Pakistan Imran Khan: पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के भारत समेत दुनियाभर के लिए क्या हैं मायने?

Imran Khan: पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन हो गया है. मुल्क की कमान अब शाहबाज शरीफ के हाथों में जाने वाली है. इस राजनीतिक उथल-पुथल का असर दुनियाभर के कई देशों पर होगा. कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना अब नई सरकार पर कश्मीर में सफल संघर्ष विराम के लिए दबाव डाल सकती है.

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शाहबाज शरीफ होंगे पाकिस्तान के नए PM शाहबाज शरीफ होंगे पाकिस्तान के नए PM

aajtak.in

  • इस्लामाबाद,
  • 10 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 12:14 PM IST
  • 3 साल 7 महीने सत्ता में रहे थे इमरान खान
  • इमरान ने चीन-रूस के साथ बढ़ाई करीबी

Imran Khan: पाकिस्तान में सरकार का चेहरा बदल चुका है. हाई वोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामे के बाद इमरान खान को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. अब मुल्क में नए प्रधानमंत्री सत्ता की कुर्सी पर काबिज होंगे. इमरान खान ने 3 साल और 7 महीने तक देश की सत्ता संभाली थी. इस भारी राजनीतिक उथल-पुथल का असर न सिर्फ पाकिस्तान पर पड़ेगा, बल्कि भारत समेत कई देशों के लिए भी इस सियासी घटनाक्रम के अलग-अलग मायने हैं. 

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गौरतलब है कि 2018 में सत्ता में आने के बाद से इमरान खान की बयानबाजी अमेरिकी विरोधी हो गई है. उन्होंने चीन और हाल ही में रूस के करीब जाने की मंशा जाहिर की थी. इमरान ने 24 फरवरी को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी. वहीं, इस सियासी उलटफेर का असर पश्चिम में अफगानिस्तान, उत्तर पूर्व में चीन और पूर्व में भारत पर भी होगा.

क्या भारत से साथ सुधरेंगे संबंध?

सबसे पहले बात भारत के संदर्भ में करें तो पाकिस्तान में इमरान सरकार गिरने के बाद भारत में इसे लेकर लगातार चर्चा हो रही है. हालांकि दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर गहरे अविश्वास के कारण कई वर्षों से औपचारिक राजनयिक वार्ता नहीं हुई है. लेकिन भारत-पाकिस्तान संबंधों का बारीक नजर रखने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तानी सेना इस्लामाबाद में नई सरकार पर कश्मीर में सफल संघर्ष विराम के लिए दबाव डाल सकती है. क्योंकि पाकिस्तान के ताकतवर सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने हाल ही में कहा था कि अगर भारत सहमत होता है, तो उनका देश कश्मीर पर आगे बढ़ने को तैयार है.

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अमेरिका के लिए पाकिस्तान का महत्व

अमेरिका स्थित दक्षिण एशिया के विशेषज्ञों ने कहा कि पाकिस्तान का राजनीतिक संकट अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए खास महत्वपूर्ण नहीं है. क्योंकि इस समय वह यूक्रेन में युद्ध के हालातों पर नजर बनाए हुए हैं. वहीं अमेरिका का ध्यान पाकिस्तान की ओर तभी जाता है, जब भारत-पाकिस्तान के बीच बड़े पैमाने पर अशांति या तनाव पैदा होता है.

सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज थिंक-टैंक के एक वरिष्ठ सहयोगी और दक्षिण एशिया के पूर्व सहायक राज्य सचिव रॉबिन राफेल ने कहा कि हमारे पास पाकिस्तान के अलावा और भी कई मुद्दे हैं. वहीं दक्षिण एशिया के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के वरिष्ठ निदेशक कर्टिस ने कहा कि भारत, पाकिस्तान की अंदरूनी पॉलिटिक्स, परमाणु हथियार औऱ अफगानिस्तान जैसे मुद्दे अमेरिका के लिए काफी हद तक अप्रासंगिक हैं. अमेरिका सिर्फ उनकी परवाह करता है जिन पर सेना ध्यान आकर्षित कराती है. हालांकि उन्होंने कहा कि इमरान खान की रूस की यात्रा अमेरिका के साथ संबंधों पर बड़ी आपदा के रूप में सामने आई थी. इस्लामाबाद में नई सरकार कुछ हद तक संबंधों को सुधारने में मदद कर सकती है. बता दें कि इमरान खान ने वर्तमान राजनीतिक संकट के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया है. साथ ही कहा कि वाशिंगटन चाहता था कि हाल ही में मास्को यात्रा के कारण उन्हें हटा दिया जाए. लेकिन वाशिंगटन ने इस मामले में अपनी किसी भी भूमिका से इनकार कर दिया है.

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चीन के लिए पाकिस्तान में कौन जरूरी?

हाल के कुछ समय में इमरान खान ने पाकिस्तान और दुनिया में बड़े पैमाने पर चीन की सकारात्मक भूमिका पर लगातार जोर दिया है. उनकी सरकार में 60 अरब डॉलर की लागत से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा दोनों देशों के बीच संबंधों को अधिक मजबूती देने वाला रहा. लेकिन चीन के पाकिस्तान के दोनों राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इस योजना पर काम किया. क्योंकि इमरान ही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई शाहबाज शरीफ ने भी चीन के साथ पंजाब के पूर्वी प्रांत के नेता के रूप में कई समझौते किए. 

अफगानिस्तान के साथ बढ़ीं पाक की तल्खियां!

हाल के वर्षों में पाकिस्तान की सैन्य खुफिया एजेंसी और इस्लामी आतंकवादी तालिबान के बीच संबंध कमजोर हुए हैं. लिहाजा तालिबान और पाकिस्तान की सेना के बीच तनाव बढ़ गया है. पाकिस्तान चाहता है कि तालिबान चरमपंथी समूहों पर नकेल कसने के लिए और अधिक प्रयास करे. क्योंकि पाकिस्तान को ये चिंता है कि ऐसा नहीं होता है तो वह पाकिस्तान में हिंसा फैलाएंगे.

वहीं. सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी थिंक में इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी प्रोग्राम की निदेशक लिसा कर्टिस ने कहा कि अमेरिका तालिबान के लिए एक माध्यम के रूप में पाकिस्तान की जरूरत नहीं है. क्योंकि वो भूमिका अब कतर निभा रहा है. 

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