सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को घरेलू हवाई यात्रा में एयरलाइंस की मनमानी से जुड़े एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते वक्त भी दिया है.
सामाजिक कार्यकर्ता एस लक्ष्मी नारायण ने घरेलू हवाई यात्रा को 'आवश्यक सेवा' घोषित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है. याचिका में एयरलाइनों को अस्पष्ट और शोषणकारी प्रथाओं को चुनौती दी गई है, जिसमें किराए में अचानक बढ़ोतरी (डायनेमिक प्राइसिंग) और चेक-इन बैगेज को 25 किलो से घटाकर 15 किलो करना शामिल है.
कई गुना बढ़ जाता है किराया
याचिका में कहा गया है कि ये गुप्त प्राइसिंग एल्गोरिदम अचानक किराया कई गुना बढ़ा देते हैं, जिससे मेडिकल इमरजेंसी, परीक्षा या नौकरी के लिए तुरंत यात्रा करने वाले यात्री सबसे ज्यादा असर पड़ता है.
नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
याचिका में कहा गया है कि एयरलाइनों का 'अनियमित, अस्पष्ट, और शोषणकारी आचरण' सीधे तौर पर नागरिकों के समानता, आवाजाही की स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीवन जीने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. याचिका में घरेलू हवाई यात्रा को 'आवश्यक सेवा' के रूप में गिने जाने की भी मांग की गई है. इसका उद्देश्य पारदर्शी और गैर-शोषणकारी घरेलू हवाई यात्री सेवाओं को सुनिश्चित करना है.
किराया निगरानी और समान शुल्क की मांग
जनहित याचिका में केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह यात्रियों को प्रभावित करने वाली जबरन वसूली, मुनाफाखोरी और भेदभावपूर्ण प्रथाओं को रोकने के लिए सभी प्रशासनिक और सुरक्षा उपाय करे. याचिका ने किराया निगरानी उपायों को लागू करने की भी मांग की है.
इसके अलावा सीट चयन, चेक-इन बैगेज, अतिरिक्त सामान और संबद्ध शुल्क के लिए एक समान सहायक-शुल्क अनुसूची लागू करने की मांग की गई है.
4 हफ्ते में देना होगा जवाब
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए नागरिक उड्डयन मंत्रालय को नोटिस जारी करके 4 हफ्ते में जवाब मांगा है.