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MGNREGA खत्म, 'जी राम जी' बिल लाने की तैयारी? क्यों व‍िपक्ष के साथ सहयोगी दल भी कर रहा व‍िरोध

विपक्ष और एनडीए की सहयोगी TDP ने भी इस फैसले की आलोचना की है, खासकर फंडिंग मॉडल को लेकर। TDP ने इसे राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ाने वाला बताया है. भाजपा ने इसे जरूरी सुधार करार दिया है. अब सरकार पर बिल को संसदीय समिति के पास भेजने और पुनर्विचार करने का दबाव बढ़ रहा है.

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MGNREGA fake job cards
MGNREGA fake job cards

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना MGNREGA में बड़ा बदलाव करने जा रही है, लेकिन इस फैसले को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है. दिलचस्प बात ये है कि इस बार विरोध सिर्फ विपक्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि बीजेपी की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने भी नए प्रस्ताव पर गंभीर आपत्ति जताई है.

सरकार MGNREGA को खत्म कर उसकी जगह विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी VB-G RAM G बिल 2025 लाने की तैयारी में है. MGNREGA की शुरुआत 2005 में UPA सरकार ने की थी और ये पिछले करीब 20 साल से ग्रामीण इलाकों में रोजगार की गारंटी देती आ रही है.

नाम ही नहीं, ढांचा भी बदलेगा

विपक्ष सबसे पहले इस बात पर हमलावर है कि सरकार ने योजना के नाम से महात्मा गांधी का नाम हटाने का फैसला किया है. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सवाल उठाते हुए कहा कि महात्मा गांधी के अंतिम शब्द ‘हे राम’ थे, फिर उनके नाम को हटाने की क्या जरूरत थी. प्रियंका गांधी से लेकर टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन तक कई विपक्षी नेताओं ने इस फैसले की आलोचना की है.  लेकिन असली विवाद योजना के ढांचे और फंडिंग पैटर्न को लेकर है.

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क्या बदल जाएगा नए बिल में?

नए VB-जी राम जी बिल में केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग 60:40 करने का प्रस्ताव है. 
अभी MGNREGA में 90% पैसा केंद्र और 10% राज्य देते हैं.
पूर्वोत्तर, पहाड़ी राज्यों और जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्रशासित क्षेत्रों के लिए फिलहाल 90:10 का अनुपात बना रहेगा.
काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन करने की बात कही गई है.

लेकिन इसके साथ ही राज्यों के लिए फिक्स बजट तय होगा जबकि अभी योजना मांग आधारित है और जरूरत के हिसाब से काम मिलता है. नई व्यवस्था में काम सिर्फ उन्हीं इलाकों में मिलेगा, जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी. खेती के पीक सीजन में दो महीने योजना को रोकने का भी प्रावधान है.

राज्यों पर बढ़ेगा बोझ?

सबसे बड़ी आपत्ति यही है कि नए बिल में राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा. कई राज्य पहले ही मुफ्त योजनाओं और चुनावी वादों के चलते वित्तीय दबाव में हैं.

यही वजह है कि NDA की अहम सहयोगी TDP भी खुलकर नाराज़ है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने चेताया है कि ये फंडिंग मॉडल राज्य की वित्तीय हालत पर भारी पड़ेगा. TDP के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि ये बदलाव ग्रामीण रोजगार योजना को भी एक सामान्य केंद्रीय योजना जैसा बना देगा. सूत्रों के मुताबिक TDP चाहती है कि इस बिल को संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा जाए, ताकि उस पर विस्तार से चर्चा हो सके.

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BJP का बचाव, विपक्ष का हमला

बीजेपी ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि रोजगार गारंटी को कमजोर नहीं किया जा रहा बल्कि अपग्रेड किया जा रहा है. पार्टी का कहना है कि MGNREGA में कई संरचनात्मक खामियां थीं और नया कानून एक 'जरूरी सुधार' है. वहीं CPI(M) महासचिव एमए बेबी ने आरोप लगाया कि केंद्र अब राज्यों पर जिम्मेदारी डालकर विपक्ष शासित राज्यों को फंड रोककर दबाव में ला सकता है.

अब जब विपक्ष के साथ-साथ NDA के भीतर से भी सवाल उठ रहे हैं तो सरकार पर दबाव बढ़ता दिख रहा है. ऐसे संकेत हैं कि सरकार को इस बिल को कमेटी के पास भेजने और दोबारा विचार करने पर मजबूर होना पड़ सकता है.

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