पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच टकराव की तरह ही महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और उद्धव ठाकरे सरकार के बीच शह-मात का खेल लगातार जारी है. राज्यपाल कोश्यारी ने बीजेपी नेताओं से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखकर ओबीसी आरक्षण मामले सहित राज्य विधानमंडल के आगामी मॉनसून सत्र की अवधि बढ़ाने और विधानसभा अध्यक्ष को नियुक्त करने को कहा है.
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को यह पत्र ऐसे समय लिखा है जब महाराष्ट्र में बीजेपी स्थानीय निकाय में ओबीसी आरक्षण के बहाली मुद्दे को लेकर उद्धव सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा खोले हुए हैं. राज्यपाल कोश्यारी ने 24 जून को लिखे गए अपने पत्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से कहा है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण का मामला लंबित होने के कारण स्थानीय निकाय चुनाव भी नहीं कराए जाने चाहिए.
दरअसल, पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की ओर से महाराष्ट्र के स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को रद्द किए जाने के बाद राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) ने हाल ही में पांच जिला परिषदों और 33 पंचायत समितियों में उन सीटों के लिए उपचुनाव की घोषणा की थी जो खाली हो गई थीं और सामान्य वर्ग में परिवर्तित हो गई थीं. इसके बाद से महाराष्ट्र में ओबीसी सियासत गरमा गई है और बीजेपी ने पिछड़ा वर्ग के अधिकारों को लेकर आक्रामक रुख अख्तियार कर रखा है.
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहित बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने पिछले दिनों में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर महाराष्ट्र की सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर अपनी-अपनी गिरफ्तारी दी थी. फडणवीस ने कहा था कि महाविकास अघाड़ी सरकार ओबीसी का राजकीय आरक्षण बहाल करवाए या फिर सत्ता मुझे सौंपे. यदि हम चार महीने में ओबीसी को पुनः राजकीय आरक्षण नहीं दिलवा सके तो राजनीति छोड़ देंगे. देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ठाकरे सरकार के चलते निकायों से ओबीसी का आरक्षण रद्द हो गया है.
पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में 23 जून को बीजेपी नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की थी और इस दौरान उन्होंने ओबीसी आरक्षण मुद्दे के साथ-साथ आगामी मानसून सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग की थी. इसके अलावा स्पीकर को नियुक्त करने के लिए अपील की थी.
वहीं, राज्यपाल कोश्यारी ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को संबोधित करते हुए कहा कि ये तीनों मुद्दे बेहद महत्वपूर्ण हैं, कृपया इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करें और उसकी जानकारी मुझे दें. राज्यपाल ने उन्हीं तीनों मुद्दों का जिक्र किया है, जिन्हें बीजेपी लेकर उद्धव सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. इसमें अहम मुद्दा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को बहाल करने का है.
बता दें कि महाराष्ट्र की सियासत में ओबीसी ही एक समय में बीजेपी का मजबूत जनाधार रहा है. गोपीनाथ मुंडे, नासा फरांदे, एकनाथ खडसे जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने राज्य में बीजेपी को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई है. हालांकि, गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद बीजेपी के पास अन्य पिछड़ा वर्ग का कोई बड़ा नेता नहीं रह गया है. खडसे भी बीजेपी का साथ छोड़कर एनसीपी में चले गए हैं.
ओबीसी आरक्षण मुद्दे के बहाने बीजेपी अपने पुराने ओबीसी जनाधार को फिर संभालने की कवायद में जुटी है. फडणवीस कहते हैं कि हमने न्यायालय में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण मान्य करवा लिया था, लेकिन उद्धव सरकार 15 महीने तक हलफनामा भी नहीं दायर कर सकी. इसी के चलते महाराष्ट्र में ओबीसी को आरक्षण गंवाना पड़ा. ओबीसी महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे कई राज्यों में बीजेपी की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.
यूपी में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव हैं और बीजेपी की सत्ता में वापसी का सारा दारोमदार ओबीसी वोटर पर ही टिका है. ऐसे में बीजेपी भले ही महाराष्ट्र की सड़कों पर उतरकर ओबीसी आरक्षण को लेकर दो-दो हाथ कर रही हो, लेकिन सियासी संदेश यूपी को भी दिया जा रहा है.
पिछले साल फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या के मामले को बीजेपी ने जिस तरह से उठाया था और बाद में देवेंद्र फडणवीस को बिहार में चुनावी प्रबंधन की जिम्मेदारी देकर सियासी समीकरण साधे गए थे. माना जा रहा है उसी पैटर्न पर इस बार ओबीसी आरक्षण को लेकर भी महाराष्ट्र से यूपी की राजनीति को साधने की कवायद है. ऐसे में राज्यपाल भी तीनों मुद्दों को लेकर सियासी रण में उतर गए हैं और उद्धव ठाकरे को फैसला लेने के लिए बाकायदा पत्र लिखा है.
वहीं, एनसीपी ने भी राज्यपाल से मांग की है कि वह अपने कोटे से 12 विधान पार्षद सदस्यों (एमएलसी) के तौर पर नामित करें. राज्य के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री एवं वरिष्ठ एनसीपी नेता नवाब मलिक ने पत्रकारों से कहा कि 05 जुलाई से शुरू हो रहे दो दिवसीय मॉनसून सत्र के दौरान राज्य विधानसभा के अध्यक्ष के पद के लिए चुनाव कराने के मुद्दे पर विचार किया जा रहा है.
उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी सरकार तीन महीने पहले ही मनोनीत कोटे एमएलसी के लिए नाम भेज चुकी है, लेकिन राज्यपाल ने अभी तक फैसला नहीं लिया है. उद्धव सरकार राज्यपाल कोश्यारी पर राज्य मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर की गई फाइल पर जान-बूझकर फैसला न लेने का आरोप लगा रही है. वहीं, अब राज्यपाल के द्वारा विधानसभा सत्र आगे बढ़ाने और ओबीसी आरक्षण मामले तक चुनाव टालने की बात कही गई है. इससे राज्यपाल और सरकार के बीच नया टकराव खड़ा हो सकता है.