नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपदस्थ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की CPN-UML द्वारा दायर याचिका के जवाब में अंतरिम सरकार को कारण बताओ (शो-कॉज) नोटिस जारी किया, जिसमें अंतरिम सरकार के गठन और प्रतिनिधि सभा को भंग करने को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने सभी प्रतिवादियों से एक हफ्ते के अंदर लिखित स्पष्टीकरण मांगा है.
सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने सभी प्रतिवादियों को अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के माध्यम से सात दिनों के अंदर लिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.
मुख्य न्यायाधीश प्रकाशमान सिंह राउत की पीठ ने ये भी आदेश दिया कि इस याचिका पर सदन को भंग करने और अंतरिम सरकार के गठन से संबंधित पहले के मामलों के साथ सुनवाई की जाए.
'संविधान का उल्लंघन है नियुक्ति'
याचिका में दावा किया गया है कि कार्की की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 76 और 132(2) का उल्लंघन है, क्योंकि वे न तो संसद की सदस्य हैं और न ही पूर्व मुख्य न्यायाधीश के तौर पर उन्हें ये पद स्वीकार करने का अधिकार है.
संसद बहाली की मांग
याचिका में राष्ट्रपति द्वारा कार्की को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के फैसले, कैबिनेट की नियुक्तियों और उसके बाद के निर्णयों को रद्द करने की मांग की गई है. सीपीएन-यूएमएल ने सदन भंग करने के आदेश को वापस लेने और संसद को बहाल करने की भी मांग की है तथा पूरी सरकार को 'अवैध' करार दिया.
क्यों हुई थी संसद भंग
आपको बता दें कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को 12 सितंबर को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने उनकी सिफ़ारिश पर संसद को भंग कर दिया था. इसके बाद उन्होंने ऐलान किया कि देश में आगामी आम चुनाव 5 मार्च, 2026 को आयोजित किए जाएंगे.
दरअसल, 9 सितंबर को प्रधानमंत्री ओली को पद से हटाए जाने के बाद चुनाव कराना आवश्यक हो गया था, क्योंकि भ्रष्टाचार के विरोध में और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटाने की मांग को लेकर Gen Z द्वारा किए गए प्रदर्शन हिंसक हो गए थे और दो दिनों में 76 लोगों की मौत हो गई थी.
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