मध्य प्रदेश के विदिशा जिले की नटेरन तहसील में एक अनोखा गांव है जिसका नाम ही रावण है. देशभर में दशहरे पर रावण का दहन किया जाता है, लेकिन इस गांव में दशहरे पर रावण दहन नहीं होता. यहां रावण को देवता माना जाता है और उन्हें ‘रावण बाबा’ कहकर पूजा जाता है.
गांव में परमार काल का प्राचीन मंदिर स्थित है, जहां रावण की विशाल प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में विराजमान है. प्रतिमा के सामने रोज आरती और भजन श्रद्धा से गाए जाते हैं. दशहरे के दिन यहां शोक मनाया जाता है और रावण की विशेष पूजा की जाती है.
गांव में मनाया जाता है शोक
गांव के लोग अपने वाहन, मकान और दुकानों पर ‘जय रावण बाबा’ और ‘जय लंकेश’ लिखवाते हैं. कई लोग अपने शरीर पर टैटू भी बनवाते हैं. रावण गांव के लोग खुद को रावण बाबा का वंशज मानते हैं.
रावण बाबा मंदिर के पुजारी पंडित सुमित तिवारी के अनुसार उत्तर दिशा में तीन किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर प्राचीन काल में बुद्ध नामक राक्षस रहता था. यह राक्षस रावण से युद्ध करना चाहता था. रावण ने उसे प्रतिमा बनाने की अनुमति दी. बाद में उस प्रतिमा के आसपास रावण बाबा का मंदिर बन गया.
रावण की मंदिर में होती है पूजा
गांव में दशहरे के दिन रावण दहन की कल्पना भी अस्वीकार्य है. रावण बाबा की पूजा, भंडारा और आरती इस पर्व का मुख्य आकर्षण बनती है. यह परंपरा देशभर से लोगों को देखने के लिए आकर्षित करती है. रावण गांव का यह अनोखा उत्सव दशहरे के पर्व को श्रद्धा और मातम का प्रतीक बनाता है और स्थानीय संस्कृति की अनोखी झलक दिखाता है.