जन विद्रोह के बाद पहली बार श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग, क्या राजपक्षे परिवार की होगी वापसी?

महिंदा राजपक्षे, गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई हैं. इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में ये दोनों मैदान में नहीं हैं. गोटबाया राजपक्षे के बेटे नमल श्रीलंका पोडु पेरामुना पार्टी (SLPP) की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं. अभी तक के चुनावी सर्वेक्षणों में नमल देश के सर्वोच्च पद के लिए मजबूत उम्मीदवार के तौर पर नहीं दिख रहे हैं.

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गोटबाया राजपक्षे की सरकार के पतन के बाद श्रीलंका में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव हो रहा है. (PTI Photo) गोटबाया राजपक्षे की सरकार के पतन के बाद श्रीलंका में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव हो रहा है. (PTI Photo)

aajtak.in

  • कोलंबो,
  • 21 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 9:06 AM IST

श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए आज मतदान हो रहा है. वोटिंग सुबह 7 बजे शुरू हुई और शाम 5 बजे तक चलेगी. चुनाव के नतीजे 22 सितंबर को आने की संभावना है. साल 2022 के इकोनॉमिक क्राइसिस के बाद श्रीलंका में यह पहली बड़ी चुनावी प्रक्रिया है. लगभग 1 करोड़ 70 लाख मतदाता 13,400 से अधिक पोलिंग बूथों पर वोटिंग करने के पात्र हैं. निष्पक्ष और सकुशल चुनाव संपन्न कराने के लिए 200,000 से अधिक अधिकारियों को तैनात किया गया है. 

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वहीं सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी 63,000 पुलिस कर्मियों के जिम्मे है. बता दें कि श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में कुल 38 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं. निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (75), देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के अपने प्रयासों की सफलता पर सवार होकर, एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पांच साल के एक और कार्यकाल के लिए फिर से चुनाव मैदान में हैं. कई आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि विक्रमसिंघे के नेतृत्व में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था ने बहुत तेज रिकवरी हासिल की है. 

राष्ट्रपति पद के​ लिए ये तीन नेता हैं प्रमुख दावेदार
 
त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले में रानिल विक्रमसिंघे के सामने नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) के 56 वर्षीय अनुरा कुमारा दिसानायके और मुख्य विपक्षी पार्टी समागी जन बालवेगया (SJB) के 57 वर्षीय साजिथ प्रेमदासा की चुनौती है. गौरतलब है कि 2022 में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई थी. महंगाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लोगों ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इस कारण तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा था.

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गोटाबाया राजपक्षे पहले सिंगापुर और फिर थाईलैंड पहुंचे और 50 दिनों बाद ही अपने देश वापस लौट आए. उन्हें वो सारी सुविधाएं दी गईं, जो एक पूर्व राष्ट्रपति को मिलती हैं. साथ ही उनकी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की गई. गोटाबाया राजपक्षे की सरकार के पतन के बाद विपक्षी नेता रनिल विक्रमसिंघे को दो साल के बचे हुए कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति बनाया गया. राजपक्षे परिवार के नेतृत्व में काम करने वाली श्रीलंका पोडु पेरामुना पार्टी (SLPP) का श्रीलंका की संसद में दो तिहाई बहुमत है. SLPP ने विक्रमसिंघे को अपना समर्थन दिया. इसके समर्थन से ही विक्रमसिंघे छह बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. वह अपनी यूनाइटेड नेशनल पार्टी के इकलौते सांसद हैं.

विक्रमसिंघे के नेतृत्व में पटरी पर लौटी अर्थव्यवस्था

हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने श्रीलंका को बेलआउट पैकेज देने के साथ ही देश में आर्थिक सुधारों के लिए कठी शर्तें लगाई थीं. रानिल विक्रमसिंघे को इन शर्तों के अधीन रहकर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास करना पड़ा. उनकी इकोनॉमिक रिकवरी प्लान लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय तो नहीं रहा, लेकिन इसने श्रीलंका को निगेटिव ग्रोथ रेट से उबरने में मदद की. श्रीलंका का आर्थिक संकट NPP नेता अनुरा कुमारा दिसानायके के लिए एक अवसर साबित हुआ है.

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दिसानायके अपने चुनाव अभियान के दौरान श्रीलंका की 'भ्रष्ट राजनीतिक संस्कृति' को बदलने का वादा करते रहे और उन्हें बड़ा जनसमर्थन मिला. इस बार के चुनाव में अल्पसंख्यक तमिलों का मुद्दा तीनों प्रमुख दावेदारों में से किसी के भी एजेंडे में शामिल नहीं है. इसके बजाय, देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और इसके सुधार को तीनों उम्मीदवारों ने अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है. सभी ने आईएमएफ बेल-आउट रिफॉर्म के साथ बने रहने की प्रतिबद्धता दोहराई है.

पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बेटे भी हैं मैदान में

महिंदा राजपक्षे, गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई हैं. इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में ये दोनों मैदान में नहीं हैं. गोटबाया राजपक्षे के बेटे नमल श्रीलंका पोडु पेरामुना पार्टी (SLPP) की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं. अभी तक के चुनावी सर्वेक्षणों में नमल देश के सर्वोच्च पद के लिए मजबूत उम्मीदवार के तौर पर नहीं दिख रहे हैं. दो साल पहले श्रीलंका के लोगों ने राजपक्षे परिवार के खिलाफ ही विद्रोह किया था. वे श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार के एकाधिकार से छुटकारा पाना चाहते थे. इसलिए शायद नमल को इस बार के चुनाव में जनसमर्थन न मिले.
 

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