35 साल पुराने रुबैया सईद अपहरण कांड में मंगलवार को स्पेशल TADA कोर्ट के फैसले ने CBI की कार्रवाई पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया. जांच एजेंसी द्वारा एक दिन पहले गिरफ्तार किए गए शफात अहमद शांगलू को कोर्ट ने रिहा कर दिया. इसके साथ ही CBI की कस्टडी मांगने वाली अर्जी को सीधे खारिज कर दिया.
TADA कोर्ट ने कहा कि 8 दिसंबर 1989 की किडनैपिंग से जुड़े केस की चार्जशीट में शफात शांगलू का कोई उल्लेख ही नहीं था, इसलिए उसकी कस्टडी का कोई आधार नहीं बनता. CBI ने दावा किया था कि शांगलू आतंकी संगठन JKLF से जुड़ा था. इसके साथ ही रुबैया सईद को अपहरण करने की साजिश में शामिल था.
शफात अहमद शांगलू को 35 साल बाद श्रीनगर के निशात इलाके में उसके घर से गिरफ्तार किया गया था. जांच एजेंसी ने बताया था कि वह लंबे समय से फरार चल रहा था. उस पर 10 लाख रुपए का इनाम भी घोषित था और वह यासीन मलिक का करीबी सहयोगी था. कोर्ट ने CBI की दलीलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि ठोस आधार नहीं है.
इसके बाद उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया. CBI की रिमांड अर्जी भी यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि चार्जशीट में उसका नाम नहीं है. जांच एजेंसी की तरफ से कोई नया सबूत पेश नहीं किया गया. रिहाई के बाद शांगलू ने कहा कि उसका JKLF या यासीन मलिक से कोई संबंध नहीं है. वो श्रीनगर में खुले तौर पर रह रहा था.
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शफात शांगलू ने अपने फरार होने के आरोप को पूरी तरह गलत बताया है. उसने कहा कि उसे एक पुलिस स्टेशन से कॉल आया था और जैसे ही वह वहां पहुंचा, उसे CBI ने कस्टडी में ले लिया. उसने खुद को एक बिजनेसमैन बताते हुए कहा कि किडनैपिंग केस से उसका कोई जुड़ाव नहीं है. शांगलू के परिवार ने भी CBI के दावों को खारिज किया.
उसके परिवार का कहना है कि वह पासपोर्ट ऑफिस श्रीनगर में रिन्यूअल प्रक्रिया के लिए गया था. इसी दौरान पुलिस स्टेशन निशात ने उसे बुलाया. जब वह वहां पहुंचा, तब जांच एजेंसी ने उसे गिरफ्तार कर लिया. परिवार ने स्पष्ट कहा कि शफात शांगलू न तो फरार था और न ही किसी तरह से किसी केस से जुड़ा हुआ था.
CBI ने गिरफ्तारी के बाद दावा किया था कि शांगलू JKLF का पदाधिकारी रहा है. वो फाइनेंस की जिम्मेदारी संभालता था. उसने यासीन मलिक और अन्य लोगों के साथ मिलकर किडनैपिंग की साजिश को अंजाम दिया था. यासीन मलिक फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में टेरर फंडिंग केस में सजा काट रहा है.