ट्रंप को बड़ा झटका, कोर्ट ने अमेरिकी शहरों में सेना भेजने के आदेश को बताया गैरकानूनी

अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सैन्य शक्तियों के इस्तेमाल पर एक बड़ा कानूनी सवाल खड़ा हो गया है. पोर्टलैंड में विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए की गई नेशनल गार्ड की तैनाती को अमेरिकी अदालत ने असंवैधानिक बताते हुए स्थायी रूप से रोक दिया है. यह फैसला ट्रंप प्रशासन की उस नीति को सीधा झटका है, जिसमें वह डेमोक्रेट शासित शहरों में भी सैन्य बल भेजने की कोशिश कर रहा है.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप.

aajtak.in

  • वॉशिंगटन,
  • 08 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:52 AM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को शुक्रवार को एक बड़ा कानूनी झटका लगा है. एक फेडरल जज ने फैसला सुनाया कि ट्रंप ने पोर्टलैंड, ओरेगन में नेशनल गार्ड की तैनाती 'गैरकानूनी' तरीके से की थी. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह फैसला ट्रंप प्रशासन द्वारा अमेरिकी शहरों में सैन्य बल इस्तेमाल करने की नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है.

यूएस डिस्ट्रिक्ट जज करीन इम्मरगट ने ट्रंप के आदेश को अवैध ठहराते हुए स्थायी रूप से रोक लगा दी है. इससे पहले कोर्ट ने पोर्टलैंड में नेशनल गार्ड की तैनाती पर अंतरिम रोक लगाई थी.

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कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन का दावा खारिज किया

ट्रंप प्रशासन ने कोर्ट में यह तर्क दिया था कि पोर्टलैंड के एक इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर के बाहर मौजूद प्रदर्शनकारी 'विद्रोह' जैसी स्थिति पैदा कर रहे थे, इसलिए राष्ट्रपति को सैन्य बल भेजने का अधिकार है. लेकिन जज इम्मरगट ने इस तर्क को खारिज कर दिया. ध्यान देने वाली बात यह है कि इम्मरगट खुद ट्रंप द्वारा नियुक्त जज हैं.

लॉस एंजेलिस, शिकागो और वाशिंगटन डीसी में भी ट्रंप की कोशिशें

रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप डेमोक्रेट शासित शहर लॉस एंजेलिस, शिकागो और वाशिंगटन डीसी में भी विरोध प्रदर्शनों के दौरान सैन्य बल भेजने की कोशिश कर रहे हैं. पोर्टलैंड का यह फैसला उनके इन प्रयासों पर भी असर डाल सकता है.

अमेरिकी इतिहास में कम ही हुआ सैन्य बल का इस्तेमाल

ट्रंप की यह कोशिश अमेरिकी परंपराओं से अलग मानी जा रही है, क्योंकि आम तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति देश के अंदर सैन्य तैनाती से बचते हैं. यह प्रथा अपवाद मामलों जैसे बड़े विद्रोह, सशस्त्र हमले आदि के लिए ही रखी गई है.

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फैसला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है

ट्रंप प्रशासन इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है और मामला अंततः अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच सकता है. फिलहाल, नाइंथ यूएस सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स इस मामले की अपील सुन रहा है.

पोर्टलैंड और ओरेगन सरकार ने दायर की थी याचिका

सितंबर में पोर्टलैंड शहर प्रशासन और ओरेगन के अटॉर्नी जनरल कार्यालय ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था. उनका आरोप था कि ट्रंप हिंसा को 'विद्रोह' जैसा दिखाकर अवैध रूप से सैन्य बल भेज रहे हैं. तीन दिनों की बेंच ट्रायल (न्यायाधीश द्वारा सुनी गई सुनवाई) में दोनों पक्षों ने अपनी दलील दी.

न्याय विभाग (DOJ) के वकीलों ने दावा किया कि पोर्टलैंड में संघीय एजेंटों को 'हिंसक घेराबंदी' का सामना करना पड़ा और स्थिति 'युद्ध-ग्रस्त शहर' जैसी हो गई थी. वकील एरिक हैमिलटन ने कहा, महीनों से उकसाने वाले लोग हमारे देश की सेवा करने वाले पुरुषों और महिलाओं पर हिंसा कर रहे हैं. दूसरी ओर, ओरेगन और पोर्टलैंड के वकीलों का कहना था कि हिंसा के मामले बेहद कम, अलग-थलग और स्थानीय पुलिस द्वारा काबू में थे. पोर्टलैंड की वकील कैरोलीन टुरको ने कोर्ट में कहा, यह केस इस बात पर है कि हम संवैधानिक कानून का देश हैं या मार्शल लॉ का.

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'ट्रंप कर रहे सैन्य शक्तियों का दुरुपयोग'

डेमोक्रेट नेताओं ने कहा कि ट्रंप ऐसी सैन्य शक्तियों का उपयोग कर रहे हैं, जो असली आपात स्थितियों- जैसे विद्रोह या विदेशी आक्रमण के लिए होती हैं. जज इम्मरगट ने 5 अक्टूबर को अपने अंतरिम आदेश से पहले ही ट्रंप को पोर्टलैंड में सैन्य भेजने से रोका था. अब तीन अलग-अलग जज जिनमें इम्मरगट भी शामिल ने प्रारंभिक तौर पर माना है कि ट्रंप द्वारा जिस कानून के तहत नेशनल गार्ड भेजी गई, उसके तहत इस तरह की तैनाती की अनुमति नहीं है.

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