दक्षिण एशिया के राजनीतिक परिदृश्य में चीन और पाकिस्तान नया कूटनीतिक खेल करने की तैयारी में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान और चीन एक ऐसे प्रस्ताव पर काम कर रहे हैं जिसका उद्देश्य नया क्षेत्रीय संगठन बनाना है. ये नया संगठन दक्षिण एशियाई देशों के संगठन SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) को बेदखल कर स्वयं उसकी जगह ले सकता है. इस प्रोजेक्ट के पीछे चीन का दिमाग काम कर रहा है. पाकिस्तान इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट कर रहा है.
गौरतलब है कि चीन में हाल ही में पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई थी.
इस घटनाक्रम से परिचित राजनयिक सूत्रों के हवाले से पाकिस्तान के अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार ने खबर दी है कि इस्लामाबाद और बीजिंग के बीच वार्ता अब अग्रिम चरण में है. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि क्षेत्रीय एकीकरण और संपर्क के लिए एक नया संगठन आवश्यक है.
सूत्रों का हवाला देते हुए अखबार ने कहा कि यह नया संगठन संभावित रूप से क्षेत्रीय ब्लॉक सार्क का स्थान ले सकता है. बता दें कि SAARC में भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं. चीन सार्क का सदस्य नहीं है. लेकिन अब नया संगठन बनाकर चीन दक्षिण एशिया के देशों पर कूटनीतिक और सामरिक प्रभाव हासिल करना चाहता है. सार्क के सभी देशों से चीन के गहरे आर्थिक और सामरिक संबंध हैं.
2016 से नहीं हुई है सार्क की मीटिंग
बता दें कि कभी दक्षिण एशियाई देशों का शक्तिशाली संगठन रहा सार्क आज नाम मात्र का संगठन रह गया है. 2014 में काठमांडू में हुए अंतिम शिखर सम्मेलन के बाद से इसका द्विवार्षिक शिखर सम्मेलन नहीं हुआ है.
2016 का सार्क शिखर सम्मेलन इस्लामाबाद में होना था. लेकिन उस वर्ष 18 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के उरी में भारतीय सेना के शिविर पर हुे आतंकवादी हमले के बाद भारत ने "मौजूदा परिस्थितियों" का हवाला देते हुए शिखर सम्मेलन में भाग लेने में असमर्थता व्यक्त की.
भारत द्वारा इस सम्मेलन में शिरकत करने से इनकार के बाद बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान द्वारा भी इस्लामाबाद में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में आने से इनकार कर दिए. इसके बाद पाकिस्तान को आखिरकार ये सम्मेलन रद्द करना पड़ा.
पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन की मीटिंग
बता दें कि हाल ही में चीन के कुनमिंग में पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक हुई थी. बताया जाता है कि ये बैठक इसी संगठन को मूर्त रूप देने की कूटनीतिक पैंतरों का हिस्सा थी. इस बैठक का लक्ष्य सार्क का हिस्सा रहे अन्य दक्षिण एशियाई देशों को नए समूह में शामिल होने के लिए आमंत्रित करना था. हालांकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने ढाका, बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच किसी भी उभरते गठबंधन के विचार को खारिज कर दिया था और कहा था कि यह बैठक "राजनीतिक" नहीं थी.
विदेश मामलों के सलाहकार एम तौहीद हुसैन ने कहा था, "हम कोई गठबंधन नहीं बना रहे हैं."
सूत्र बताते हैं कि इस संगठन में शामिल होने के लिए भारत को भी न्यौता दिया जाएगा. जबकि श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे देशों के भी इस समूह का हिस्सा बनने की उम्मीद है.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने कहा कि नए संगठन का मुख्य उद्देश्य व्यापार और संपर्क बढ़ाकर अधिक क्षेत्रीय भागीदारी हासिल करना है. अखबार ने कहा कि अगर प्रस्ताव पर अमल होता है तो यह सार्क की जगह लेगा, जो भारत-पाकिस्तान विवाद के कारण लंबे समय से निलंबित है.
कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग
भारत ने हमेशा से बेहतर क्षेत्रीय सहयोग और संपर्क के लिए सार्क का उपयोग करने की कोशिश की है, लेकिन पाकिस्तान इस फोरम का उपयोग कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए करता है.
पाकिस्तान सार्क वीजा छूट स्कीम का लाभार्थी था, जिसे भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद निलंबित कर दिया है.
सबसे बड़े सदस्य के रूप में भारत ने सार्क को पर्याप्त धन मुहैया कराकर और सदस्य देशों के बीच शिक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए नई दिल्ली में सार्क विकास कोष और दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय जैसी पहलों का नेतृत्व करके महत्वपूर्ण योगदान दिया. लेकिन पाकिस्तान की कुटिल नीति ने कभी इसके सही उद्देश्यों को हासिल नहीं होने दिया.
कई ऐसे मौके आए जब पाकिस्तान ने सार्क वीटो का इस्तेमाल कर कई नेक और लाभदायक कार्यों को पूरा नहीं होने दिया. खासकर व्यापार प्रोटोकॉल और आतंकवाद विरोधी तंत्र जैसी पहलों को रोकने के लिए पाकिस्तान ने सार्क वीटो का इस्तेमाल किया. इससे इस संगठन की प्रभावशीलता में बाधा आई.
उदाहरण के लिए, पाकिस्तान ने काठमांडू में 2014 के सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान सार्क मोटर वाहन समझौते पर वीटो लगा दिया. इसने सदस्य देशों के बीच यात्री और मालवाहक वाहनों की सीमा पार आवाजाही के लिए प्रस्तावित योजना को अवरुद्ध कर दिया. पाकिस्तान द्वारा इस बाधा के कारण भारत, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल ने 2015 में उप-क्षेत्रीय बीबीआईएन मोटर वाहन समझौते को आगे बढ़ाया.
सार्क कब बना, कौन से देश हैं मेंबर?
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ावा देने के लिए 1985 में स्थापित एक महत्वपूर्ण संगठन है. इसके सदस्य देश, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान हैं.
इन देशों का उद्देश्य क्षेत्रीय एकता और समृद्धि के लिए मिलकर काम करना है. सार्क के सदस्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सहयोग को मजबूत करना, गरीबी उन्मूलन, व्यापार, शिक्षा, और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में प्रगति के लिए काम करते हैं.
यह संगठन क्षेत्रीय व्यापार समझौतों जैसे दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता (साफ्टा) के माध्यम से आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देता है.
हालांकि, राजनीतिक तनाव, विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान संबंधों के कारण, सार्क की प्रभावशीलता कभी-कभी सीमित हो जाती है.
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