पहले 'काफिर' घोषित किए गए भुट्टो, फिर जिया ने किया तख्तापलट... अब मुनीर क्या करेंगे शहबाज का?

क्या आसिम मुनीर, जिया या मुशर्रफ की तरह सत्ता हथियाएंगे? वहां अभी तक कोई तख्तापलट नहीं हुआ, लेकिन उसकी बढ़ती भूमिका सैन्य दादागीरी की ओर इशारा करती है. पाकिस्तान के लोग सैन्य हस्तक्षेप से थक चुके हैं, लेकिन वहां की सेना भारत-अफगानिस्तान और आतंकवाद के नाम पर वहां के लोगों को बरगलाती रहती है.

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पाकिस्तान में 33 साल तानाशाहों का शासन रहा है. (Photo: ITG) पाकिस्तान में 33 साल तानाशाहों का शासन रहा है. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST

पाकिस्तान की राजनीतिक-सैन्य इतिहास की किताबें खोलें तो एक पैटर्न साफ नजर आता है. यहां भारत के खिलाफ हर बड़ी जंग या सैन्य अभियान के बाद देश में एक तानाशाह उभरता है. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद जनरल जिया-उल-हक ने सत्ता हथिया ली, कारगिल युद्ध के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट कर दिया, और अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद आसिम मुनीर तानाशाह बनने की राह पर चल चुका है. आसिम मुनीर का पहले तो फील्ड मार्शल बनना और फिर संविधान संशोधन द्वारा चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) बनना इसी की ओर इशारा है. 

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पाकिस्तान की आजादी के 78 सालों में से 33 साल सैन्य तानाशाहों के शासन में गुजरे हैं. पहला बड़ा उदाहरण 1958 में जनरल अयूब खान का तख्तापलट था, इसी बीच 1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में अयूब पर दबाव बढ़ा, लेकिन चूंकि वह खुद ही मिलिट्री तानाशाह थे इसलिए वे प्रेशर झेल गए. 

1971 की लड़ाई, अशांति और तख्तापलट

लेकिन 1971 का युद्ध एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. इस युद्ध में पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश का जन्म हुआ, पाकिस्तान को ये हार जनरल याह्या खान के नेतृत्व में ही झेलनी पड़ी थी. उनकी पाकिस्तान में खूब बेइज्जती हुई. देश में तख्तापलट की अफवाहें चल रही थी. ऐसा लग रहा था सैन्य अधिकारियों का एक ग्रुप कभी भी तख्तापलट कर सकता है. 

1971 में पाकिस्तान की हार 16 दिसंबर को हुई थी.  याह्या खान ने आगे की अशांति को रोकने के लिए 20 दिसंबर 1971 को राष्ट्रपति पद और सरकार की बागडोर को उस समय की शक्तिशाली और लोकप्रिय पीपुल्स पार्टी के महत्वाकांक्षी नेता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. 

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पांच-छह सालों तक भुट्टो की राजनीति चलती रही. 1977 में पाकिस्तान में भयंकर राजनीतिक संकट था. मार्च में हुए आम चुनाव में जुल्फिकार अली भुट्टो की PPP ने भारी जीत हासिल की, लेकिन विपक्षी गठबंधन PNA ने बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाया. पूरे देश में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए, लाहौर-कराची में दंगे हुए, पुलिस फायरिंग हुई और सैकड़ों मौतें हुईं. 

भुट्टो को काफिर घोषित किया गया

बात यहां तक बिगड़ गई थी कि कुछ दलों ने भुट्टो को काफिर घोषित कर दिया. 

1977 के चुनावी धांधली विरोधी आंदोलन के दौरान भुट्टो को स्पष्ट रूप से “काफिर” घोषित किया गया था, और यह घोषणा विपक्षी गठबंधन 

जुल्फिकार अली भुट्टो को पाकिस्तान नेशनल अलायंस (PNA) 'काफिर' करार दिया था. PNA में जमात-ए-इस्लामी, जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम जमीअत उलेमा-ए-पाकिस्तान आदि कट्टर इस्लामी दल शामिल थे. उनके लिए भुट्टो शुरू से ही “सेक्युलर”, “सोशलिस्ट” और “शराब पीने वाला” नेता थे, जो इस्लाम के खिलाफ था. 

मार्च 1977 से PNA ने पूरा आंदोलन ही 'निजाम-ए-मुस्तफा' के नाम पर चलाया. उनका नारा था कि भुट्टो ने इस्लामी कानूनों का उल्लंघन किया है, इसलिए वह काफिर है और उसकी हुकूमत हराम है. भुट्टो ने 1974 में ही अहमदियों को गैर-मुस्लिम घोषित कर इस्लामी दलों को खुश किया था. लेकिन 1977 में यही दल कहने लगे कि भुट्टो ने सिर्फ दिखावे के लिए ऐसा किया, असल में वह खुद काफिर है. 

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अप्रैल में तीन बड़े शहरों में मार्शल लॉ लगाना पड़ा. जून-जुलाई में भुट्टो और PNA के बीच समझौता लगभग तय हो गया था, 4 जुलाई को ही हस्ताक्षर होने वाले थे. लेकिन सेना को यह मंजूर नहीं था.

भुट्टो ने पहले कई सीनियर जनरलों को दरकिनार कर जिया-उल-हक को आर्मी चीफ बनाया था, सेना में भुट्टो के खिलाफ गुस्सा था. 5 जुलाई 1977 की रात को जिया उल हक ने भुट्टो को गिरफ्तार करवा दिया और मार्शल लॉ लगा दिया. यही पाकिस्तान का सबसे खूनखराबा वाला तख्तापलट साबित हुआ. 

जिया उल हक 11 साल तक तानाशाह रहे. जिया ने इस्लामीकरण की आड़ में अपनी सत्ता मजबूत की, लेकिन उनकी मौत 1988 में एक विमान हादसे में हो गई. 

1999 में पाकिस्तान का धोखा और मुशर्रफ का दांव

10 साल बाद 1999 में पाकिस्तान एक बार फिर से सियासी और सैन्य उथल-पुथल के तैयार था. पूर्व पीएम वाजपेयी की लाहौर यात्रा के गुडविल को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान की सेना ने 99 की सर्दियों में करगिल की चोटियों पर कब्जा जमा लिया था. भारत ने करगिल की लड़ाई में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए. पाकिस्तान की सेना को पीछे हटना पड़ा.

इसके कुछ महीनों बाद ही जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को हटा दिया और सत्ता अपने हाथ में ले ली. 

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मुशर्रफ का शासन 2008 तक चला, जिसमें 9/11 के बाद अमेरिका के साथ गठबंधन और आतंकवाद के खिलाफ जंग शामिल थी. मुशर्रफ की मौत 2023 में निर्वासन में हुई. 

हारे हुए जनरल का प्रोपगैंडा

अब कहानी पाकिस्तान के मौजूदा आर्मी चीफ आसिम मुनीर की. आसिम मुनीर नवंबर 2022 से आर्मी चीफ है. इस साल मई में भारत ने जब पुलवामा आतंकी हमले का बदला लेने के लिए ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया तो पाकिस्तान की बुरी तरह हार  हुई. भारत ने पाकिस्तान में घुसकर हमला किया और आतंकी कैंपों को तहस-नहस कर दिया. पाकिस्तान के कई एयर बेस पर भारत ने हमला किया. 

लेकिन आसिम मुनीर ने यहां भी जमकर झूठ बोला और इस जंग में पाकिस्तान को विजयी बताया. पाकिस्तान की सेना की जीत के नाम पर आसिम मुनीर ने पीएम शहबाज शरीफ को विश्वास में लेकर खुद का प्रमोशन कर लिया और फील्ड मार्शल बन गया.

दिसंबर 2025 में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उसे 5 साल के लिए चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) के साथ-साथ नया पद 'चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज'(CDF) सौंपा, जो तीनों सेनाओं पर एकीकृत कमान देता है. इससे मुनीर का दबदबा बढा. 

आसिम मुनीर के हाथ में भले ही अभी पाकिस्तान की औपचारिक सत्ता नहीं हो लेकिन उसने सैन्य-राजनीतिक गठजोड़ से तानाशाही की नींव मजबूत की. इसमें कोई शक नहीं है कि मौका पड़ने पर मुनीर पाकिस्तान की राजनीतिक सत्ता को भी अपने कंट्रोल में ले सकता है. सैन्य ताकत तो उसकी मुट्ठी में है ही.

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