कभी राजकीय स्कूल मेरिट में रहा करते थे. यहां से निकलने वाले छात्र डॉक्टर इंजीनियर बना करते थे. लेकिन अब हाईटेक निजी स्कूलों ने इन सरकारी स्कूलों को कहीं न कहीं पीछे छोड़ दिया है. अब छात्रों की संख्या में भी कमी लगातार देखी जा रही है और मेरिट भी कम आने लगी है.
सरकारी स्कूल की टीचर गार्गी श्रीवास्तव के मुताबिक सरकारी स्कूलों में बच्चों के सब्जेक्ट भी कम हुए हैं. पहले परीक्षाओं में तीन-तीन पेपर हुआ करते थे लेकिन अब नहीं, टीचरों की कमी भी इसका कारण है. लैब में सुविधाएं भी कम हैं. लाइब्रेरी भी अपडेट नहीं रहती. कोरोना काल में पुराने टीचर ऑनलाइन क्लास नही कर पा रहे हैं.
ज्यादातर राजकीय स्कूल 70% कार्यवाहक प्रधानाचार्यों के भरोसे चल रहे हैं. छात्रों के लिए विषय तो कम्प्यूटर का है लेकिन लैब नहीं है. पीने के पानी के लिए उचित व्यवस्था की भी कमी है. वही निजी स्कूलों में पढ़ाई के साथ हर सुविधा बच्चों को दी जा रही है. बच्चे हर एक्टिविटी कर रहे हैं लेकिन इन राजकीय स्कूलों में वही पुराना पैटर्न ये वजह हो सकता है.
अब बात करें निजी स्कूलों की तो पढ़ाई के साथ बच्चों के लिए तमाम एक्टिविटी कराई जाती है ,इंग्लिश टू इंग्लिश लेैंग्वेज भी निजी स्कूलों में होती है. वहीं आजकल पेरेंट्स भी चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी अच्छी एजुकेशन लें और इंग्लिश बोलें. अब माता पिता भी राजकीय स्कूलों में एडमिशन न कराकर निजी सकूलों में बच्चो का दाखिला करा देते हैं.
वहीं पेरेंट्स मामलों के अधिवक्ता अभिषेक चौहान की मानें तो राजकीय कॉलेज में बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया जा रहा. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि हम इन्वर्टर और आरओ क्यों लगवाते हैं क्योंकि उन्हें प्रॉपर बिजली और शुद्ध पीने का पानी मिले, इसीलिए ज्यादातर पेरेंट्स प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़वा रहे हैं. उन्हें पता है कि सरकारी स्कूलों में अब वो पढ़ाई नहीं रही न वो हाईटेक व्यवस्था है.
लोग अपने बच्चों को हर तरह की शिक्षा देना चाहते हैं लेकिन राजकीय विद्यालयों में वो व्यवस्था अभी भी नहीं है. लेकिन अभी भी सरकार अगर इसपर ध्यान दे तो राजकीय विद्यालय भी अपनी पुरानी छवि वापस पा सकते हैं. वहीं ज्यादातर पेरेंट्स निजी स्कूल कॉलेजों में बच्चों को पढ़वाना चाहते हैं.