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मेहरानगढ़ भगदड़ 17 साल बाद भी रहस्य, 216 मौतों की जांच रिपोर्ट छिपा रही है राजस्थान सरकार?

17 साल पहले जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में चामुंडा मंदिर में हुई भगदड़ में 216 लोगों की मौत हो गई थी और 425 लोग घायल हुए थे. इस भीषण त्रासदी की जांच के लिए तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने जस्टिस जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया था. आयोग ने 2011 में आयोग ने अपनी जांच पूरी कर मई 2011 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन तब से लेकर अब तक किसी भी सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है.

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17 साल बाद भी रहस्य बनी हुई है मेहरानगढ़ मंदिर में भगदड़ की घटना. (File Photo: ITG)
17 साल बाद भी रहस्य बनी हुई है मेहरानगढ़ मंदिर में भगदड़ की घटना. (File Photo: ITG)

सत्रह साल पहले जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किले में चामुंडा माता मंदिर में नवरात्र के पहले दिन भगदड़ मचने से 216 लोगों की मौत हुई थी और 425 लोग घायल हुए थे. इस भयावह हादसे की जांच के लिए गठित जस्टिस जसराज चोपड़ा आयोग ने मई 2011 में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन राज्य सरकार को सौंप दी थी, लेकिन तब से आज तक न तो कांग्रेस और न ही बीजेपी की सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया, क्योंकि सरकार को लगता है कि ऐसा करने से सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है.

दरअसल, 30 सितंबर 2008 को नवरात्र के पहले दिन मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा माता मंदिर में भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई. इस हादसे में 216 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों घायल हुए. मेहरानगढ़ किला और चामुंडा माता मंदिर जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह की निजी संपत्ति हैं, जहां नवरात्रि के दौरान हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए जुटते हैं. 

इस भीषण त्रासदी के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने जस्टिस जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया था. आयोग ने अपनी जांच पूरी कर मई 2011 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, लेकिन गहलोत ने इसे सार्वजनिक नहीं करने का फैसला लिया.

इसके बाद सत्ता में आई वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार ने भी यही रुख अपनाया और इस रिपोर्ट को गोपनीय रखा. 2018 में अशोक गहलोत के दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर जोधपुर में उनसे इस मुद्दे पर सवाल उठे, लेकिन उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में भी इस रिपोर्ट को जनता के सामने लाने से इनकार कर दिया.

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बिगड़ सकता है सामाजिक सौहार्द

जस्टिस चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने के फैसले पर गहलोत की कांग्रेस सरकार ने कैबिनेट उप समिति गठित की थी. इस समिति की रिपोर्ट पर 1 अगस्त 2019 को कैबिनेट ने मुहर लगाई. समिति ने चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने की सिफारिश की थी. समिति ने तर्क दिया कि जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है. इसी आधार पर कैबिनेट ने इसे गोपनीय रखने का फैसला किया.

जस्टिस चोपड़ा की अपील

मेहरानगढ़ भगदड़ की जांच करने वाले जस्टिस जसराज चोपड़ा का कहना है कि सरकार अगर उनकी जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दे तो सच्चाई सामने आ जाएगी.

उन्होंने कहा, 'मैं इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता, क्योंकि मैंने अपनी रिपोर्ट में सब कुछ स्पष्ट कर दिया है कि हादसे के लिए कौन जिम्मेदार था और किसकी लापरवाही से इतनी जानें गईं. अगर सरकार मेरी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक कर दे तो सच्चाई सामने आ जाएगी'

उनके इस बयान ने सरकारों की चुप्पी पर और सवाल उठाए हैं.

पोस्टमार्टम न कराने पर सवाल

आपको बता दें कि इतनी बड़ी त्रासदी होने के बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मरने वाले 216 लोगों में से किसी का भी पोस्टमार्टम तक नहीं करवाया था. ये सवाल आज भी अनुत्तरित है कि इतने बड़े हादसे में इस तरह की लापरवाही कैसे बरती गई. 

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मेहरानगढ़ किला और मंदिर (जो पूर्व महाराजा गज सिंह की निजी संपत्ति हैं) में सुरक्षा व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन की कमी को इस हादसे का प्रमुख कारण माना जाता है. गज सिंह का प्रभाव भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में माना जाता है, जिसे इस चुप्पी का एक कारण माना जा रहा है.

हादसे के पीड़ितों और उनके परिजन आज भी न्याय पाने की उम्मीद में बैठे हुए हैं. वह बार-बार प्रशासन और सरकार से जस्टिस चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते रहते हैं.

सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया

इस मामले को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी. याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई नहीं हो रही है, लिहाजा इसको सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित किया जाए.

याचिकाकर्ता ईश्वर प्रसाद खंडेलवाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया, लेकिन वहां भी सुनवाई में देरी हो रही है.

न्याय की आस में पीड़ित

मेहरानगढ़ दुर्घटना के पीड़ित और उनके परिवार के लोग आज भी न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं. वह बार-बार प्रशासन और सरकार से रिपोर्ट सार्वजनिक करने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हैं. मगर कोई भी उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देता है.

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