क्या दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका डिफॉल्ट हो जाएगा? IMF ने भी दी चेतावनी

सुपरपावर कहा जाने वाला अमेरिका आर्थिक रूप से संपन्न देशों में भी गिना जाता है. दुनिया की सभी बड़ी वित्तीय संस्थाओं में भी अमेरिका का दबदबा है. जब कोई देश आर्थिक संकट से घिरता है तो अमेरिका से मदद मांगता है. लेकिन वही अमेरिका आज डिफॉल्ट होने की कगार पर है. आइए जानते हैं कि इसके पीछे क्या कारण हैं...

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क्या अमेरिका डिफॉल्ट हो जाएगा? क्या अमेरिका डिफॉल्ट हो जाएगा?

सुदीप कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 16 मई 2023,
  • अपडेटेड 2:29 PM IST

दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका इन दिनों एक संकट में घिरा हुआ है. अमेरिका का राजकोषीय भंडार खत्म होने की कगार पर है. यूएस ट्रेजरी ने तीन महीने पहले ही चेतावनी दी थी कि अमेरिकी सरकार ने कर्ज (उधार) लेने की तय सीमा को पार कर लिया है.

इसका तात्पर्य यह है कि अमेरिकी सरकार के पास अब अपने बिलों का भुगतान करने और अपने कर्ज चुकाने के लिए खजाने में पैसे नहीं बचे हैं. ट्रेजरी की चेतावनी के बाद से ही अमेरिका लगातार कोशिश कर रहा है कि राजकोषीय भंडार को बरकरार रखा जाए, जिससे सरकार अपने बिलों का भुगतान जारी रख सके. लेकिन देश की दोनों प्रमुख पार्टियां इसका हल नहीं ढूंढ पाई हैं. 

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी पिछले हफ्ते चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिका डिफॉल्ट होता है तो पूरे विश्व में आर्थिक अस्थिरता आ सकती है और इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. IMF की कम्यूनिकेशन डायरेक्टर जूली कोजैक ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "अगर अमेरिका डिफॉल्ट होता है तो इससे केवल अमेरिका को ही नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे."

अमेरिकी ट्रेजरी की चेतावनी 

पिछले सप्ताह अमेरिकी ट्रेजरी ने चेतावनी दी थी कि जून में बिलों का भुगतान करने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं होंगे. यूएस ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने अमेरिकी कांग्रेस को एक पत्र लिखते हुए सरकार को आगाह किया था कि खजाने में पैसे की कमी के कारण हम जून में अमेरिकी सरकार पर बकाया भुगतान नहीं कर पाएंगे. ऐसे में बाइडेन सरकार कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाए, जिससे अगले महीने का बिल भुगतान किया जा सके. 

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अमेरिका में कर्ज लेने की लिमिट तय है. इसे बढ़ाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संसद के चार शीर्ष नेताओं को व्हाइट हाउस में तलब किया था. मंगलवार को रिपब्लिकन पार्टी के नेता और हाउस के स्पीकर केविन मैककार्थी सहित कई नेताओं के साथ बाइडेन ने बैठक की. 

क्या डिफॉल्ट हो जाएगा अमेरिका?

यूएस ट्रेजरी ने संसद को लिखे अपने लेटर में स्पष्ट कर दिया है कि भुगतान जारी रखने के लिए सरकार को कर्ज लिमिट बढ़ानी होगी. लेकिन इस मुद्दे को लेकर अमेरिका की दोनों प्रमुख पार्टियां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पूरी तरह से बंटी हुई हैं. राष्ट्रपति जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी कर्ज सीमा बढ़ाने के पक्ष में है. लेकिन कर्ज सीमा बढ़ाने वाला बिल काफी समय से हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में लटका हुआ है.

दरअसल, अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स (अपर हाउस) में ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के पास बहुमत है. रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि हम बिल पास कर सरकार को सपोर्ट करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बाइडेन सरकार भी बजट में महत्वपूर्ण कटौती के लिए तैयार हो. वहीं, सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.

बाइडन सरकार का आरोप है कि बिल पारित नहीं हो, इसके लिए रिपब्लिकन्स तिकड़म अपना कर अपने पॉलिटिकल एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं. ताकि डिफॉल्ट होने की तारीख के नजदीक आने के दबाव में उनकी सरकार विपक्षी पार्टी की खर्चों में कटौती की शर्त को मान ले. 

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ट्रम्प की पार्टी ने रखी ये शर्त

अप्रैल में रिपब्लिकन्स ने कर्ज सीमा बढ़ाने की अनुमति वाला ये विधेयक इस शर्त पर पारित किया था कि इसके बदले एक दशक में खर्च में 4.8 ट्रिलियन डॉलर की कटौती की जाएगी. बाइडन सरकार ने खर्च में कटौती वाली शर्तों के साथ बातचीत करने से इनकार कर दिया था.

डिफॉल्ट की समय-सीमा नजदीक आ जाने के बावजूद रिपब्लिकन्स बाइडन सरकार पर दबाव बनाने के लिए अपनी शर्तों पर अड़े हुए हैं. रिपब्लिकन्स इससे पहले 2011 में भी दबाव की राजनीति करने में सफल रहे थे और डिफॉल्ट होने से 72 घंटे पहले सरकार को खर्च में कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा था.

अगर कर्ज सीमा नहीं बढ़ाई जाती है और दोनों पार्टियों के बीच गतिरोध जारी रहता है तो अमेरिका अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. 

क्या है कर्ज सीमा?

कर्ज सीमा वह तय राशि है, जहां तक अमेरिकी सरकार सामाजिक सुरक्षा, चिकित्सा और सेना जैसी सेवाओं के भुगतान के लिए उधार ले सकती है. प्रत्येक वर्ष सरकार टैक्स, सीमा शुल्क और अन्य माध्यमों से राजस्व जुटाती है लेकिन खर्च उससे अधिक करती है. यह घाटा साल के अंत में देश के कुल कर्ज में जुट जाता है. यह कर्ज प्रत्येक साल लगभग 400 बिलियन से 3 ट्रिलियन डॉलर तक होती है.

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कर्ज लेने के लिए ट्रेजरी सरकारी बॉन्ड जारी करती है. इस कर्ज को ब्याज सहित वापस भुगतान करना होता है. एक बार जब अमेरिकी सरकार इस कर्ज लिमिट तक पहुंच जाती है तो ट्रेजरी और बॉन्ड नहीं जारी कर सकती है. इससे सरकार के पास पैसे की कमी हो जाती है. 

इस कर्ज लिमिट को निर्धारित करने की जिम्मेदारी अमेरिकी अपर हाउस 'कांग्रेस' के पास है. 1960 के बाद से अमेरिकी इतिहास में अब तक 78 बार कर्ज लिमिट को बढ़ाया गया है. कई बार कर्ज सीमा को निलंबित भी किया जा चुका है.  

अगर अमेरिका डिफॉल्ट हुआ तो क्या होगा?

अमेरिका इससे पहले कभी भी डिफॉल्ट नहीं हुआ है. इसलिए अगर अमेरिका डिफॉल्ट होता है, तो वास्तव में क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है. लेकिन यह बात साफ है कि ऐसा होने पर अमेरिका और पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बुरा असर ही पड़ेगा.

अमेरिकी ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने इस साल की शुरुआत में संसद को लिखे पत्र में कहा था, "अगर अमेरिका भुगतान करने से चूकता है, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था, अमेरिका के लोगों की आजीविका और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. निवेशकों का अमेरिकी डॉलर पर से विश्वास उठ जाएगा, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से कमजोर होगी. कंपनियां नौकरियों में कटौती करेंगी. इसके अलावा, अपनी सभी योजनाओं को जारी रखने के लिए अमेरिकी सरकार के पास रिसोर्सेज नहीं होंगे. 

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अमेरिका का कर्ज इतना अधिक क्यों?

किसी भी देश का कर्ज तब बढ़ता है, जब सरकार राजस्व से अधिक पैसा खर्च करती है. या खर्च की तुलना में राजस्व में कमी आ जाती है. अमेरिकी कर्ज भी उसी तरह का है. अमेरिकी इतिहास में हमेशा से देश पर कुछ न कुछ कर्ज रहा है. लेकिन 80 के दशक में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की ओर से टैक्स में भारी कटौती की गई. टैक्स में कटौती के बाद सरकार के राजस्व में कमी आ गई और खर्च करने के लिए अधिक कर्ज लेने की जरूरत पड़ने लगी. जिससे अमेरिका पर कर्ज काफी तेजी से बढ़ने लगा. 

कर्ज को कम करने के लिए सरकार ने 90 के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद रक्षा बजट में कटौती की अनुमति दी. इसके बाद अमेरिकी राजस्व में वृद्धि भी हुई. लेकिन फिर 2000 के दशक की शुरुआत में डॉटकॉम बुलबुला आया, जिससे अमेरिका में मंदी आ गई.

1990 के दशक में डॉटकॉम कंपनियों में निवेश करके अमेरिकी खूब मुनाफा कमा रहे थे. लेकिन तेजी से ग्रो कर रही कंपनियां कई बार वर्षों तक घाटे में रहती है. डॉटकॉम कंपनियों के साथ भी यही हुआ. साल 2000 में चीजें विपरीत जाने लगीं और डॉटकॉम कंपनियों का शेयर काफी गिर गया. इससे कई अमेरिकी निवेशकों का पैसा डूब गया. इसे ही डॉटकॉम बुलबुला कहा जाता है.

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मंदी से उबरने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 2001 और 2003 में दो बार टैक्स में कटौती की. इसके अलावा इराक और अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान अमेरिका ने लगभग 6 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए. जिससे एक बार फिर अमेरिकी कर्ज में बढ़ोतरी हुई.

इसके बाद 2008 में भयंकर मंदी आ गई. मंदी के कारण अमेरिका में बेरोजगारी दर 10 प्रतिशत तक पहुंच गई. इस वजह से सरकार को एक बार फिर बैंकों को उबारने और सोशल सर्विस पर भारी रकम खर्च करना पड़ा. 

देश अर्थव्यवस्था की पटरी लौटी ही थी कि 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प सरकार ने टैक्स में एक बड़ी कटौती की घोषणा की. ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान अमेरिकी कर्ज में लगभग 7.8 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई. उसके बाद कोविड महामारी आ गई. महामारी से उबरने के लिए सरकार ने लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए.

कहां खर्च करती है अमेरिकी सरकार

अमेरिकी सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और चिकित्सा जैसे जरूरी वेलफेयर स्कीमों पर खर्च होता है. अमेरिकी ट्रेजरी के वेबसाइट पर मौजूद डेटा के अनुसार, सरकार के कुल वार्षिक बजट का लगभग आधा हिस्सा इन्हीं वेलफेयर स्कीमों पर खर्च होता है. बजट का 12 प्रतिशत हिस्सा सरकार मिलिट्री पर खर्च करती है. इसके अलावा शिक्षा, एंप्लॉयमेंट ट्रेनिंग, पेंशन एवं सेवाओं पर भी एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है.

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इसे आसान भाषा में इस तरह से भी समझा जा सकता है कि अमेरिकी सरकार मुख्यतः दो श्रेणियों में पैसा खर्च करती हैं. पहली कैटेगरी में कर्ज और ब्याज अदायगी है और दूसरी में देश का अन्य खर्च. अगर सरकार किसी बिल का भुगतान सरकारी शटडाउन या भुगतान विनियोग के कारण नहीं कर पाती है, तब वह डिफॉल्ट नहीं कहलाती है. भुगतान विनियोग वह स्थिति है जब सरकार किसी खास मकसद से बजट का एक हिस्सा अलग कर देती है. 2013 में सरकारी शटडाउन के कारण सरकार बिल का भुगतान नहीं कर पाई थी.

 

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