राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने एल्गार परिषद मामले में आरोपी रहे दिवंगत फादर स्टेन स्वामी के नाम से 'दोषी होने के कलंक' को हटाने की मांग करने वाली याचिका का विरोध किया है. NIA ने बॉम्बे हाई कोर्ट में कहा है कि यह एक "गलत मिसाल" स्थापित करेगा और किसी व्यक्ति को पूर्ण ट्रायल के बिना बेगुनाह घोषित नहीं किया जा सकता है.
यह याचिका फादर फ्रेजर मस्कारेनहास द्वारा दायर की गई थी, जिसमें न्यायिक हिरासत में स्वामी की मौत की न्यायिक जांच और उनके नाम से 'दोषी होने का कलंक' हटाने की मांग की गई थी.
NIA ने अपने जवाब में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने 2021 में पाया था कि स्वामी की मामले में संलिप्तता के प्रथम दृष्टया सबूत मौजूद हैं. NIA ने इस बात पर जोर दिया कि स्वामी दोषी थे या नहीं, यह केवल एक पूर्ण ट्रायल के बाद ही तय किया जा सकता है.
NIA ने कहा कि अगर अदालतें इस तरह काम करना शुरू कर दें तो आपराधिक न्याय प्रणाली का पूरा उद्देश्य और तंत्र ही समाप्त हो जाएगा. एजेंसी ने याचिका को "चौंकाने वाला" बताया और कहा कि स्वामी को कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही गिरफ्तार किया गया था, क्योंकि उनके माओवादी गतिविधियों में शामिल होने के पर्याप्त सबूत थे.
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2021 में हुई थी स्टेन की मौत
एनआईए ने अक्टूबर 2020 में झारखंड में कार्यरत जेसुइट पादरी स्वामी को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार किया था. तलोजा केंद्रीय कारागार में उनकी तबीयत बिगड़ गई और उनकी ज़मानत याचिकाएं खारिज होने के बावजूद, मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत ने पाया कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत मौजूद हैं और उन्हें बरी करने से इनकार कर दिया था.
हालांकि, कोविड के दौरान 84 वर्ष की आयु में, जब अंततः उनकी ज़मानत याचिका पर सुनवाई हुई, तो हाईकोर्ट ने स्वामी को ऑनलाइन बुलाया और उनकी स्थिति देखी. उनकी हालत को देखते हुए, हाईकोर्ट की एक पीठ ने उन्हें उनकी पसंद के अस्पताल में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था. हालांकि, 2021 में न्यायिक हिरासत में रहते हुए अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी.
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न्यायिक जांच पर NIA का रुख
याचिका में मजिस्ट्रेट जांच की मांग के संबंध में, NIA ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर धारा 176 (1ए) CrPC के तहत मजिस्ट्रेट जांच पहले से ही स्वतंत्र रूप से चल रही है. चूंकि यह साबित करने का कोई सबूत नहीं है कि मजिस्ट्रेट कानून का पालन करने में विफल रहा है, इसलिए याचिकाकर्ता का हस्तक्षेप की मांग केवल धारणाओं पर आधारित है और हाई कोर्ट को इस पर विचार नहीं करना चाहिए. कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद करेगा.