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क्या लद्दाख को स्टेटहुड मिलनी चाहिए? इस मांग के पक्ष और विपक्ष में दी जा रहीं क्या दलीलें

लद्दाख को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन हिंसक हो गया था. इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद अब यह बहस तेज हो गई है कि क्या लद्दाख को स्टेटहुड मिलनी चाहिए? इस मांग के पक्ष और विपक्ष में क्या दलीलें दी जा रही हैं, जानिए...

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सोनम वांगचुक की अगुवाई में हुआ था आंदोलन (Photo: PTI)
सोनम वांगचुक की अगुवाई में हुआ था आंदोलन (Photo: PTI)

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के साथ ही केंद्र सरकार ने 2019 में इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया था. जम्मू कश्मीर के साथ ही लद्दाख को भी अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया था, जिसमें तीन जिले- लेह, लद्दाख और करगिल आते हैं. लद्दाख हाल के दिनों में हिंसक आंदोलन की वजह से सुर्खियों में रहा.

पूर्ण राज्य के दर्जे और पूर्वोत्तर की तर्ज पर संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी राज्य के दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन हिंसक हो गया. उग्र आंदोलनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दफ्तर में आग लगा दी थी. केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया था.

पूर्ण राज्य की मांग को लेकर आंदोलन हिंसक हुआ, तो पुलिस ने इसकी अगुवाई कर रहे इनोवेटर और क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया था. सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद अब बहस इसे लेकर छिड़ी हुई है कि लद्दाख को राज्य का दर्जा मिलना चाहिए या नहीं.

लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य और छठी अनुसूची के तहत आदिवासी स्टेटस की डिमांड कर रहे लोगों के अपने तर्क हैं. वहीं, इन मांगों से इत्तेफाक नहीं रखने वालों की भी अपनी दलीलें हैं. पक्ष-विपक्ष में क्या दलीलें दी जा रही हैं?

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पूर्ण राज्य के दर्जे के पक्ष में क्या तर्क

लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू करने वाले एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक के अपने तर्क हैं. वह अलग राज्य की मांग को लेकर रैलियों में भी यह कहते रहे हैं कि क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर उद्योगपतियों की नजर है. केंद्र शासित प्रदेश रहने की वजह से इसका दोहन होगा. सोनम वांगचुक ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन रोकने के लिए छठी अनुसूची के तहत पूर्ण राज्य और आदिवासी स्टेटस को एकमात्र उपाय बताया था.

वहीं, करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सज्जाद करगिली ने  अंग्रेजी समाचार पत्र द हिंदू से कहा है कि लद्दाख जब जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था, तब हमारा वहां की विधानसभा में प्रतिनिधित्व था. एक आवाज थी और राज्य का मुख्यमंत्री चुनने की शक्ति भी थी. केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद लद्दाख आवाज विहीन हो गया है. ब्यूरोक्रेट्स दो साल के लिए आते हैं और लोगों से बगैर चर्चा किए अपने मनमुताबिक नीतियां बनाकर थोपते हैं.

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उन्होंने कहा कि दूसरी चिंता जमीन को लेकर है. हमारे पास पहले अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत सुरक्षा थी, जो अब नहीं है. बीजेपी ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था, लेकिन छह साल में भी यह वादा पूरा नहीं किया. सज्जाद करगिली ने आगे यह भी कहा कि लद्दाख में न तो लोकसेवा आयोग है, ना ही किसी एक लद्दाखी की गजटेड पोस्ट पर नियुक्ति हुई है. पिछले छह साल में लद्दाख का कमजोरीकरण हुआ है. हमें राज्य का दर्जा, लोकतंत्र और आवाज चाहिए.

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पूर्ण राज्य के दर्जे के विपक्ष में क्या तर्क

पूर्व आईएएस अधिकारी रंगराजन आर ने द हिंदू से कहा कि लद्दाख से एक सदस्य संसद में है, इसलिए लद्दाख का लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व है. लद्दाख विशाल है, लेकिन जनसंख्या सीमित है. राज्य के दर्जे के लिए आबादी और अन्य मानक होते हैं. लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत आदिवासी स्टेटस के साथ शुरुआत करनी चाहिए. इससे लद्दाख की साढ़े तीन लाख आबादी (2011 की जनगणना के मुताबिक) को अपनी जमीन के लिए संवैधानिक सुरक्षा मिल सकेगी.

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लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की डिमांड के विरोध में इसके अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब होने और सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशीलता के तर्क भी दिए जा रहे हैं. 1999 के करगिल युद्ध से लेकर चीन के साथ कुछ वर्ष पहले हुई गलवान झड़प तक के जिक्र हो रहे हैं. तर्क यह भी दिए जा रहे हैं कि पूर्ण राज्य के दर्जे की स्थिति में राजस्व का इंतजाम लद्दाख को खुद करना होगा, जो पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था के लिए आसान नहीं होगा.

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