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अंसारी ब्रदर्स: कई बार रहे विधायक, सत्ता के करीबी, लेकिन ख्वाब ही रह गया एक अदद मंत्री पद

मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी दोनों सजायाफ्ता हो चुके हैं जिससे इनका राजनीतिक जीवन अब खात्मे की कगार पर पहुंच गया है, लेकिन ये बात भी मानी हुई है कि सूबे की सियासत में गाजीपुर की पॉलिटिकल फैमिली की तूती बोलती थी. सपा और बसपा दोनों ने इन्हें अपना करीबी बना कर रखा, लेकिन क्या वजह रही कि एक अदद मंत्री पद इस परिवार के हिस्से में नहीं आया.

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मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी (फाइल फोटो)
मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी (फाइल फोटो)

राजनीतिक पार्टियों के लिए जीत की चाबी रहे अंसारी ब्रदर्स की कहानी कुछ ऐसी है कि सत्ता में उनका रसूख तो पूरा रहा, लेकिन एक अदद मंत्री पद के लिए पूरा कुनबा तरसता सा रहा. गाजीपुर और आसपास की दर्जनों सीट पर अपना रसूख रखने वाले अंसारी परिवार के तीनों भाई विधायक रहे हैं. अफजाल अंसारी तो गाजीपुर से दो बार सांसद भी रहे हैं, लेकिन इन तीनों भाइयों को कभी भी न तो सपा और न ही बसपा ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया.

सभी भाई रहे विधायक

कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी की वजह से जाना जाने वाला यह परिवार आज पूर्व विधायक और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के नाम से कुख्यात है. बहुत कम परिवार ऐसे होंगे, जिसमें सभी भाई विधायक रहे हों, उनके बाद उनके बच्चे भी विधायक हों और घर में विधायक रहे चाचा-सांसद भी हों. उत्तर प्रदेश के बड़े राजनीतिक दलों से दल-बदल करके अपनी सीट पर काबिज रहे हों, लेकिन कभी इन लोगों को कसी दल ने अपने मंत्री मंडल में शामिल नहीं किया. 

मऊ सदर सीट से पांच बार विधायक रहा मुख्तार अंसारी

गाजीपुर के यूसूफपुर मोहम्दाबाद तहसील मुख्यालय के जमींदार परिवार के तीन भाइयों में पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी सबसे छोटा है. मुख्तार अंसारी मऊ सदर सीट से पांच बार विधायक रहा, कभी सपा, तो कभी बसपा तो कभी निर्दल चुनाव लड़ा. आज भी उसका बेटा अब्बास अंसारी सुभासपा और सपा गठबंधन से विधायक है. वहीं मझले भाई अफजाल अंसारी 1985 से अबतक पांच बार मोहम्दाबाद सीट से विधायक और दो बार गाजीपुर लोकसभा से सांसद है. 

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2002 में कृष्णानंद राय ने हराया था चुनाव

सबसे बड़े भाई शिबगतुल्ला अंसारी दो बार मोहम्दाबाद सीट से विधायक रह चुके हैं और आज मोहम्मदाबाद की उसी सीट से उनका बेटा शोएब अंसारी "मन्नू" समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक भी है. वर्तमान सांसद अफजाल अंसारी ने कम्युनिस्ट पार्टी के सिंबल पर 1985 से मोहम्दाबाद सीट से विधायकी जीतकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. लगातार 1996 तक इस सीट पर जीत हासिल करते हुए फिर 2002 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय से पहली बार चुनाव हारे थे.

बनाई थी कौमी एकता दल पार्टी

साल 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर वे गाजीपुर लोकसभा का चुनाव भारी मतों से जीते भी थे, बाद में 29 नवंबर 2005 को भाजपा विधायक की हत्या हुई और मुख्तार के साथ अफजाल भी आरोपी हुए, तब वे सपा से सांसद थे. लेकिन इस परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी थी कि कई बार अंसारी ब्रदर्स ने दलों को अपने फायदे अनुसार बदला और यह एक बार नहीं यह कई बार हुआ, बीच में सपा - बसपा से नाराज अंसारियों ने कौमी एकता दल नाम की एक पार्टी भी बनाई और 2012 चुनाव में शिबगतुल्लाह मोहम्दाबाद से और मुख्तार मऊ सदर से जीते भी, लेकिन बाद में बदलते हालातों को देखते हुए  बहुजन समाज पार्टी में इसका विलय कर दिया गया. 

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मंत्रिमंडल में जगह न मिलना खटकता रहा

साल 2019 लोकसभा चुनाव में अफजाल अंसारी बहुजन समाज पार्टी के सिंबल पर गठबंधन प्रत्याशी के तौर चुनाव जीते भी थे. जानकारों की मानें तो अफजाल अंसारी की महत्वाकांक्षा सूबे के बड़े नेताओं को खटकती भी थी क्योंकि मुख्तार अंसारी अफजाल अंसारी पूर्वांचल के दो ऐसे नाम थे जिन का सिक्का सपा के साथ बसपा सरकार में भी चलता था. जानकारों की मानें तो कल्याण सिंह की भाजपा सरकार में भी इनकी गहरी पैठ थी, अंसारी परिवार की गहरी पैठ सरकारों में भले ही रही हो लेकिन मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलना यह हमेशा इस परिवार को खटकता रहा. 

परिवार को अभी भी आस

जानकारों की मानें तो अफजाल या शिबगतुल्लाह मंत्री बन सकते थे. मुलायम सिंह अफजाल को हेलीकॉप्टर में लेकर घूमते थे, जबकि मायावती के भी अफजाल बेहद करीबी रहे. मंच से मायावती ने तो मुख्तार को गरीबों का मसीहा भी बताया था, लेकिन बावजूद उसके अंसारी ब्रदर्स की महत्वाकांक्षी अभिलाषा और मुख्तार अंसारी की दागी छवि दलों के लिए जीत का कारण तक तो ठीक थी लेकिन कभी इस परिवार में कोई भी भाई सूबे में मंत्री नहीं बन सका जिसका मलाल अंसारियो को हमेशा रहा. आज मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी दोनों सजा याफ्ता हो चुके हैं जिससे इनके राजनीतिक जीवन पर ग्रहण लग गया है. जबकि बड़े भाई शिबगतुल्लाह राजनीतिक विरासत बेटे शोएब को सौंप चुके हैं, जिससे परिवार को अभी भी आस जगी हुई है.

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