इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने विवादास्पद ई1 बस्ती विस्तार प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने वाले एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए ऐलान किया है कि कोई फ़िलिस्तीनी स्टेट नहीं होगा. यह प्रोजेक्ट फ़िलिस्तीनियों द्वारा भविष्य के राज्य के लिए दावा किए गए इलाके को दो हिस्सों में बांटा जाएगा. उन्होंने आगे कहा, "हम अपनी विरासत, अपनी ज़मीन और अपनी सुरक्षा की रक्षा करेंगे."
लंबे वक्त से विवादित ई1 प्रोजेक्ट को रक्षा मंत्रालय के योजना आयोग से अंतिम मंज़ूरी मिल गई है. इस एक्सपैंशन के तहत यरुशलम के पूर्व में एक भूखंड पर हज़ारों नए आवासों का निर्माण किया जाना था.
संयुक्त राष्ट्र और कई देशों सहित आलोचकों ने चेतावनी दी है कि यह प्रोजेक्ट वेस्ट बैंक को दो हिस्सों में बांट देगा, जिससे क्षेत्र के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से अलग हो जाएंगे और पूर्वी यरुशलम प्रभावी रूप से अलग-थलग पड़ जाएगा. उनका तर्क है कि इससे भौगोलिक रूप से फ़िलिस्तीनी स्टेट की स्थापना लगभग नामुमकिन हो जाएगी.
यूएन एसेंबली में फिलिस्तीनी स्टेट को मिल सकती है मान्यता
नेतन्याहू का वेस्ट बैंक का दौरा और यह बयान कतर में हमास नेताओं की हत्या के इज़रायल के प्रयास के ठीक दो दिन बाद आया है. इस प्रोजेक्ट से प्रमुख सहयोगियों के साथ उसके संबंधों में और तनाव आने का खतरा है. इस प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने से इज़रायल का अलगाव और गहरा सकता है, क्योंकि कई पश्चिमी साझेदारों ने संकेत दिया है कि वे आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता दे सकते हैं.
यरुशलम के पूर्व में 12 वर्ग किलोमीटर (4.6 वर्ग मील) जमीन पर स्थित इस बस्ती को 'ईस्ट 1' या 'ई1' के नाम से जाना जाता है. यह माले अदुमिम के पास स्थित है और अमेरिका और यूरोपीय सरकारों की आपत्तियों के बाद 2012 और 2020 में इसे स्थगित कर दिया गया था. इस प्रोजेक्ट नई सड़कें और बड़े बुनियादी ढांचे का अपग्रेड शामिल है, जिसकी लागत करीब 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है.
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अवैध इजरायली बस्तियां...
वेस्ट बैंक के फ़िलिस्तीनी इलाके में स्थित सभी इज़रायली बस्तियां चौथे जिनेवा कन्वेंशन के आधार पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध मानी जाती हैं, जो किसी भी कब्ज़ा करने वाली शक्ति को अपने नागरिक आबादी को अपने कब्ज़े वाले इलाके में स्थानांतरित करने से रोकता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों ने बार-बार इस स्थिति की पुष्टि करते हुए कहा है कि इन बस्तियों की कोई कानूनी वैधता नहीं है.
हालांकि, इजरायल इसका खंडन करता है. उसका तर्क है कि चौथा जिनेवा कन्वेंशन पश्चिमी तट पर लागू नहीं होता क्योंकि 1967 के छह-दिवसीय युद्ध से पहले यह क्षेत्र किसी मान्यता प्राप्त राज्य की संप्रभुता के अधीन नहीं था. वह यह भी दावा करता है कि ये बस्तियां जनसंख्या का 'स्थानांतरण' नहीं हैं क्योंकि इज़रायली खुद से वहां आते हैं.
दशकों से चले आ रहे इज़रायल-फ़िलिस्तीनी संघर्ष के द्वि-राज्य समाधान में पूर्वी यरुशलम, पश्चिमी तट और गाज़ा में एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की कल्पना की गई है, जो इज़रायल के साथ-साथ सह-अस्तित्व में रहेगा.
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