डिफाल्ट करने वाली कंपनी इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) में कथित जालसाजी और कुप्रबंधन की जांच करने वाले गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) को पता चला है कि इस मामले में ऑडिट और रेटिंग करने वाली कंपनियों ने अपनी भूमिका सही से नहीं निभाई. इस बीच भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के लिए खुलासे की शर्तों को और कड़ा कर दिया है.
डेलॉयट और केपीएमजी जैसी दिग्गज ऑडिटिंग फर्म ने कम से कम 22 बार मानकों का उल्लंघन किया है. इसके अलावा आईएलऐंडएफएस संकट में सबसे बड़ी खलनायक क्रेडिट रेटिंग एजेंसिंया रही हैं, क्योंकि उन्होंने IL&FS फाइनेंसियल सर्विसेज (IFIN) के कॉमर्शियल पेपर और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर्स (एनसीडीज) को लगातार सकारात्मक और प्रभावशाली रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी की वित्तीय हालत खस्ताहाल थी. इस बीच भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के लिए खुलासे की शर्तों को और कड़ा कर दिया है.
रेटिंग में पारदर्शिता लाने के लिहाज से सेबी ने सख्त कदम उठाया है. सेबी ने निर्देश दिया है कि रेटिंए एजेसियां हर रेटिंग कैटेगरी के लिए 'डिफाल्ट की संभावना' वाले एक समान बेंचमार्क तैयार करें. सेबी और आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) पहले से ही रेटिंग एजेसिंयों के परिचालन की कड़ी निगरानी कर रहे हैं और दोनों नियामकीय निकाय इन एजेंसियों के बिजनेस मॉडल की छानबीन कर रहे हैं.
गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) द्वारा कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को सौंपी गई जांच रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है. जांच के मुताबिक डेलॉयट हासकिन्स ऐंड सेल्स तथा केपीएमजी की सहायक कंपनी बीएसआर ऐंड एसोसिएट्स ने IFIN की ऑडिट में गड़बड़ किया था. न्यूज एजेंस रॉयटर्स के मुताबिक इन ऑडिट फर्म ने कंपनी के बहीखाते को साफ-सुथरा बताया और आईएफआईएन में किसी भी तरह की जालसाजी वाली गतिविधि का खुलासा नहीं किया.
दूसरी तरफ, न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, दस्तावेजों से पता चलता है कि कई निवेशकों ने IL&FS की वित्तीय इकाई के एनसीडी और वाणिज्यिक पेपरों की खरीद की थी, क्योंकि उन्होंने यह फैसला रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई उच्च रेटिंग को देखकर किया था.
केनरा एचएसबीसी ओबीसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी अनुराग जैन ने आईएफआईएन के कॉमर्शियल पेपर में करीब 30 करोड़ रुपये और एनसीडीज में करीब 10 करोड़ रुपये का निवेश किया था. उन्होंने बताया कि उनका निवेश का फैसला मुख्य तौर से सीएआरई और आईसीआरए जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग से प्रभावित था.
दस्तावेजों के मुताबिक, साल 2013 से 2018 के अवधि के दौरान जिन एजेंसियों ने आईएफआईएन को रेटिंग प्रदान की थी, उनमें सीएआरई रेटिंग्स, आईसीआरए लि., इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च और ब्रिकवर्क रेटिंग्स इंडिया शामिल हैं. आईएफआईएन के एनसीडीज में करीब 115 करोड़ रुपये के निवेश के साथ ही ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने भी आईएफआईएन को मिली रेटिंग के कारण धोखा खाया है. न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने आईएफआईएन के एनसीडीज में 62 करोड़ रुपये का निवेश किया था.
रेटिंग एजेंसियों को लेकर एसएफआईओ ने दस्तावेज में कहा, "सभी चारों रेटिंग एजेंसियों ने आईएफआईएन के दीर्घकालिक और अल्पकालिक इंस्ट्रमेंट्स को उच्चतम रेटिंग प्रदान की, जबकि कंपनी का प्रबंधन लगातार असली तथ्य छुपा रहा था और धोखाधड़ी में लिप्त था.' दस्तावेज में कहा गया कि इसलिए आईएलऐंडएफएस की चल रही जांच के सिलसिले में आईएफआईएन को उच्च रेटिंग देने वाली इन रेटिंग एजेंसियों की भी भूमिका की आगे जांच की जानी चाहिए.