जंग के बीच ईरान में फंसे हजारों भारतीय छात्र, समझें- वहां से यूक्रेन स्टाइल में भारतीयों को निकालना क्यों आसान नहीं

ईरान में लगभग 10,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से करीब 1,500 से 2,000 छात्र हैं और 6,000 लोग लंबे समय से वहां रहकर काम कर रहे हैं. इनके अलावा, ईरान में भारतीय नाविक और शिपिंग क्षेत्र से जुड़े अन्य लोग भी मौजूद हैं. वहीं यूक्रेन से फरवरी और मार्च 2022 के बीच करीब 22,500 भारतीयों को सफलतापूर्वक भारत लाया गया था.

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इजरायल से संघर्ष के बीच ईरान में हजारों भारतीय फंसे हैं (फाइल फोटो) इजरायल से संघर्ष के बीच ईरान में हजारों भारतीय फंसे हैं (फाइल फोटो)

प्रणय उपाध्याय

  • नई दिल्ली,
  • 17 जून 2025,
  • अपडेटेड 6:37 PM IST

2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तब भारत ने बेहद तेजी से ऑपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन से हजारों भारतीयों को सुरक्षित निकाला था, जिनमें अधिकतर छात्र थे. लेकिन वेस्ट एशिया में मौजूदा तनाव के बीच ईरान से वैसी ही बड़े पैमाने की निकासी (evacuation) उतनी आसान नहीं है. भूगोल, हवाई प्रतिबंध, कूटनीतिक संवेदनशीलता और खतरे की प्रकृति जैसे कई कारण ऐसे हैं, जो इसे और जटिल बना देते हैं.

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दरअसल, ईरान में लगभग 10,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से करीब 1,500 से 2,000 छात्र हैं और 6,000 लोग लंबे समय से वहां रहकर काम कर रहे हैं. इनके अलावा, ईरान में भारतीय नाविक और शिपिंग क्षेत्र से जुड़े अन्य लोग भी मौजूद हैं. वहीं यूक्रेन से फरवरी और मार्च 2022 के बीच करीब 22,500 भारतीयों को सफलतापूर्वक भारत लाया गया था.

भारत सरकार ने अभी तक ईरान से किसी भी निकासी अभियान को कोई नाम नहीं दिया है, जैसा कि यूक्रेन से निकासी के दौरान 'ऑपरेशन गंगा' को दिया गया था. ऑपरेशन गंगा के तहत कुल 90 उड़ानों से भारतीयों को निकाला गया, जिनमें से 14 उड़ानें भारतीय वायुसेना ने पड़ोसी देशों से संचालित की थीं. यूक्रेन में भारत को हंगरी, रोमानिया, मोल्दोवा, स्लोवाकिया और पोलैंड जैसे देशों से सहज सहयोग मिला, जिससे अभियान आसान हो गया.

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ईरान में पढ़ रहे भारतीय नागरिकों के माता-पिता सरकार से छात्रों को निकालने की अपील कर रहे हैं.

ईरान से आसान नहीं भारतीयों की निकासी 

ईरान के मामले में भौगोलिक और कूटनीतिक बाधाएं सामने हैं. भले ही वापसी की इच्छुक संख्या यूक्रेन की तुलना में कम हो, लेकिन सुरक्षित मार्ग और विकल्प सीमित हैं. ईरान के पूर्वी पड़ोसी पाकिस्तान और अफगानिस्तान, दोनों ही भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से कठिन हैं. पाकिस्तान ने भारत के लिए अपने हवाई मार्ग को बंद कर रखा है और जमीनी मार्ग से निकासी भी संभव नहीं है.

हालांकि भारत-अफगानिस्तान संबंधों में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन वहां से निकासी का लॉजिस्टिक मुद्दा गंभीर बना हुआ है. हवाई मार्ग भी इसलिए नहीं चल सकता क्योंकि उड़ानों को पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र से होकर गुजरना पड़ेगा, जो वर्जित है.

पूर्व और पश्चिम का फर्क

रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दिनों में यूक्रेन की पश्चिमी सीमा अपेक्षाकृत सुरक्षित थी. लड़ाई का केंद्र डोनेट्स्क, लुहान्स्क और खारकीव जैसे पूर्वी इलाके थे. इसलिए भारतीयों समेत हज़ारों लोगों को यूक्रेन छोड़ना संभव हुआ. लेकिन ईरान में ऐसा नहीं है. इजराइल के हवाई हमले कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं और सीमित नहीं हैं. इसलिए निकासी मार्ग खतरों से घिरे हुए हैं.

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परिवहन बनी बड़ी चुनौती

यूक्रेन में युद्ध के बावजूद रेल और सड़क संपर्क काफी हद तक बना रहा, जिससे लोग लविव और चर्निव्त्सी जैसे ज़मीनी सीमा क्रॉसिंग तक पहुंच पाए. ईरान में सड़क और रेल संपर्क अनिश्चित और अस्थिर हैं. कई सड़कें रणनीतिक या सैन्य क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं, जो आम नागरिकों के लिए सुरक्षित नहीं हैं.

तेहरान से बाहर जाने की सलाह

बता दें कि भारतीय दूतावास ने ईरान की राजधानी तेहरान में रह रहे भारतीयों को खुद के संसाधनों से सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी है. निकासी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. पहले बैच में करीब 110 लोगों ने ईरान-अर्मेनिया सीमा पार की है, जिनमें अधिकतर छात्र हैं. इसके अलावा लगभग 600-700 लोगों को तेहरान से ईरान के मध्य शहर कुम (Qom) भेजा गया है, जो एक धार्मिक स्थल है.

हालांकि अराक, खोरमाबाद, इस्फहान, तबरीज़ और केरमंशाह जैसे शहरों में जाना संभव नहीं है क्योंकि ये शहर परमाणु और सैन्य सुविधाओं के नज़दीक हैं.

आखिर अर्मेनिया ही क्यों?

ईरान का हवाई क्षेत्र मौजूदा संघर्ष के चलते बंद है, इसलिए ज़मीनी मार्ग ही एकमात्र विकल्प है. यह स्थिति यूक्रेन जैसी है, जिसका हवाई क्षेत्र अब तक बंद है. ऑपरेशन गंगा के दौरान भारतीयों को पोलैंड, हंगरी, मोल्दोवा और स्लोवाकिया जैसे देशों के ज़मीनी मार्गों से बाहर निकाला गया था. पोलैंड से सबसे ज्यादा निकासी हुई क्योंकि भारत के साथ उसके अच्छे संबंध हैं. पीएम मोदी ने अपने दौरे के दौरान पोलैंड का धन्यवाद भी किया था.

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ईरान की जमीनी सीमा अर्मेनिया, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लगती है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों ही निकासी के लिए सबसे कम पसंद किए जाते हैं. पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद से भारतीय उड़ानों के लिए हवाई मार्ग बंद कर दिया है. अजरबैजान ने हाल के भारत-पाकिस्तान विवाद के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था, इसलिए यह भी विकल्प नहीं बन पाया. 

तुर्कमेनिस्तान फिलहाल एक विकल्प है क्योंकि राजधानी अश्गाबात, ईरान की सीमा के नजदीक है. हो सकता है कि अगले बैच की निकासी तुर्कमेनिस्तान मार्ग से हो. भारत और अर्मेनिया के बीच बढ़ती भूराजनीतिक समझदारी (geostrategic compatibility) की वजह से अर्मेनिया सबसे उपयुक्त विकल्प बनकर सामने आया है.

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