बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना जारी है और रुझानों में यह तस्वीर साफ दिख रही है कि एनडीए मजबूत स्थिति में है, जबकि महागठबंधन पिछड़ता जा रहा है. लेकिन इन सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा में है प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी, जिसने चुनाव से पहले जोर-शोर से अपनी पहचान बनाने की कोशिश की थी.
प्रशांत किशोर ने 150 सीटों पर जीत का दावा किया था, लेकिन रुझान बताते हैं कि पार्टी न सिर्फ जीत से दूर है बल्कि ज्यादातर सीटों पर चौथे या पांचवें स्थान पर सिमटती दिख रही है. चुनावी तैयारी में पार्टी ने कोई कमी नहीं छोड़ी थी. विस्तृत जनसंपर्क अभियान, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर जोर, युवाओं को जोड़ने की कोशिश - सब कुछ प्रशांत ने खुद नेतृत्व करते हुए किया. इसके बावजूद जनता का भरोसा पार्टी की ओर नहीं झुका.
विश्लेषकों का मानना है कि बिहार की राजनीति में नई पार्टी के लिए जगह बनाना बेहद कठिन होता है. जनसुराज पार्टी को जहां अपनी पहचान बनानी थी, वहीं उसे क्षेत्रीय समीकरणों, जातिगत राजनीति, और पुराने दलों की मजबूत जड़ों से संघर्ष भी करना पड़ा.
वहीं, खुद प्रशांत किशोर की छवि भले ही एक सफल चुनावी रणनीतिकार की रही हो, लेकिन पार्टी नेतृत्व और संगठनात्मक अस्तित्व का फासला अभी पाटना बाकी जान पड़ता है.
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दोपहर 12 बजे तक के रुझानों में जनसुराज पार्टी एक भी सीट पर निर्णायक बढ़त नहीं बना सकी. यह नतीजे पार्टी के लिए निराशाजनक हैं, खासकर तब जब प्रशांत ने खुद बड़े दावे किए थे.
इस चुनाव ने यह भी साबित किया है कि बिहार की राजनीति में सिर्फ रणनीति, प्रचार या सोशल मीडिया कैंपेन से जमीन नहीं बनती - जनता का विश्वास और जमीनी पकड़ ही असली कसौटी होती है. और जनसुराज पार्टी इस कसौटी पर फिलहाल खरी नहीं उतर सकी.