आर्थिक तंगहाली के बीच भी नहीं मान रहा पाकिस्तान, भारत को पानी को लेकर देना पड़ा ये नोटिस

भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है. सरकार का कहना है कि भारत, पाकिस्तान के साथ जल संधि को अक्षरशः लागू करने में दृढ़ समर्थक और जिम्मेदार भागीदार रहा है. लेकिन पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने भारत को जरूरी नोटिस जारी करने के लिए मजबूर कर दिया.

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फाइल फोटो फाइल फोटो

गीता मोहन

  • नई दिल्ली,
  • 27 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 4:11 PM IST

आर्थिक संकट में घिरे होने के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है. यह संधि सितंबर 1960 में हुई थी. सरकारी सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान की ओर की गई कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. 

सूत्रों के अनुसार, सरकार का कहना है कि भारत, पाकिस्तान के साथ जल संधि को अक्षरशः लागू करने का समर्थक और जिम्मेदार भागीदार रहा है. लेकिन पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने भारत को जरूरी नोटिस जारी करने के लिए मजबूर कर दिया.

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पाकिस्तान को 90 दिनों की मोहलत 

भारत सरकार की ओर से जारी नोटिस का मुख्य मकसद पाकिस्तान को समझौते के उल्लंघन को सुधारने के लिए 90 दिनों की मोहलत देनी है. यह पहली बार है जब भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन की मांग की है.

पाकिस्तान की कार्रवाईयों ने मजबूर किया 

भारत ने संबंधित आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है. पाकिस्तान को यह नोटिस 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) के अनुच्छेद XII (3) के अनुसार जारी किया गया है. 

दोनों देशों के बीच नौ सालों की बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे. इस संधि में विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता है.

भारत ने नोटिस में क्या कहा?

भारत की ओर से जारी किए गए नोटिस में भारत ने कहा है, "भारत हमेशा सिंधु जल समझौते को जिम्मेदारी के साथ लागू किया है. लेकिन पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने IWT के प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. जिसके कारण भारत को IWT के संशोधन के लिए एक जरूरी नोटिस जारी करना पड़ा."

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भारत ने क्यों जारी किया नोटिस

साल 2015 में पाकिस्तान ने भारत की किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं (HEPs) पर अपनी तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया था. लेकिन 2016 में पाकिस्तान ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए इस अनुरोध को वापस ले लिया और प्रस्ताव दिया कि एक मध्यस्थ अदालत उसकी आपत्तियों पर फैसला सुनाए.

पाकिस्तान की ओर से की गई यह कार्रवाई सिंधु जल संधि के अनुच्छेद IX का उल्लंघन है. इसलिए भारत ने इस मामले को एक तटस्थ विशेषज्ञ के पास भेजने का अनुरोध किया. 

पारस्परिक रूप से बीच का रास्ता निकालने के लिए भारत की ओर से बार-बार प्रयास करने के बावजूद पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया.

इस तरह से पाकिस्तान की ओर से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के लगातार उल्लंघन ने भारत को संशोधन का नोटिस जारी करने के लिए मजबूर कर दिया.

क्या है सिंधु जल समझौता

भारत और पाकिस्तान के बीच नौ सालों की बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे. इस संधि में विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता है.

इसी समझौते से दोनों देशों के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों से पानी की आपूर्ति का बंटवारा नियंत्रित किया जाता है. इस समझौते के प्रावधानों के तहत पूर्वी नदियां जैसे सतलज, ब्यास और रावी का लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) वार्षिक जल का उपयोग भारत के लिए आवंटित किया गया है.

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वहीं, पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम और चिनाब का लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल पाकिस्तान के लिए आवंटित किया गया है.

हाल के वर्षों में भारत ने कई महत्वाकांक्षी सिंचाई योजना और कई अपस्ट्रीम बांधों के निर्माण की शुरुआत की है. पाकिस्तान ने 2015 में इस पर आपत्ति जताई थी. जबकि भारत का कहना है कि पानी का उपयोग पूरी तरह से संधि के अनुरूप है.

पाकिस्तान को मिलता है 80 प्रतिशत पानी

सिंधु जल समझौते के अनुसार, भारत को कुछ शर्तों के साथ पश्चिमी नदियों पर 'रन ऑफ द रिवर' परियोजनाओं के माध्यम से पनबिजली उत्पन्न करने का अधिकार दिया गया है. 

सिंधु जल समझौतों के तहत पाकिस्तान को लगभग 80 प्रतिशत पानी मिलता है. लगभग 16 करोड़ एकड़-फीट पानी में से लगभग 3.3 करोड़ एकड़ फीट पानी ही भारत को मिलता है. उसमें भी भारत सिर्फ 90 प्रतिशत से थोड़ा अधिक पानी ही उपयोग करता है.
 

 

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