कॉल महंगे, पैसे भेजना मुश्किल… कैसे सोशल मीडिया बैन और Gen-Z विद्रोह ने हिला दी नेपाल की अर्थव्यवस्था

नेपाल सरकार का सोशल मीडिया बैन सिर्फ एक तकनीकी फैसला नहीं था, ये सीधे तौर पर आम लोगों की जिंदगी में दखल था. विदेश में काम कर रहे लाखों नेपाली अपने घरवालों से व्हाट्सऐप जैसी सस्ती ऐप्स के जरिए जुड़े रहते हैं और इसी रास्ते पैसे भी भेजते हैं. फोन कॉल महंगे हैं और रेमिटेंस नेपाल की जीडीपी का 33% हिस्सा है. ऐसे में यह बैन उन दोनों लाइफलाइन पर हमला था, जिनसे नेपाल की अर्थव्यवस्था और समाज खड़ा है.

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नेपाल का Gen-Z विद्रोह: सोशल मीडिया बैन क्यों बन गया गुस्से की वजह. (Photo: PTI) नेपाल का Gen-Z विद्रोह: सोशल मीडिया बैन क्यों बन गया गुस्से की वजह. (Photo: PTI)

मयंक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 10 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:04 PM IST

नेपाल की नई पीढ़ी ने सोशल मीडिया बैन के खिलाफ इतना बड़ा विरोध क्यों किया? इसका जवाब देश की उस हकीकत में छिपा है, जो प्रवास और रेमिटेंस (विदेश से आने वाले पैसे) पर टिकी हुई है. ये बैन दरअसल दो अहम लाइफलाइन यानी सस्ती बातचीत और पैसों का ट्रांसफर पर चोट थी जिनसे लाखों परिवारों का गुजारा चलता है.

महंगा Communication

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नेपाल टेलीकॉम के आंकड़ों के मुताबिक यहां विदेशी कॉल की लागत बहुत ज्यादा है. भारत में कॉल करने पर 4 से 12 नेपाली रुपये प्रति मिनट खर्च होते हैं. सऊदी अरब और कतर के लिए यह 15 से 30 रुपये प्रति मिनट तक है. अमेरिका या ब्रिटेन कॉल करने पर 1.75 से 35 रुपये प्रति मिनट तक खर्च आता है.

भारत नेपाल के कुल प्रवासी जनसंख्या का लगभग 11% हिस्सा है, जबकि खाड़ी देशों (मिडिल ईस्ट) में यह लगभग 14% है. उत्तरी अमेरिका और यूरोप का हिस्सा क्रमशः 2.3% और 2.7% है.

इसके मुकाबले व्हाट्सऐप जैसे मैसेजिंग ऐप्स पर बात करना लगभग मुफ्त है. इसलिए जब सरकार ने यूट्यूब, व्हाट्सऐप और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स पर पाबंदी लगाई तो लोगों में बेचैनी बढ़ गई हालांकि अब ये बैन हटा लिया गया है. बिराटनगर के एक नेपाली नागरिक ने इंडिया टुडे को बताया कि मेरे माता-पिता अभी भारत में हैं, जहां मेरी मां का इलाज चल रहा है. व्हाट्सऐप बैन मेरे लिए बड़ा झटका था. ये ही एकमात्र सस्ता तरीका था जिससे मैं उनसे रोज बात कर सकता था.

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इसी तरह कई नेपाली नागरिकों ने यही कहा कि सोशल मीडिया सिर्फ बातचीत का साधन नहीं है बल्कि पैसों के लेन-देन के लिए भी जरूरी है. और ये ऐसे देश में और भी अहम है, जहां प्रवासियों से आने वाला पैसा अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. जनवरी 2024 तक नेपाल की कुल जनसंख्या का 48.1% हिस्सा सोशल मीडिया पर सक्रिय था. 18 साल से ऊपर की उम्र वालों में ये आंकड़ा 73% तक पहुंच जाता है. इंटरनेट यूज करने वालों में से 86% ने कम से कम एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया.

बड़ी आबादी है प्रवासी 

नेपाल की 2021 की जनगणना बताती है कि देश की कुल आबादी का 7.5% हिस्सा प्रवासी है. 1981 में ये आंकड़ा सिर्फ 2.7% था और 2001 में 3.3%. भारत और खाड़ी देश अब भी सबसे पसंदीदा ठिकाने हैं.

प्रवास सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों में फैला हुआ है. जनगणना बताती है कि 45% प्रवासी सेकेंडरी शिक्षा पूरी कर चुके थे, 41.2% ने बेसिक शिक्षा हासिल की थी. सिर्फ 5.3% के पास बैचलर डिग्री और महज़ 1.9% के पास मास्टर या उससे ऊपर की डिग्री थी.

प्रवासियों की वजह से नेपाल में रेमिटेंस काउंटर्स सालभर व्यस्त रहते हैं. वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2024 में नेपाल की जीडीपी का 33% से ज्यादा हिस्सा सिर्फ रेमिटेंस से आया. 2000 में यह हिस्सा सिर्फ 2% था.

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