Ground Report: बेरूत का वो नाइटक्लब जहां 2 हफ्ते पहले हो रही थी डांस-पार्टी, अब विस्थापित लोगों का बना आश्रय

बेरूत का मशहूर स्काईबार नाइट क्लब, जहां कभी डांस-पार्टियां होती थीं, अब युद्ध में बेघर हुए लोगों के लिए शरणार्थी कैंप में तब्दील हो चुका है. लेबनानी शासन के मुताबिक, 23 सितंबर के बाद से करीब 12 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं, और देश के अधिकतर शरणार्थी केंद्र पहले से ही भरे हुए हैं.

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स्काईबार नाइटक्लब बना शर्णार्थियों का आश्रय स्काईबार नाइटक्लब बना शर्णार्थियों का आश्रय

अशरफ वानी

  • बेरूत,
  • 09 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 8:45 PM IST

लेबनान में इजरायली बमबारी से प्रभावित परिवारों ने राजधानी बेरूत के एक मशहूर नाइटक्लब को अपना आश्रय बना लिया है. स्काईबार नाम के इस नाइट क्लब में जहां पहले डांस-पार्टियां हुआ करती थी अब उसे युद्ध में बेघर हुए लोगों के लिए शरणार्थी केंद्र बना दिया गया है. लेबनानी शासन के मुताबिक, 23 सितंबर के बाद से करीब 12 लाख लोग विस्थापित हो गए हैं.

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हालांकि, देशभर में 973 शर्णार्थी केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें लगभग 180,000 लोग रह रहे हैं, लेकिन ये सभी पहले से ही भरे हुए हैं. कुछ परिवार होटल या किराए के मकानों में रहने का खर्च उठा सकते हैं, लेकिन अन्य लोग खाली भवनों में शरण ले रहे हैं या फिर अपनी गाड़ियों और पार्कों में रहने को मजूबर हैं.

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क्लब के मालिक ने दी शरण

बेरूत के आलीशान वाटरफ्रंट क्षेत्र में स्थित 'स्किन' और उसका स्काईबार कभी पार्टी प्रेमियों से भरा रहता था, लेकिन जैसे ही लोग इसके आसपास में गाड़ियों में रात बिताने लगे और फुटपाथ पर रहने लगे, तो क्लब के मालिकों ने उन्हें शरण दे दी.

यहां का डांस फ्लोर अब बच्चों का खेल का मैदान बन चुका है, और वीआईपी केबिन्स में परिवार रह रहे हैं. यहां के बार में अभी भी वाइन के ग्लास सजे हुए हैं और एनजीओ द्वारा उनके लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है. विस्थापित यहां के शॉवर्स और शौचालयों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

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लोग सड़कों पर रहने को मजबूर

इसके महज दो किलोमीटर की दूरी पर, कई लोग अभी भी सड़कों पर सोने को मजबूर हैं. आजतक ने पहले भी बेरूत का वो नजारा दिखाया था, जहां कई किलोमीटर की दूरी में फुटपाथ पर लोगों ने आश्रय लिया हुआ था.

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बड़े अल-अमीन मस्जिद की सीढ़ियों पर भी लोगों ने शरण ले रखी है. बच्चों की हालत देखकर मन विचलित हो जाता है, जो अधिकतर अधनंगे हैं और सड़कों पर इधर-उधर भागते रहते हैं. उनके और उनके परिवारों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था तो की जा रही है, लेकिन हालात बदतर हैं.

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