लोकसभा चुनाव का माहौल है. सीटों पर उम्मीदवार उतारने का सिलसिला जारी है. इसी के साथ राजनीतिक दलों में आवा-जाही भी हो रही है. धड़ल्ले से सदस्यता ग्रहण समारोह हो रहे हैं और इसी के साथ सीटों के समीकरण भी बन-बिगड़ रहे हैं तो कहीं किसी के बने-बनाए गढ़ में सेंध लग रही है. चुनावी माहौल के बीच आज बात करते हैं, लोकसभा सीट नॉर्थ मुंबई की.
कभी कांग्रेस की गढ़ थी नॉर्थ मुंबई
नॉर्थ मुंबई लोकसभा सीट का राजनीतिक लिहाज से दिलचस्प इतिहास रहा है. सबसे बड़े लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक इस सीट में पश्चिमी उपनगरों से लेकर मुंबई के पास के ग्रामीण इलाके, गोरेगांव से लेकर वसई-विरार तक शामिल हैं. असल में किसी जमाने में यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही थी और यहां से वीके कृष्ण मेनन चुनाव लड़ते थे. इस निर्वाचन क्षेत्र में समाजवादी मतदाता भी थे, जिसके कारण जनता पार्टी को यहां जीत मिली थी.
साल 1989 के बाद इस सीट पर बीजेपी का पूरी तरह कब्ज़ा हो गया. इस सीट से बीजेपी के राम नाईक ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. हालांकि, 2004 में अभिनेता गोविंदा ने नाइक को हरा दिया था. शहरी मतदाताओं ने तो नाइक को वोट दिया लेकिन ग्रामीण मतदाताओं ने गोविंदा को वोट दिया था.
2004 और 2009 के चुनावों के बीच, लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन के कारण यहां जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ और इसके कारण गैर-मराठी मध्यम वर्ग अचानक से एक महत्वपूर्ण वोट बैंक बन गया, लिहाजा यह भाजपा के लिए आसान सीट बन गई, हालांकि, 2009 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस सीट से चुनाव लड़ा और उन्हें 1.52 लाख वोट मिले थे. उस समय तक भाजपा का गढ़ होने के बावजूद, 2009 में, मनसे भाजपा-शिवसेना गठबंधन के लिए वोटों को विभाजित करने में कामयाब रही. इस वजह से राम नाईक महज 5 हजार वोटों से संजय निरुपम से हार गए. नाइक ने दोबारा कभी यहां से चुनाव नहीं लड़ा.
2019 में उर्मिला मातोंडकर थीं कांग्रेस प्रत्याशी
2014 में कांग्रेस पार्टी के संजय निरुपम ने एक बार फिर इस सीट से चुनाव लड़ा. बीजेपी ने गोपाल शेट्टी को मैदान में उतारा, जिन्होंने 70.15 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की. कांग्रेस को एहसास हुआ कि इस क्षेत्र में अब उनकी पकड़ ढीली पड़ रही है. 2019 में कांग्रेस ने प्रयोग किया और उर्मिला मातोंडकर को मैदान में उतारा. पार्टी को उम्मीद थी कि एक मराठी उम्मीदवार स्थिति को बदल सकता है. हालाँकि, कुछ भी नहीं बदला. गोपाल शेट्टी को 71.40 फीसदी वोट मिले. यही वजह है कि अब इसे बीजेपी की सुरक्षित सीट माना जा रहा है.
पीयूष गोयल के लिए कितनी आसान है सीट
लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें हैं. चार बीजेपी के पास हैं, एक एकनाथ शिंदे की शिवसेना के पास है और एक कांग्रेस के पास है. यह बीजेपी का गढ़ है लेकिन मराठी मतदाता इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसलिए कांग्रेस इससे लड़ने को इच्छुक नहीं है. सीट बंटवारे के दौरान, जब शिवसेना (यूबीटी) ने यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी, तो सबसे पुरानी पार्टी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसे ऐसी सीट नहीं चाहिए जहां जीतना असंभव हो. ऐसे में उद्धव ठाकरे यहां से किसी मराठी उम्मीदवार को मैदान में उतार सकते हैं. उन्होंने कहा, पीयूष गोयल के लिए यह अभी भी आसान होगा और विपक् को यहां बहुत काम करना होगा. विपक्षी उम्मीदवारों को 4.5 लाख से अधिक वोटों के अंतर को कवर करने की आवश्यकता है, जो एक बहुत बड़ा क्रम है. 2017 के नगर निगम चुनावों में, भाजपा ने सिर्फ मुंबई के पश्चिमी उपनगरों से 40 से अधिक सीटें जीतीं. इसलिए गोयल के लिए आसान समय होगा.