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राहुल गांधी ने कहा- अडानी के पीछे शेल कंपनियों का खेल, जानिए क्या है शेल कंपनी? कौन चलाता है?

संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने बोला कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लिखा है कि अडानी की भारत के बाहर शेल कंपनी है. सवाल है कि शेल कंपनी किसकी है? तो चलिए जान लेते हैं कि शेल कंपनियां क्या होती हैं और इन्हें क्यों खोला जाता है?

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कैसे काम करती हैं शेल कंपनियां?
कैसे काम करती हैं शेल कंपनियां?

अडानी ग्रुप (Adani Group) के मामले पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा मचा है. विपक्ष सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहा है. दूसरी तरफ मंगलवार को संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अडानी के मामले को लेकर सरकार पर हमला बोला. संसद में अपने भाषण के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि कुछ दिन पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई उसमें लिखा था अडानी की भारत के बाहर शेल कंपनी है. सवाल है कि शेल कंपनी किसकी है? हजारों करोड़ रुपया शेल कंपनी भारत में भेज रही है यह किसका पैसा है? शेल कंपनी (Shell Company) के नाम सुनते ही लोगों ने सर्च करना शुरू कर दिया कि आखिर ये कैसी कंपनी होती और कोई इसे क्यों खोलता है?

क्या होती हैं शेल कंपनियां?

आपको पनामा पेपर्स लीक याद है...? इसे सबसे बड़ा डेटा लीक बताया गया था. इसमें लीक लाखों डॉक्यूमेंट्स पता चला था कि दुनिया भर के राजनेताओं और अमीरों ने पनामा लॉ फर्म के माध्यम से कथित तौर पर शेल कंपनियों में अरबों डॉलर छिपाए थे. कथित तौर पर इस फर्म के कुछ ग्राहकों को टैक्स से बचने की भी अनुमति दी थी. शेल कंपनी एक ऐसा बिजनेस है, जिसे पैसे रखने और किसी अन्य संस्था के वित्तीय लेनदेन का प्रबंधन करने के लिए बनाया जाता है. लेकिन ये कंपनियां सिर्फ कागजों पर ही होती हैं. सामान्य कंपनियों की तरह इनमें कर्मचारी नहीं होते हैं. 

ना प्रोडक्ट बेचती हैं और ना पैसे कमाती हैं

शेल कंपनियां न तो पैसे कमाती हैं और न ही ग्राहकों को कोई प्रोडक्ट और सर्विस प्रदान करती हैं. शेल कंपनियां सिर्फ उनके पास मौजूद संपत्ति को ट्रैक करने काम करती हैं. शेल कंपनियों के बिजनेस से मालिकों और उससे जुड़े लोगों को कई तरह से फायदे मिलते हैं. ये कंपनिया फिजिकल लेन-देन नहीं करती पर मनी लॉन्ड्रिंग का आसान जरिया होती है. इन्हें 'मुखौटा कंपनी' या 'छद्म कम्पनी' भी कहा जाता है.

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शेल कंपनियां मिनिमम पेड अप कैपिटल के साथ काम करती हैं और इनका डिविडेंड इनकम जीरो होता है. इसके अलावा ऐसी कंपनियों का टर्नओवर और ऑपरेटिंग इनकम भी अधिक नहीं होता है. आमतौर पर कहा जाता है कि ऐसी कंपनियां का इस्तेमाल काले धन को सफेद करने के लिए इस्तेमाल होता है. शेल कंपनियों का इस्तेमाल टैक्स बचाने के लिए भी किया जाता है.

क्यों बनाई जाती हैं शेल कंपनियां?

कंपनियां पनामा जैसे टैक्स हेवन देश में शेल कंपनियां बना सकती हैं और अपने देश में टैक्स का बिल कम कर सकती हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि कानून के अनुसार, कुछ टैक्स हेवन देश में टैक्स से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी देने की जरूरत नहीं होती है. इससे टैक्स और ऑफशोर अकाउंट को छिपाना आसान हो जाता है. पनामा के अलावा, अन्य टैक्स हेवन देशों में स्विट्जरलैंड, हांगकांग और बेलीज शामिल हैं. दुनिया के कुछ हिस्सों में शेल कंपनियों को पूरी तरह से कानूनी संस्था भी माना जाता है. 

शेल कंपनियां अक्सर उन लोगों की पहचान छिपाने के लिए स्थापित की जाती हैं, जो उनके भीतर अपनी संपत्ति छिपाते हैं. आम तौर पर शेल कंपनियों के अपने पते होते हैं. अमेरिका को शेल कंपनियों को SEC के साथ पंजीकरण करने की आवश्यकता है. इसलिए वे नियमित बिजनेस (कम से कम कागज पर) की तरह लगती हैं, लेकिन वास्तव में वो मुखौटा होती हैं.

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शेल कंपनियों को कौन चलाता है?

अगर कोई किसी शेल कंपनी के बारे में जानकारी हासिल करने का प्रयास करता है, तो वो उसके कारोबार को मैनेज करने वाले लोगों तक ही पहुंच पाएगा. ऐसे लोग वास्तव में कंपनी के अकाउटेंट या फिर वकील होते हैं. यह पता लगाना मुश्किल होता है कि शेल कॉर्पोरेशन के अंदर जमा पैसे का मालिक कौन है. कभी-कभी कंपनियां मनी लॉन्ड्रिंग जैसी अवैध गतिविधियों में शामिल होकर अपनी गोपनीयता का फायदा उठाती हैं. शेल कंपनियों का कानूनी रूप से या अवैध रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं... इसके बीच की रेखा बेहद ही धुंधली बताई जाती है.

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी ग्रुप के शेयर ऐसे टूटे के 10 दिनों में 10 लाख करोड़ रुपये डूब गए. हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर दशकों से स्टॉक हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी में शामिल होने का आरोप लगाया गया था.

 

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