बांग्लादेश में फिर बगावत के बादल मंडराने लगे हैं. ठीक डेढ़ महीने बाद अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को भी शेख हसीना जैसी बगावत का डर सताने लगा है. देश में चुनाव की मांग तेज हो गई है और विरोध का स्तर बढ़ता जा रहा है. ऐसे में मोहम्मद यूनुस ने नाराजगी से निपटने के लिए कड़ाई करने का फैसला लिया है और अगले 60 दिन के लिए पूरे देश में सेना को विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां दे दी हैं. अब सेना को किसी को भी गिरफ्तार करने और गोली मारने तक का अधिकार मिल गया है.
बांग्लादेश में 5 अगस्त को तख्तापलट हुआ था और शेख हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. अब करीब डेढ़ माह बाद पूर्व पीएम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों के द्वारा चुनाव कराए जाने की मांग उठाई जा रही है. मंगलवार को सेना की शक्तियां बढ़ाने का फैसला तब लिया गया, जब BNP के हजारों कार्यकर्ता ढाका की सड़कों पर उतर आए और चुनाव के जरिए लोकतांत्रिक बदलाव की मांग तेज कर दी.
अंतरिम सरकार ने नहीं बताया, कब होंगे चुनाव?
रिपोर्ट के मुताबिक, BNP के कार्यकर्ता सबसे पहले अपने मुख्यालय के बाहर एकत्रित हुए और नारेबाजी करने लगे. उन्होंने चुनाव कराए जाने की मांग की, क्योंकि अंतरिम सरकार ने अब तक यह नहीं बताया है कि चुनाव कब कराए जाएंगे. हसीना सरकार गिरने के बाद BNP ने 3 महीने के अंदर चुनाव कराए जाने की मांग रखी थी. खालिदा जिया के बेटे और बीएनपी के नेता तारिक रहमान ने कहा, सिर्फ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के जरिए ही बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता हो सकती है.
अंतरिम सरकार ने सेना को क्या अधिकार दिए?
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का कहना है कि देश में कानून और व्यवस्था को बेहतर बनाने और विध्वंसक कृत्यों को रोकने के लिए सेना को दो महीने के लिए मजिस्ट्रेटी अधिकार दिए हैं. लोक प्रशासन मंत्रालय ने सरकार के फैसले से जुड़ी एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि यह आदेश तत्काल प्रभाव से पूरे देश में लागू होगा. ये अधिकार सेना के कमीशन प्राप्त अधिकारियों को दिए जाएंगे.
सेना के अधिकारी अगले 60 दिनों के लिए पूरे बांग्लादेश में जिला मजिस्ट्रेटों की देखरेख में कार्यकारी मजिस्ट्रेट के रूप में काम कर सकेंगे. मजिस्ट्रेट पावर मिलने के बाद सेना के अधिकारी के पास लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें हिरासत में लेने का अधिकार होगा. आत्मरक्षा या ज्यादा जरूरत पड़ने पर सेना के अधिकारी गोली भी चला सकते हैं.
हिंसा के बाद ड्यूटी पर नहीं लौटे कई पुलिसकर्मी
गृह सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) मोहम्मद जहांगीर आलम चौधरी ने बुधवार को कहा कि सेना को मजिस्ट्रेटी अधिकार दिए जाने का लाभ लोगों को मिलेगा. उन्होंने कहा, 5 अगस्त की हिंसा के बाद कई पुलिस अधिकारी ड्यूटी पर नहीं लौटे हैं. उन्हें अब काम पर लौटने की अनुमति नहीं दी जाएगी. सेना के कमीशन प्राप्त अधिकारियों को मजिस्ट्रेटी अधिकार दिए जाने का लाभ पूरे देश के लोग उठाएंगे.
चौधरी ने कहा, सेना को सार्वजनिक सेवा सुनिश्चित करने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेटी शक्ति दी गई है. चूंकि, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास मैनपावर की कमी है और इस कमी को पूरा करने के लिए सेना को मजिस्ट्रेटी शक्ति दी गई है. उन्होंने आगे कहा, बांग्लादेश की सेना एक अनुशासित और लोगों के अनुकूल बल है. आम लोगों को उनसे संवाद करने और उनसे मदद लेने में कोई समस्या नहीं होगी.
रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में दंड प्रक्रिया संहिता या सीआरपीसी की धारा 17 सेना के अधिकारियों को विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट का दर्जा देती है. इसके मुताबिक, सेना के अधिकारी जिला मजिस्ट्रेट या डिप्टी कमिश्नर के अधीन होकर कार्य करते हैं.
सरकार बोली- हालात से निपटने के लिए सेना को अधिकार दिए
गिरफ्तारी और गैरकानूनी रैलियों को तितर-बितर करने समेत अन्य अधिकार सेना के कमीशन प्राप्त अधिकारियों को दिए गए हैं. अंतरिम सरकार के कानूनी सलाहकार आसिफ नजरुल ने कहा कि आत्मरक्षा और अत्यधिक जरूरत होने पर सेना के अधिकारी गोली चला सकते हैं. उन्होंने कहा, कई जगहों पर विध्वंसकारी गतिविधियों देखने को मिली हैं. औद्योगिक क्षेत्रों में शांति को बाधित किया जा रहा है. स्थिति को देखते हुए सेना के कर्मियों को मजिस्ट्रेटी शक्ति दी गई है.
उन्होंने कहा, हमारी अंतरिम सरकार का मानना है कि सेना के कर्मी इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं करेंगे. नाम ना बताने के अनुरोध पर एक अन्य सलाहकार ने कहा, पुलिस अभी तक ठीक से काम नहीं कर पाई है. विध्वंसकारी गतिविधियां हो रही हैं. शेख हसीना सरकार गिरने के बाद से बांग्लादेश में कई पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी पर नहीं पहुंचे हैं.
5 अगस्त से पहले और उसके तुरंत बाद पुलिस को जबरदस्त जनाक्रोश का सामना करना पड़ा था. भीड़ ने उनके वाहनों और संपत्तियों में आग लगा दी थी. थानों में घुसकर बवाल काटा था और तोड़फोड़ की थी. ये प्रदर्शनकारी, पुलिस के सख्ती किए जाने से नाराज देखे जा रहे थे.
6 अगस्त को हड़ताल पर चले गए थे पुलिसकर्मी
हमलों के बाद बांग्लादेश पुलिस अधीनस्थ कर्मचारी संघ ने 6 अगस्त को अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की थी. गृह मंत्रालय के तत्कालीन सलाहकार ब्रिगेडियर जनरल (सेवानिवृत्त) एम सखावत हुसैन के साथ कई बैठकों के बाद 10 अगस्त को हड़ताल वापस ले ली गई थी. फिर भी कई पुलिस अधिकारी काम पर नहीं लौटे. पूर्व सचिव अबू आलम मोहम्मद शाहिद खान ने कहा, मौजूदा कानून और व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार का निर्णय समय पर और जरूरी है.
उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि इस कदम से पूरे देश में कानून और व्यवस्था में स्पष्ट सुधार होगा. हालांकि, अनुभवी वकील जेडआई खान पन्ना इस फैसले से असहमत हैं. पन्ना का कहना था, यह सही नहीं है. क्या सरकार ने मजिस्ट्रेटों से भरोसा खो दिया है? सैन्यकर्मियों द्वारा डिप्टी कमिश्नरों के अधीन मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों का निर्वहन करना उचित नहीं है. सैन्यकर्मियों को आम जनता के साथ मिलाना बुद्धिमानी नहीं होगी.
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