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Exclusive: 1917 से घोषित संरक्षित स्मारक, 108 साल बाद भी अशोक के इस शिलालेख पर ASI का आंशिक संरक्षण

RTI के मुताबिक “रोहतास जिले के चंदन शहीद पहाड़ी पर अशोक का शिलालेख… अधिसूचना संख्या 1814 ई, दिनांक 01.12.1917 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था.” हालांकि, एजेंसी ने स्वीकार किया कि एक सदी से अधिक समय बाद भी, ASI के पास साइट का केवल आंशिक संरक्षण है

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बिहार के रोहतास स्थित चंदन पहाड़ी पर मौजूद अशोक का शिलालेख, जिस पर मजार बनी हुई है
बिहार के रोहतास स्थित चंदन पहाड़ी पर मौजूद अशोक का शिलालेख, जिस पर मजार बनी हुई है

बिहार के रोहतास जिले में पुरातात्विक महत्व का एक प्राचीन स्थल मौजूद है. नाम है चंदन शहीद पहाड़ी. इस पहाड़ी पर मौजूज अशोक के एक शिलालेख को 1917 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, बावजूद इसके एक सदी से अधिक समय बाद भी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का इस पर पूर्ण नियंत्रण नहीं है.

ASI शेयर कर रहा राष्ट्रीय विरासत की कस्टडी
आजतक को मार्च 2023 और अगस्त 2025 में प्राप्त आरटीआई से पता चलता है कि 1 दिसंबर 1917 से संरक्षित होने के बावजूद, यह साइट आंशिक रूप से स्थानीय मुस्लिमों के कब्जे में है, और ASI को इस राष्ट्रीय विरासत की कस्टडी शेयर करनी पड़ रही है. इस बाबत ASI ने भी पुष्टि की है. 

RTI के मुताबिक “रोहतास जिले के चंदन शहीद पहाड़ी पर अशोक का शिलालेख… अधिसूचना संख्या 1814 ई, दिनांक 01.12.1917 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था.” हालांकि, एजेंसी ने स्वीकार किया कि एक सदी से अधिक समय बाद भी, ASI के पास साइट का केवल आंशिक संरक्षण है और यह संस्था धार्मिक हितों के साथ हक साझा करने को मजबूर है.  शिलालेख क्या कहता है और यह कितना पुराना है? ASI ने एक नोट में साइट के महत्व को सामने रखा है. 

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प्राचीन ब्राह्मी लिपि में लिखा है शिलालेख
इसके मुताबिक, “सासाराम के अशोक शिलालेख (232 या 231 ईसा पूर्व) में प्राचीन ब्राह्मी लिपि में लिखी आठ पंक्तियां हैं. शिलालेख का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त है. शिलालेख में संभवतः बुद्ध के निर्वाण की तारीख का उल्लेख है, लेकिन इसका कोई ठोस अर्थ अभी तक नहीं निकाला गया है.” ASI ने जोर देकर कहा कि यही बात इस स्मारक को भारत के प्राचीन इतिहास का अमूल्य दस्तावेज बनाती है. 

ASI पटना सर्कल ने कहा, “रोहतास जिले के आशिकपुर में चंदन शहीद पहाड़ी पर अशोक का शिलालेख एक चट्टानी शिलाखंड पर है. इस शिलालेख पर आठ पंक्तियां लिखी हुई हैं. यह सम्राट अशोक का लघु शिलालेख-I है, जो उनके 13वें शासन वर्ष, यानी 257 ईसा पूर्व का है.” इसका मतलब है कि 2025 में यह शिलालेख 2,281 साल पुराना है. अशोक के शिलालेख का धार्मिक दावा 1917 में संरक्षित स्मारक घोषित होने से पहले से था. बिहार और उड़ीसा डिस्ट्रिक्ट गजटियर्स, शाहाबाद (1924) में दर्ज है कि शिलालेख वाली गुफा को स्थानीय मुस्लिम चिरागदान, “चंदन पीर का दीपक” कहते थे, जो पहाड़ी की चोटी पर स्थित दरगाह के नाम पर था.

ASI ने RTI जवाब में की पुष्टि
ASI ने अपने आरटीआई जवाबों में इसकी पुष्टि की है. मार्च 2023 में, कहा गया कि “रोहतास जिले के चंदन शहीद पहाड़ी पर अशोक का शिलालेख प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था. बिहार और उड़ीसा डिस्ट्रिक्ट गजटियर्स, शाहाबाद (1924) में उल्लेख है कि स्मारक को लंबे समय से मुसलमान पूजते आ रहे हैं. जिस पहाड़ी पर शिलालेख है, उसे बाद में मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिया. उन्होंने गुफा को चिरागदान या चंदन पीर का दीपक कहा, जिनकी दरगाह पहाड़ी की चोटी पर है.” नवंबर 2022 में, दशकों की बातचीत के बाद, मजार समिति ने औपचारिक रूप से ताले वाली गुफा की एक चाबी ASI के सासाराम उप-सर्कल साइट प्रभारी को सौंपी. लेकिन इससे साझा व्यवस्था समाप्त नहीं हुई.

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ASI ने 2023 के जवाब में बताया- “जिला प्रशासन के साथ समन्वय के कारण, मजार समिति ने 23.11.2022 को सासाराम उप-सर्कल के साइट प्रभारी को एक चाबी सौंपी है.”
हालांकि, 2025 के आरटीआई जवाब से स्पष्ट है कि पूर्ण नियंत्रण अभी भी नहीं मिला है. “चंदन शहीद पहाड़ी पर अशोक शिलालेख के प्रवेश द्वार की चाबियां दो संस्थानों के पास हैं, एक ASI के पास और दूसरी सासाराम के शेर शाह सूरी ट्रस्ट के जीएम अंसारी के पास.”  

क्या कहती है मजार समिति?
आजतक से बात करते हुए, मजार समिति के जीएम अंसारी ने कहा कि जब भी पर्यटक आते हैं, वे सहयोग करते हैं, गेट खोलते हैं और शिलालेख दिखाते हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी जोर दिया कि बख्तियार खिलजी के समय से, रेहमतुल्लाह आलेह चंदन पीर बाबा की मजार यहां है, क्योंकि वे उस काल के धार्मिक युद्ध में शहीद हुए थे. इसलिए इस पहाड़ी को चंदन पीर पहाड़ी के नाम से जाना जाता है, जहां अशोक का लघु शिलालेख स्थित है.

रोहतास जिला पर्यटन अधिकारी विनय प्रताप ने आजतक से कहा कि चंदन शहीद पहाड़ी पर अशोक के शिलालेख का संरक्षण और प्रबंधन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास है. ASI ने साइट पर दो कर्मचारियों को तैनात किया है जो आगंतुकों को स्मारक दिखाते हैं और जानकारी प्रदान करते हैं, साथ ही शोधकर्ताओं और पर्यटकों के साथ समन्वय करते हैं. 

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2023 में, ASI के पटना सर्कल और विज्ञान शाखा ने पाया कि शिलालेख पर चूने का प्लास्टर चढ़ा हुआ है. 2023-24 के लिए संरक्षण की योजना बनाई गई थी. लेकिन 2025 के जवाब में, पटना सर्कल ने स्वीकार किया कि “क्षति मूल्यांकन रिकॉर्ड इस सर्कल के पास उपलब्ध नहीं हैं. इन्हें विज्ञान शाखा द्वारा अलग से रखा जाता है.”  ASI का दावा है कि स्मारक जनता के लिए पहले से ही खुला है. लेकिन व्यवहार में, आगंतुकों का प्रवेश दोहरी-चाबी व्यवस्था पर निर्भर करता है, जिसके कारण एजेंसी स्थानीय सहयोग पर निर्भर है.

108 साल बाद भी नहीं मिली कस्टडी
आरटीआई से पता चलता है कि जिला प्रशासन के साथ पत्राचार “स्मारक के प्रबंधन में सहयोग सुनिश्चित करने” के लिए अभी भी जारी है.  1917 में आधिकारिक संरक्षण से लेकर 2022 में आंशिक तौर पर चाबी सुपुर्दगी तक, अशोक के सासाराम शिलालेख की कहानी प्रशासनिक निष्क्रियता और अनसुलझे धार्मिक दावों की है.

20 अगस्त 2025 को, एक अन्य आरटीआई का जवाब आया. इसमें एएसआई पटना सर्कल और विज्ञान शाखा द्वारा शिलालेख की वर्तमान स्थिति के संबंध में तैयार निरीक्षण रिपोर्ट (यदि उपलब्ध हो तो तस्वीरों सहित) की प्रति मांगी गई थी. इसके जवाब में बताया गया कि "इस कार्यालय के पास इस तरह के निरीक्षण का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है."जब 2023-24 के लिए वैज्ञानिक संरक्षण कार्य की समय-सीमा और स्थिति के बारे में पूछा गया, तो कार्यालय ने आगे जवाब दिया "इस कार्यालय द्वारा इस स्थल के लिए 2023-24 के लिए वैज्ञानिक संरक्षण की कोई विशिष्ट कार्य योजना तैयार नहीं की गई है. हालांकि, एएसआई पटना सर्कल के सहयोग से, उक्त शिलालेख की सतही चूने की परत को इस कार्यालय द्वारा हटा दिया गया है."

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आज भी, 108 साल बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इस राष्ट्रीय पुरातात्विक खजाने की चाबियां और कस्टडी स्थानीय मुस्लिम संरक्षकों के साथ साझा करनी पड़ रही है.

 

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