चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए फ्री की रेवड़ियां बांटने पर निर्वाचन आयोग ने अपनी कई प्रतिक्रिया दी. मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा कि वैसे तो राजनीतिक दलों को पांच साल जनहित के लिए योजनाओं की याद नहीं आती. लेकिन चुनाव के पहले वाले महीने 15 दिन में योजनाओं की घोषणा की याद आ जाती है.
हालांकि ये राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र की बात है. परियोजनाएं बनाना और लागू करना राज्य सरकारों का अधिकार है. वोटर के लिए ये जानना जरूरी है कि इसका आर्थिक प्रभाव कितना होगा? इन मौजूदा लोक लुभावन फ्री की रेवड़ियों की कीमत वाली पीढ़ियों को तो नहीं चुकानी होंगी? अगली पीढ़ियों का भविष्य गिरवी तो नहीं रहेगा? इन घोषणाओं और फ्री की परियोजनाओं का आर्थिक आधार यानी इनके लिए धन कहां से आएगा? अधिकतर मामलों में सिर्फ घोषणाएं होती हैं उनका आर्थिक आधार नहीं दिखता. जबकि वोटर को जानने का अधिकार है.
इस बाबत आयोग ने राजनीतिक दलों के साथ विचार विमर्श का मसौदा और खाका भी जारी किया. इसमें राजनीतिक दलों से ये बताने को कहा गया है कि उनकी फ्री बीज घोषणाओं पर अमल के लिए धन कहां से अर्जित किया जाएगा? कोई टैक्स, सेस या किसी स्कीम से धन अर्जित किया जाएगा जिससे फ्री को रेवड़ियां बांटने का काम होगा.
क्योंकि फ्री की रेवड़ियों को लेकर राजनीतिक पार्टी सत्ता में रहे या विपक्ष में ताबड़तोड़ घोषणाएं तो कर देती हैं लेकिन चुनाव के बाद जो भी पार्टी सत्ता में आए उसके लिए मुफ्त की योजनाओं को लागू करना या उनसे मुकरना दोनों ही मुमकिन नहीं होता. यानी न निगलते बनता है न ही उगलते. हालांकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट में फ्री बीज यानी मुफ्त की रेवड़ियों को लेकर याचिकाएं लंबित हैं. उन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला और स्पष्टता लाएगा.
पिछले साल भी जब चीफ जस्टिस एनवी रमणा चीफ जस्टिस थे तब भी अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा था कि फ्रीबिज पर रोक के लिए हम चुनाव आयोग को कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं देने जा रहे हैं लेकिन इस मामले में विस्तृत चर्चा की जरूरत है क्योंकि यह निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. यह सिर्फ चुनाव के दौरान का मुद्दा नहीं है.
अदालत के पास शक्ति है आदेश जारी करने की. लेकिन कल को किसी योजना के कल्याणकारी होने का दावा करते हुए अदालत में कोई आकर यह कहे कि यह सही है तो काफी विकट स्थिति होगी. ऐसे में फिर यह बहस खड़ी होगी कि आखिर न्यायपालिका को क्यों हस्तक्षेप करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम देश के कल्याण के लिए इस मुद्दे को सुन रहे हैं, न कि हम कुछ कर रहे हैं. क्योंकि इस मामले में सभी राजनीतिक दल एक तरफ हैं. हर कोई चाहता है कि फ्रीबीज़ जारी रहे. उस समय केंद्र कि ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जब सरकार के पास पैसा ना हो और वह चुनाव जीतने के लिए खर्च करे. क्या यह सही है? इसकी वजह से अर्थव्यवस्था लचर हो जाती है. यह गंभीर मुद्दा है. अब अगर कोई पार्टी कहे कि वह प्रॉपर्टी टैक्स नहीं लेगी तो क्या यह सही होगा?
याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा था कि यह ऐसी गंभीर प्रवृत्ति है जिसके विनाशकारी आर्थिक परिणाम हो सकते हैं. यह एक कानूनी समस्या है.चुनावी गिफ्ट देने के लिए पार्टियां पैसे कहां से लाएंगी? ये मतदाता को जानने का अधिकार है, साथ ही करदाता को भी पता होना चाहिए कि यह पैसा उनकी जेब से जा रहा है. इसलिए राजनीतिक दलों/उम्मीदवारों को चुनाव घोषणापत्र में यह बताना होगा कि पैसा कहां से आएगा.
विकास सिंह ने कहा कि हर कोई सत्ता चाहता है इसलिए हर कोई मुफ्त की घोषणा करता है. इससे इतना फर्क पड़ेगा कि देश की अर्थव्यवस्था दिवालिया हो जाएगा. विकास सिंह ने कहा था कि अगर मुफ्त सामान बांटने की घोषणाएं होती रहेंगी तो श्रीलंका जैसे हालात हो जाएंगे. क्योंकि इन मुफ्त की योजनाओं के लिए पैसे कहां से आएंगे? इस अहम सवाल का जवाब कोई पार्टी या उम्मीदवार नहीं देना चाहते.
यह मतदाता को जानने का अधिकार है. टैक्स देने वालो को पता होना चाहिए कि यह पैसा मेरी जेब से ही जा रहा है. चुनाव घोषणापत्र में यह बताना होगा कि पैसा कहां से आएगा. पूर्व CJI ने तब सुनवाई करते हुए कहा था कि निर्वाचन आयोग यह कैसे कह सकता है कि कौन ये घोषणा करे या वो घोषणा करे.
विकास सिंह ने तब बालाजी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि राजनीतिक दल कह रहे हैं की यह फ्री घोषणाएं समाज कल्याण के लिए होती हैं, लेकिन जिस तरह से फ्री बीज के नाम पर रेवड़ियां बांटी जा रही हैं, वो लोक कल्याण के नहीं हैं, यह राजकोषीय नियंत्रण से भी जुड़ी है. हम श्रीलंका नहीं बनना चाहते हैं.
उस सुनवाई में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील विजय हंसारिया ने सुझाव दिया कि वित्त आयोग के विशेषज्ञों की एक समिति, नीति आयोग को इस मुद्दे पर गौर करना चाहिए.