बांग्लादेश की तरफ से भारत को घेरने की कोशिश! पाकिस्तान-तुर्की मिलकर खेल रहे ये कैसा खेल?

तुर्की और बांग्लादेश अपने संबंधों को गहरा कर रहे हैं जो कि भारत के लिए चिंता का विषय है. मंगलवार को ही तुर्की के एक शीर्ष रक्षा अधिकारी बांग्लादेश पहुंचे हैं. इस दौरे में तुर्की-बांग्लादेश के बीच कुछ अहम समझौतों पर सहमति बन सकती है.

Advertisement
तुर्की अब बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहा है (Photo- PID/AFP) तुर्की अब बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहा है (Photo- PID/AFP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 11:31 AM IST

पिछले साल अगस्त से पहले तक जब बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार थी तब तक भारत के पास बांग्लादेश के रूप में एक विश्वसनीय पड़ोसी था जिसपर भरोसा किया जा सकता था. लेकिन अगस्त के बाद पासा पलटा और देश की कमान संभाली इस्लामिक झुकाव वाली अंतरिम सरकार ने और मुखिया बने नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस. शेख हसीना के दौर में जहां बांग्लादेश-पाकिस्तान की दुश्मनी चरम पर थी वहीं, यूनुस सरकार ने आते ही पुरानी दुश्मनी भुला पाकिस्तान से हाथ मिला लिया.

Advertisement

बांग्लादेश-पाकिस्तान का करीब आना भारत के लिए सिरदर्द था ही कि अब एक और मुसीबत सामने दिखने लगी है. भारत से गर्मागर्मी के बीच पाकिस्तान का दोस्त तुर्की भी अब बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है.

बांग्लादेश पहुंचे तुर्की के शीर्ष रक्षा अधिकारी

बांग्लादेश के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया है कि मंगलवार को तुर्की के एक शीर्ष रक्षा अधिकारी ढाका पहुंचे हैं. उनके इस दौरे में तुर्की-बांग्लादेश के बीच सैन्य सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा होगी.

बांग्लादेश के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'तुर्की के रक्षा उद्योग के सचिव हलुक गोरगुन आज सुबह तुर्की एयर फ्लाइट से ढाका पहुंचे हैं. इससे पहले बांग्लादेश के शीर्ष सैन्य अधिकारी तुर्की पहुंचे थे और अब वो हमारे देश आए हैं. उनके दौरे में बहुत से विषयों पर चर्चा होगी जिसमें टेक्नोलॉजी का आदान-प्रदान भी शामिल होगा.'

Advertisement

बांग्लादेशी अधिकारी ने बताया कि गोरगुन मोहम्मद यूनुस से भी मुलाकात करेंगे. इसके बाद वो देश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान, नौसेना प्रमुख एडमिरल एम. नजमुल हसन और वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल हसन महमूद खान से भी मिलेंगे.

तुर्की के अधिकारी अपने इस दौरे में  चटगांव और नारायणगंज में दो तुर्की समर्थित रक्षा औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना के प्लान को अंतिम रूप देंगे. यह भारत के लिए चिंता की बात है क्योंकि इससे तुर्की भारत के और करीब आ जाएगा और उसके लिए भारत पर नजर रखना और आसान हो जाएगा जो पाकिस्तान के लिए मददगार साबित होगा.

शेख हसीना के समय तनावपूर्ण थे तुर्की-बांग्लादेश के संबंध

जब शेख हसीना प्रधानमंत्री थीं तब बांग्लादेश-तुर्की के संबंध कई बार तनावपूर्ण रह चुके थे. 2012 में तुर्की के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला गुल ने 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा झेल रहे लोगों को माफ करने की अपील की थी. इस अपील को बांग्लादेश ने खारिज कर दिया था जिससे दोनों देशों के बीच तनातनी की स्थिति देखने को मिली थी.

इसके बाद 2016 में शेख हसीना सरकार ने 1971 के मुक्ति संग्राम यानी पाकिस्तान से अलग होने की लड़ाई में युद्ध अपराधों के लिए मोतिउर रहमान निजामी को फांसी दे दी. मोतिउर रहमान निजामी इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी के नेता थे जिनकी हत्या की तुर्की ने निंदा की. राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन निजामी को फांसी दिए जाने को लेकर शेख हसीना सरकार से काफी खफा हुए और फिर दोनों देशों ने एक-दूसरे के देशों से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया.

Advertisement

लेकिन शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश-तुर्की के संबंधों में गर्माहट देखने को मिली है और दोनों देश अपने रक्षा संबंधों को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

बांग्लादेश में तुर्की की बढ़ती उपस्थिति भारत के लिए इसलिए भी चिंता का विषय है क्योंकि तुर्की बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों का समर्थन करता रहा है, खासकर जमात-ए-इस्लामी का. 

भारत की खुफिया एजेंसियों का मानना है कि तुर्की की खुफिया एजेंसियों से जुड़ी कुछ टर्किश संस्थाओं ने ढाका में जमात के ऑफिस बनाने के लिए पैसे दिए थे. जमात के कुछ नेताओं ने तुर्की के हथियार प्रतिष्ठानों के दौरे किए थे जिसे स्पॉन्सर भी तुर्की के संस्थाओं ने किया था.

ये गतिविधियां सॉफ्ट स्ट्रैटजी से कहीं आगे की बात है. भारत के सुरक्षा अधिकारियों ने न्यूज 18 को बताया कि तुर्की अधिकारी के दौरे में बांग्लादेश तुर्की से ड्रोन और निगरानी उपकरण की खरीद के लिए समझौते कर सकता है.

भारत के लिए खतरे की घंटी

बांग्लादेश और तुर्की का करीब आना भारत के खतरे की घंटी है क्योंकि एर्दोगन की विदेश नीति इस्लामिस्ट रही है और वो खुद को मुस्लिम दुनिया का नेता मानते हैं जो अक्सर कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत को निशाने पर लेते रहे हैं. एर्दोगन लगातार जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ खड़े रहे हैं और उन्होंने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में उठाया है.

Advertisement

लेकिन तुर्की अब केवल भारत की आलोचना तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि उसने भारत के खिलाफ पाकिस्तान के रक्षा उद्योग को मजबूत भी किया है. 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद जब मई में भारत-पाकिस्तान की चार दिनों की लड़ाई की शुरुआत हुई तो उसमें तुर्की ने जमकर पाकिस्तान की मदद की.

पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए तुर्की के ड्रोन्स का भरपूर इस्तेमाल किया जिसमें बायरकटर टीबी2, बायकर वाईएचए III कामिकेज ड्रोन और सोनगात्री, ईयात्री माइक्रो-ड्रोन शामिल थे. हालांकि, भारत ने पाकिस्तान के ड्रोन हमलों को एयर डिफेंस सिस्टम के जरिए नाकाम कर दिया.

भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया और एर्दोगन ने भारतीय हमले में मारे गए आतंकियों को श्रद्धांजलि भी दी. इससे तुर्की और भारत के बीच तनाव काफी बढ़ गया और भारत में तुर्की का बहिष्कार कैंपेन चला.

तुर्की-बांग्लादेश गठबंधन भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा

अगर बांग्लादेश-पाकिस्तान-तुर्की मिलकर एक सामरिक गठजोड़ बनाते हैं तो यह भारत के दक्षिण एशियाई प्रभाव को कमजोर कर सकता है. बांग्लादेश के भौगोलिक स्थिति भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह तीन ओर से भारत से घिरा है.

लेकिन अब यह भारत का करीबी दोस्त नहीं रहा जिससे खतरा बढ़ा है. बांग्लादेश-तुर्की का करीब आना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करता है क्योंकि तुर्की बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों का समर्थन करता है. तुर्की के समर्थन से ये समूह भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं.

Advertisement

कुछ खुफिया रिपोर्टों में यह भी कहा जा रहा है कि तुर्की और बांग्लादेश की एजेंसियां बांग्लादेश को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए एक सेंटर के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement