चीन और अमेरिका के बीच दिनों-दिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच भारत ने भी चीन को काउंटर करने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. इंडो-पैसिफिक रीजन में प्रशांत द्वीपीय और दक्षिण पूर्व एशियाई देश जहां भारत को बैलेंसिंग फैक्टर के रूप में देख रहे हैं, वहीं भारत ने भी चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद में फिलीपींस का समर्थन और ऑस्ट्रेलिया के कोकोस द्वीप समूह में दो सैन्य विमान भेजकर इंडो-पैसिफिक में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का संकेत दिया है.
चीन को काउंटर करने के लिए भारत किस तरह से अपनी रणनीति पर काम कर रहा है, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि भारत ने हाल ही में 5,500 समुद्री मील से अधिक की समुद्री यात्रा (पापुआ न्यू गिनी) पर अपने दो युद्धपोत भेजे थे. वहीं, चीन और फिलीपींस के क्षेत्रीय विवाद में भी भारत ने फिलीपींस का समर्थन किया है.
इसके अलावा भारत ने चीन के साथ लंबे समय से क्षेत्रीय विवाद में शामिल दक्षिण एशियाई देश वियतनाम को एक एक्टिव ड्यूटी मिसाइल कार्वेट उपहार में दिया है. साथ ही ऑस्ट्रेलिया के सशस्त्र बलों के साथ इंट्रोपर्बेलिटी बढ़ाने के उद्देश्य से भारत ने ऑस्ट्रेलिया के कोकोस कीलिंग द्वीप समूह में दो सैन्य विमान भेजे हैं.
ग्लोबल टाइम्स को लगी मिर्ची
भारत के इस कदम पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक ओपिनियन लेख में अपनी भड़ास निकाली है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, "भारत बैलेंसिंग फैक्टर की आड़ में इंडो-पैसिफिक रीजन को और अधिक परेशानियों की ओर धकेल रहा है. भारत को बैलेसिंग की कला सीखने की जरूरत हो सकती है. क्योंकि भारत की वर्तमान रणनीति इस क्षेत्र (इंडो-पैसिफिक रीजन) को टकराव (camp confrontation) या यहां तक कि एक नए कोल्ड वार की ओर धकेलने का जोखिम उठा रही है."
ग्लोबल टाइम्स ने भारत की ओर से इंडो पैसेफिक देशों के लिए उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए लिखा है, "भारत की यह कार्रवाई खतरनाक संकेत भेजती है. साथ ही यह बताती है कि भारत न केवल अपने पारंपरिक गुटनिरपेक्ष के रुख से भटक रहा है, बल्कि इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन को रोकने और उसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका को खुले तौर पर सहयोग कर रहा है."
ग्लोबल टाइम्स ने एक्सपर्ट के हवाले से चेतावनी देते हुए लिखा है, "भारत अमेरिका और चीन के टकराव को एक मौके के तौर पर देख रहा है लेकिन भारत जितना ज्यादा चीन विरोधी रुख अपनाएगा, इंडो-पैसेफिक में गुटों का टकराव और ज्यादा बढ़ेगा और ऐसा करके भारत एशिया की शांति और विकास को नुकसान पहुंचाएगा."
पापुआ न्यू गिनी से भारत की बढ़ती नजदीकी
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मामले से अवगत लोगों का कहना है कि पापुआ न्यू गिनी के राजनयिक हलकों को भी उस वक्त आश्चर्य हुआ जब 3 अगस्त को पोर्ट मोरेस्बी में भारत के युद्धपोत आईएनएस सह्राद्री और मिसाइल विध्वंसक आईएनएस कोलकाता पर आयोजित एक स्वागत समारोह में प्रधानमंत्री जेम्स मारापे और लगभग उनकी पूरी कैबिनेट ने हिस्सा लिया. जबकि इस तरह के स्वागत समारोह में आमतौर पर केवल रक्षा मंत्री या अन्य अधिकारी शामिल होते थे.
यह स्वागत समारोह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि भारतीय युद्धपोत की पापुआ न्यू गिनी यात्रा ऐसी समय पर हुई जब मई में ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-प्रशांत द्वीप सहयोग मंच (एफआईपीआईसी) के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था. स्वागत समारोह के बाद मारापे ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस यात्रा से दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलेगा.
वियतनाम को उपहार में मिसाइल कार्वेट आईएनएस कृपाण
22 जुलाई को भारत ने वियतनाम को उपहार के रूप में मिसाइल कार्वेट आईएनएस कृपाण दिया. भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने इस समारोह की अध्यक्षता की थी. यह पहली बार था जब भारत ने किसी मित्र देश को अपने हथियारों के साथ पूरी तरह से ऑपरेशनल युद्धपोत दिया. वियतनाम को गिफ्ट किया गया युद्धपोत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वियतनाम की समुद्री सेनाएं बार-बार दक्षिण चीन सागर में चीनी जहाजों के साथ आमने-सामने होती रही हैं.
एडमिरल आर हरि कुमार ने वियतनाम को नौसेना युद्धपोत देते हुए कहा कि हमें उम्मीद है कि वियतनाम नौसेना इस युद्धपोत का उपयोग अपने राष्ट्रीय समुद्री हितों की रक्षा करने, क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान करने और शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए करेगी.
फिलीपींस को समर्थन के क्या हैं मायने?
वहीं, इससे पहले दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ फिलीपींस के क्षेत्रीय विवाद में भारत ने फिलीपींस के पक्ष में 2016 के स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले को स्वीकार किया था. लेकिन 29 जून को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके फिलिपिनो समकक्ष एनरिक मनालो के बीच हुई बैठक के बाद जारी एक बयान से स्पष्ट हो गया कि भारत ने इस मसले को लेकर अपनी स्थिति में बदलाव किया है.
बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया था कि दोनों देशों ने विवादों को शांतिपूर्वक हल करने और अंतरराष्ट्रीय कानून विशेष रूप से UNCLOS और '2016 Arbitral Award on the South China Sea का पालन करने की जरूरतों पर जोर दिया. जबकि चीन ने स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले को स्वीकार नहीं किया है.
मामलों से अवगत लोगों का कहना है कि सोलोमन द्वीप जैसे कुछ प्रशांत द्वीपीय देशों ने चीन के साथ जाना पसंद किया है, जबकि पापुआ न्यू गिनी जैसे देश अमेरिका और चीन के बीच फंसना नहीं चाहते हैं और वो भारत की ओर रुख कर रहे हैं.
QUAD की मदद से चीन का मुकाबला
पापुआ न्यू गिनी की यात्रा पर गए दोनों युद्धपोत मालाबार अभ्यास में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाएंगे. 11 अगस्त से शुरू हो रहे मालाबार अभ्यास में क्वाड समूह के सभी देशों की नौसेनाएं शामिल होंगी. QUAD चार देशों का संगठन है- इसमें शामिल देश हैं भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका.
यह पहली बार है जब मालाबार अभ्यास की मेजबानी ऑस्ट्रेलिया कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया मालाबार युद्ध अभ्यास की मेजबानी ऐसे समय में कर रहा है जब क्वाड देशों ने चीन के आक्रमक रवैया का मुकाबला करने के लिए समुद्री सुरक्षा से लेकर महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों तक के क्षेत्रों में चीन को रोकने की पहल शुरू की है.
भारत का यह कदम महत्वपूर्ण: पूर्व नौसेना प्रमुख
हाल के सप्ताह में उठाए गए भारत के कदमों पर पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल (सेवानिवृत्त) अरुण प्रकाश का कहना है कि भारत की ओर से उठाए गए कुछ कदम प्रतीकात्मक हो सकते हैं, लेकिन ये महत्वपूर्ण संकेत हैं, जो कई साल पहले उठाए जाने चाहिए थे. ऐसे देशों तक पहुंच बनाना महत्वपूर्ण है.
भारत के पूर्व नौसेना प्रमुख ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, "हम क्वाड समूह का हिस्सा हैं. क्वाड हमसे इन देशों तक पहुंचने की उम्मीद करता है. हमने वियतनाम को एक युद्धपोत और म्यांमार को उपहार में एक पनडुब्बी दी है. भारत का यह कदम उन्हें चीन से दूर करने और उन्हें यह आश्वस्त करने के लिए हैं कि उनके पास दोस्त (भारत) है.
उन्होंने यह भी कहा कि चीन तथाकथित स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के तहत भारत के चारों ओर सैन्य और वाणिज्यक सुविधाओं का एक घेरा बना रहा है. जिसमें पड़ोसी देश श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह में कंटेनर सुविधाएं, जिबूती और कंबोडिया में नौसैनिक अड्डा शामिल है. भारत को अपने हितों की रक्षा करने की जरूरत है और इस तरह की प्रतीकात्मक संकेत देने में कभी देर नहीं होती है.
क्या और कहां है इंडो-पैसिफिक रीजन?
इंडो-पैसिफिक रीजन में चार महाद्वीप आते हैं- एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका. दुनिया की लगभग 60 प्रतिशत आबादी इसी रीजन में निवास करती है. वहीं, आर्थिक रूप से भी यह रीजन काफी संपन्न है. कुल ग्लोबल इकोनॉमिक आउटपुट में लगभग 65 प्रतिशत हिस्सेदारी इसी रीजन का है. इंडो-पैसिफिक रीजन में दक्षिण चीन सागर सहित हिंद महासागर और पश्चिमी और मध्य प्रशांत महासागर शामिल हैं.
अमेरिका, भारत और कई अन्य विश्व शक्तियां वैश्विक व्यापार के लिए महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य पैंतरेबाजी को देखते हुए एक स्वतंत्र, खुले और संपन्न इंडो-पैसिफिक रीजन को सुनिश्चित करना चाहती हैं.
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