विधान मंडल से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा समयसीमा और प्रक्रियाओं को निर्धारित करने के महत्वपूर्ण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट 22 जुलाई को सुनवाई करेगा. इस मामले में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को संदर्भ (रेफरेंस) भेजा है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 से संबंधित 14 सवालों पर जवाब मांगा है.
इस सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए. एस. चंदूरकर की पांच जजों की विशेष पीठ गठित की गई है.
राज्य विधान मंडल द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजे जाते हैं तो कई बार इन्हें अनिश्चितकाल तक लंबित रखा जाता है. इस प्रक्रिया में देरी ने संवैधानिक और प्रशासनिक विवादों को जन्म दिया है. राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट से पूछा गया है कि क्या अदालत राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर फैलसे लेने की समयसीमा और प्रक्रियाएं निर्धारित कर सकती है.
इसके अलावा ये भी सवाल उठाया गया है कि जब कोई विधेयक राज्यपाल के पास आते हैं तो उनके पास क्या विकल्प उपलब्ध होते हैं और क्या राज्यपाल मंत्रीपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है?
दरअसल, तमिलनाडु के राज्यपाल से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए अप्रैल 2025 में फैसले सुनाते हुए कहा था कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते. इस फैसले के बाद राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवालों पर रेफरेंस मांगा जो कि विधेयकों की मंजूरी से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों और राज्यपाल की शक्तियों से जुड़ा है.