उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड सहित देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की है. पीएम मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र को संबोधित करते हुए एक साल से ज्यादा समय से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों से आंदोलन को खत्म करने की अपील की और साथ ही कहा कि अगले महीने संसद के शीतकालीन सत्र में तीनों कृषि कानून को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.
पांच राज्यों के चुनाव बनी मजबूरी
कृषि कानून के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन से अगले साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए चिंता बढ़ गई थी. चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में बीजेपी के लिए किसान आंदोलन एक बड़ी चुनौती बन गया था. पंजाब में अकाली दल कृषि कानून के चलते ही बीजेपी से गठबंधन तोड़कर अलग हो गई थी. किसान आंदोलन के चेहरा बन चुके राकेश टिकैत खुलकर बीजेपी को वोट से चोट देने का ऐलान कर रहे थे.
पंजाब की राजनीति पर किसानों का असर
किसान आंदोलन के चलते पंजाब, उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी के इलाके में बीजेपी का समीकरण पूरी तरह से गड़बड़ाया नजर आ रहा था. कृषि कानून के खिलाफ पंजाब से ही किसान आंदोलन शुरू हुआ था, जिसके चलते बीजेपी नेताओं को गांव में एंट्री तक नहीं मिल पा रही थी. पंजाब की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. पंजाब में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि कोई भी राजनीतिक दल इन्हें नजरअंदाज कर अपना वजूद कायम रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता है.
किसान पंजाब की राजनीतिक दशा और दिशा तय करते हैं. यही वजह रही कि अकाली दल ने मोदी सरकार में मंत्री की कुर्सी ही नहीं छोड़ी, बल्कि एनडीए से भी नाता तोड़कर बीजेपी के खिलाफ सख्त तेवर अपना लिए थे. किसान संगठन पंजाब की सियासत पर काफी असर डालते हैं, जो बीजेपी से सख्त नाराज हैं. ऐसे में किसानों की नाराजगी बीजेपी के लिए 2022 के चुनाव में एक बड़ी मुसीबत बनकर खड़ी हो गई थी, क्योंकि किसान संगठनों ने साफ तौर पर कह दिया था कि इन कानूनों के वापस होने तक किसी तरह का कोई समझौता नहीं होगा.
यूपी में बीजेपी का गड़बड़ाता समीकरण
वहीं, कृषि कानून के चलते यूपी में किसान आंदोलन बीजेपी की सत्ता में वापसी की राह में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई थी. जाट समुदाय से लेकर गुर्जर, सैनी जैसी तमाम किसान जातियां कृषि कानून की वजह से बीजेपी से पूरी तरह नाराज मानी जा रही थीं. ये पश्चिमी यूपी की वो जातियां हैं, जो बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं.
बीजेपी 2017 के चुनाव में पश्चिम यूपी की इन्हीं तमाम ओबीसी जातियों के दम पर 15 साल से चले आ रहे सत्ता के वनवास को खत्म करने में कामयाब रही थी. लेकिन, कृषि कानून के खिलाफ शुरू हुआ किसान आंदोलन पश्चिम यूपी में बीजेपी के सियासी समीकरण को बिगाड़ता नजर आ रहा था. हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में बीजेपी को किसान आंदोलन के चलते पश्चिम यूपी में खामियाजा भुगतना पड़ा था.
आरएलडी बनी सबसे बड़ी चिंता
किसान आंदोलन के चलते पश्चिम यूपी में बीजेपी नेताओं के गांव में एंट्री करने पर विरोध हो रहे थे तो आरएलडी को सियासी संजीवनी मिली. इसी के दम पर पार्टी अध्यक्ष जयंत चौधरी 2022 के चुनाव में सपा के साथ मिलकर बीजेपी को मात देने की कवायद में जुटे थे. बीजेपी तमाम जतन के बाद भी यूपी में किसानों के बीच अपने पुराने विश्वास को स्थापित नहीं कर पा रही थी तो सपा के साथ जातीय आधार वाले दलों के साथ होता गठबंधन भी बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी की राह में मुश्किलें खड़ी कर रहा था.
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी और बसपा सुप्रीमो मायावती तक किसानों के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने में जुटे थे. वहीं, बीजेपी यूपी की सत्ता को अपने हाथों से किसी भी सूरत में जाने नहीं देना चाहती थी. ऐसे में बीजेपी किसान आंदोलन की काट की तलाश में रही थी.
उत्तराखंड में सत्ता की वापसी पर ग्रहण
यूपी की तरह उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव तीन महीने बाद होने हैं. उत्तराखंड के तराई बेल्ट में किसानों की नाराजगी बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गई है. सूबे की करीब 2 दर्जन विधानसभा सीटों पर किसान राजनीति प्रभावित करते हैं, जहां बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा मुश्किलें खड़ी हो रही थीं. ऐसे में बीजेपी उत्तराखंड में अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए कोई राह नहीं दिख रही थी.
बीजेपी की सियासी मजबूरी
किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए बीजेपी और मोदी सरकार ने तमाम जतन कर लिए थे, लेकिन सफल नहीं हो रहे थे. बीजेपी के नेताओं के पास बस यही जवाब था कि कांग्रेस और विपक्षी दल किसानों को गुमराह कर रहे हैं और अपनी राजनीति चमका रहे हैं. इसके बावजूद किसानों पर बीजेपी नेताओं की इन दलीलों का कोई असर नहीं हो रहा था.
बीजेपी के तमाम नेता भी किसान आंदोलन के चलते कृषि कानून वापस लेने की बात भले ही खुलकर नहीं करते रहे हों, पर दबी दुबान से सियासी असर की बात करते रहे हैं. मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक भी सार्वजनिक रूप से कृषि कानून को वापस लेने की वकालत कर चुके थे. इतना ही नहीं उन्होंने कहा था कि किसानों की बात नहीं मानी गई तो बीजेपी सत्ता में वापसी नहीं कर पाएगी.
बीजेपी के सामने बस एक ही रास्ता बचा था कृषि कानूनो को वापस लेने का. ऐसे में पीएम मोदी ने गुरु पर्व का दिन चुना और तीनों कृषि कानून को खत्म करने का ऐलान कर दिया है, जो चुनाव से बीजेपी के लिए मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है.