Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारत के महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और शिक्षक थे. उन्होंने चाणक्य नीति नामक ग्रंथ की रचना की थी जिसमें जीवन को सुखमय और सफल-संपन्न बनाने की योजनाओं का जिक्र किया हुआ है. साथ ही, यह साहित्य समाज में शांति, न्याय, सुशिक्षा, प्रगति और बहुत कुछ सिखाने का भंडार है.
वहीं, आचार्य चाणक्य के मुताबिक, एक अच्छे और सुखद जीवन के लिए किसी की भी आर्थिक स्थिति अच्छी होना बहुत ही आवश्यक होता है. लेकिन, अक्सर लोग इसी धन को कमाने के लिए कई बार गलत रास्तों या दिशा का साथ ले लेते हैं. आइए जानते हैं विस्तार से.
ऐसा धन होता है अनुचित
अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्ते एकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति।।
अर्थ- चाणक्य के अनुसार, जो व्यक्ति पैसा बेईमानी, धोखा, छल और दूसरों का हक मारकर कमाता है, तो वह धन कुछ समय तक तो सुख दे सकता है, पर स्थायी नहीं होता है. एक समय आता है जब वह धन किसी न किसी कारण से खत्म हो जाता है.
अतिक्लेशेन ये चार्था: धर्मस्यातिक्रमेण तु।
शत्रुणां प्रणिपातेन ते ह्यर्था: न भवन्तु में।।
अर्थ- आचार्य चाणक्य इस श्लोक में यह सिखाते हैं कि जीवन में ऐसा धन कभी नहीं कमाना चाहिए जो अत्यधिक कष्ट, अधर्म या अपमान के रास्ते से प्राप्त हो. उनका कहना है कि अगर पैसा कमाने के लिए इंसान को अपनी आत्मा की शांति, नैतिकता या सम्मान खोना पड़े, तो वह धन अंततः दुख और पछतावे का कारण बनता है. चाणक्य के अनुसार, सच्चा सुख उसी कमाई में है जो परिश्रम और ईमानदारी से मिले.
किं तया क्रियते लक्ष्म्या या वधूरिव केवला।
या तु वेश्यैव सामान्यपथिकैरपि भुज्यते।।
अर्थ- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वधू समान पैसा घर के अंदर बंद रहकर समाज के क्या काम आएगा. यानी कंजूस का धन तिजोरियों में बंद रहता है, ऐसा धन समाज के काम कभी नहीं आता है. क्योंकि इस तरह के धन का प्रयोग सिर्फ दुष्ट लोग ही करते हैं. इसलिए, धन का उपयोग हमेशा समाज कल्याण, परोपकार और जरूरतमंदों की सहायता करने में ही करना चाहिए.