सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों के लिए एक राहत भरा फैसला सुनाया है. कोर्ट कहा है कि अगर बिल्डर फ्लैट या प्लॉट देने में देर करता है, तो उसे खरीदार को उसी ब्याज दर से पैसा वापस करना होगा, जिस दर पर वह खरीदार से देरी से भुगतान करने पर वसूलता था. कोर्ट ने एक खास मामले में कहा -' खरीदार को एक दशक से ज़्यादा लंबे इंतज़ार के कारण जो परेशानी और चिंता झेलनी पड़ी है, उसके लिए कंज्यूमर कोर्ट द्वारा दिया गया 9% ब्याज का फ़ैसला काफ़ी नहीं है.'
सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को आदेश दिया है कि वह मूल राशि पर 18% की ऊंची दर से ब्याज लगाकर, दो महीने के भीतर खरीदार को पूरा पैसा वापस करे. यानी बिल्डर ने खरीदार पर 18% ब्याज लगाया था, तो अब उसे खुद भी 18% भरना पड़ेगा.
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यह मामला हरियाणा के पार्क लैंड प्रोजेक्ट से जुड़ा है, जहा एक खरीदार ने मार्च 2006 में 30.3 लाख रुपये में एक प्लॉट बुक किया था. एग्रीमेंट के अनुसार, कब्ज़ा 24 महीने के भीतर मिलना था, खरीदार द्वारा डिफ़ॉल्ट करने पर बिल्डर उससे 18% प्रति वर्ष की दर से विलंबित भुगतान शुल्क (Late Payment Charges) लेता था.
बिल्डर ने लेआउट प्लान में बदलाव के कारण खरीदार को एक वैकल्पिक प्लॉट आवंटित करने की सूचना दी और अतिरिक्त राशि की मांग की. 2015 तक, खरीदार कुल ₹43,13,312/- का भुगतान कर चुका था, लेकिन उसे प्लॉट नहीं मिला. खरीदार ने समझौता रद्द कर दिया. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने बिल्डर को मूल राशि ₹43,13,212/- 9% साधारण ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने NCDRC द्वारा दिए गए 9% ब्याज दर को अपर्याप्त मानते हुए, इसे 18% प्रति वर्ष कर दिया, जो दर बिल्डर खरीदार से डिफ़ॉल्ट करने पर वसूलता था.
कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसा कोई कानूनी सिद्धांत नहीं है कि बिल्डर द्वारा डिफ़ॉल्ट पर ली गई ब्याज दर को कभी भी खरीदार को नहीं दिया जा सकता. कानून यह स्थापित करता है कि ब्याज की राशि उचित होनी चाहिए. क्या उचित है, यह हर मामले में भिन्न होता है." यह निर्णय प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है.