महादेव और मां लक्ष्मी का होता है. इसलिए, जब दो समय मिलते हो तब सोना नहीं चाहिए. इस समय सोना अच्छा नहीं माना जाता है लेकिन फिर भी लोग इस समय सोते हैं. 

पढ़ना नहीं चाहिए

इंद्रेश उपाध्याय जी के मुताबिक, शाम के समय कभी भी पढ़ना नहीं चाहिए. पढ़ने से विस्मृति हो जाती है. इस वक्त जो भी पढ़ा जाएगा, वह सब याद नहीं रहेगा. इसलिए, इस दौरान पढ़ने की गलती ना करें. 

नई क्रिया का आरंभ न करें

आगे इंद्रेश उपाध्याय जी बताते हैं कि संध्या के समय नई क्रिया का आरंभ भी नहीं करना चाहिए. जब तक कि वह मुहूर्त अनुसार न हो. उदाहरण के लिए, विवाह के अधिकतर शुभ मुहूर्त संध्या या गोधूली बेला में आते हैं, लेकिन वे भी धार्मिक प्रक्रिया और पंडित द्वारा निकाले गए मुहूर्त के बाद ही किए जाते हैं.

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सहवास न करें

संध्या के समय सहवास की भावना भी नहीं रखनी चाहिए. मान्यतानुसार, इससे ऊर्जा का दुरुपयोग होता है और संतान के स्वभाव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

करें ये भजन-कीर्तन

संध्या का समय केवल भजन, नामस्मरण और ध्यान के लिए सर्वोत्तम माना गया है. यह समय वातावरण में देवत्व की ऊर्जा के सक्रिय होने का माना जाता है, इसलिए मन को शांत और भक्तिमय रखा जाता है.

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