मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता मुखी ने 5 शावकों को जन्म दिया है और सभी स्वस्थ हैं. लेकिन यह कोई सामान्य घटना नहीं है बल्कि देश के वन्यजीव इतिहास का ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि मुखी पहली भारतीय मादा चीता है, जिसने इन शावकों को जन्म दिया है. इस खास खबर में हम आपको बताएंगे कि पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए यह कितना बड़ा क्षण है...
कभी कमजोर, नाजुक और अनिश्चित भविष्य के साथ जिंदा बची एक छोटी-सी मादा शावक. आज वही 'मुखी' भारत के प्रोजेक्ट चीता की सबसे बड़ी सफलता बनकर उभरी है. कूनो नेशनल पार्क में उसके जन्म से अब तक की यात्रा संघर्षों से भरी थी. दरअसल, प्रोजेक्ट चीता के तहत साल 2022 में नामिबिया और साउथ अफ्रीका से चीते भारत लाकर कूनो में बसाए गए.
साल 2023 में इनमें से एक मादा चीता ज्वाला ने 4 शावकों को जन्म दिया तो प्रोजेक्ट चीता से जुड़े सभी लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई. लेकिन यह खुशी जल्द ही गम और चिंता में बदल गई, क्योंकि ज्वाला के चार में से तीन शावकों ने दम तोड़ दिया और केवल एक नन्ही मादा शावक जीवित बची.
माना गया कि इंटरकॉन्टिनेंटल रिहेबलिटेशन में अन्य देशों या महाद्वीप के वातावरण में ढल न पाने के कारण यह मौतें हुईं. इससे प्रोजेक्ट चीता की सफलता पर भी सवाल खड़े हो गए थे.
छोटी और कमजोर मुखी को बचाना बनी चुनौती
तीन शावकों की मौत से दुखी और चिंतित कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन और प्रोजेक्ट चीता से जुड़े लोगों ने अंतिम बची शावक मुखी को बचाने के लिए दिन रात एक कर दिए. बेहद कमजोर और छोटी मुखी की जीवन को कूनो प्रबंधन ने लगातार निगरानी, घंटे-घंटे की स्वास्थ्य जांच, विशेष आहार और अनुभवी वेटरनरी टीम की अथक मेहनत से संभाले रखा. धीरे-धीरे मुखी भारतीय वातावरण में ढलने लगी और आज वही मुखी कूनो की चमक बन चुकी है.
सबसे कठिन और सबसे निर्णायक
प्रजनन का यह चरण दर्शाता है कि कूनो नेशनल पार्क चीतों के लिए अब पूर्ण रूप से अनुकूल हो चुका है. वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक यह ऐतिहासिक क्षण इसलिए है, क्योंकि पुनर्वास परियोजना का सबसे कठिन और सबसे निर्णायक पल वन्यजीव का स्थानीय वातावरण में ढलकर प्रजनन करना और शावकों को जन्म देना माना जाता है जिससे पूरी एक नई ब्रीड और नए जींस जन्म लेते हैं जो स्थानीय वातावरण में खुद को बचाए रखने में ज्यादा सक्षम होते हैं.