ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी एयरबेस पर सटीक हमले करके ब्रह्मोस मिसाइलों ने भारत की डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग क्षमता पर पूरी दुनिया का भरोसा बढ़ा दिया है. ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही इस मिसाइल में फिलीपींस और इंडोनिशिया खरीदना चाहते थे. ऑपरेशन सिंदूर के बाद इंडोनेशिया नए सिरे से इस मिसाइल को खरीदने में जुट गया है.
इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री सजफरी सजमसुद्दीन के इस महीने के आखिर में भारत दौरे पर आने वाले हैं. 26 से 28 नवंबर के बीच होने वाले इस दौरे में ब्रह्मोस मिसाइल डील पर विस्तार से बात होगी. इस दौरे में इंडोनेशिया का रक्षा प्रतिनिधिमंडल भी साथ होगा. हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी लखनऊ में ब्रह्मोस इवेंट के दौरान इंडोनेशिया की दिलचस्पी की पुष्टि की थी.
इंडोनेशिया दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला मुस्लिम देश है. यहां लगभग 30 करोड़ मुस्लिम रहते हैं. भारत और इंडोनेशिया के रिश्ते प्रगाढ़ रहे हैं.
इस साल जनवरी में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो तीन दिन के भारत दौरे पर आए थे. इस दौरान वे रिपब्लिक डे परेड में चीफ गेस्ट भी थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी बातचीत में डिफेंस प्रोडक्शन और सप्लाई चेन पार्टनरशिप में गहरे सहयोग पर भी बात हुई थी.
इंडोनेशिया की दुश्मनी किससे है?
इंडोनेशिया की सीधी सैन्य दुश्मनी किसी एक देश से नहीं है, लेकिन कई ओर समुद्री सीमाओं से घिरे होने की वजह से उसकी मुख्य चिन्ताएं क्षेत्रीय सामुद्रिक सुरक्षा, आंतरिक स्थिरता और विशेषकर चीनी विस्तार के संदर्भ में हैं. चीन की विस्तारवाद की नीति से इंडोनेशिया भी त्रस्त रहता है. ब्रह्मोस मिसाइल की खरीदारी उसके सुरक्षा संतुलन का हिस्सा है.
इंडोनेशिया अपनी समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए ब्रह्मोस मिसाइल को एक मजबूत विकल्प मानता है, ताकि चीनी समुद्री गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके और अपनी सम्प्रभुता मजबूत बनाई जा सके.
चीन अपनी विस्तारवाद की नीति के तहत दक्षिण चीन सागर के बड़े हिस्से पर दावा करता है, जिसमें इंडोनेशिया का नाटूना समुद्री क्षेत्र भी आता है. वहां चीनी कोस्टगार्ड और मछली पकड़ने वाली नौकाएं बार-बार इंडोनेशिया के विशेष आर्थिक क्षेत्र में अवैध रूप से प्रवेश करती रही हैं. इससे इंडोनेशियाई मछुआरों और समुद्री संसाधनों को नुकसान होता है.
चीन अपने आर्थिक निवेश और व्यापारिक संबंधों के माध्यम से इंडोनेशिया को कूटनीतिक दबाव में रखने की कोशिश करता है, जिससे इंडोनेशियाई संप्रभुता पर चुनौती आती है.
इंडोनेशिया पारंपरिक दुश्मनी की जगह अधिकतर आंतरिक और ट्रांसनेशनल थ्रेट्स को प्राथमिकता देता है, जैसे समुद्री चोरी, आतंकवाद और डिजिटल सुरक्षा.
रक्षा और कूटनीति संबंधी मुद्दों पर रिपोर्ट प्रकाशित करने वाली वेबसाइट द 'डिप्लोमैट' ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि इंडोनेशिया मलक्का, सुंडा, लोम्बोक जैसे महत्वपूर्ण चोक पॉइंट्स नियंत्रित करता है, जहां से 40% वैश्विक व्यापारिक जहाज गुजरते हैं. इन स्ट्रेट्स की चौड़ाई 18 किमी (लोम्बोक) से 300 किमी (मासर) तक है. इंडोनेशिया ऐसे जगहों पर अपनी रक्षा ताकत मजूबत करना चाहता है. यहां ब्रह्मोस की तैनाती इंडोनेशिया को मजूबती प्रदान करेगी.
भारत से ही क्यों ब्रह्मोस मिसाइल खरीदना चाहता है इंडोनेशिया
इंडोनेशिया अपने हथियारों के स्रोत में विविधता चाहता है ताकि रूस या चीन जैसे देशों पर निर्भरता कम हो. भारत से ब्रह्मोस खरीदकर वह भविष्य की राजनीतिक या सैन्य अनिश्चितताओं का सामना बेहतर तरीके से कर सकता है.
द 'डिप्लोमैट' के अनुसार ब्रह्मोस इंडोनेशिया की मौजूदा एंटी-शिप मिसाइल क्षमता को मजबूत करेगी. वर्तमान में सिर्फ एक फ्रिगेट पर रूसी याखोंट मिसाइल तैनात है. इसकी ताकत सीमित है. ब्रह्मोस की स्पीड (मैक 2.8-3.0) और उन्नत गाइडेंस सिस्टम इसे बेहतर बनाता है.
CAATSA का डर नहीं
भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने की एक प्रमुख वजह अमेरिकी प्रतिबंधों से बचना है. अमेरिका का CAATSA (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) रूस और चीन से हथियार खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाता है. ब्रह्मोस का उत्पादन भारत में होता है. इसलिए इंडोनेशिया को अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले CAATSA का डर नहीं है. फिलीपींस के साथ भारत की ब्रह्मोस डील इस बात उदाहरण है कि इस पर CAATSA के प्रावधान नहीं लागू होते हैं.
भारत और इंडोनेशिया के बीच अच्छे संबंध है. इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो की "गुड नेबर पॉलिसी" के अनुरूप यह डील भारत के साथ संबंधों को मजबूत करेगा.
दरअसल इंडोनेशिया के लिए भारत से ब्रह्मोस खरीदना सीधे-सीधे चीन के प्रभाव से बचाव, सप्लाई चेन विविधता और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन से जुड़ा कदम है.