यहां साल 2025 नहीं 2018 चल रहा, 12 बजे होता है सूर्योदय... इसी देश से भारत आई ज्वालामुखी की राख!

सूर्योदय सुबह 6 बजे नहीं, बल्कि दोपहर के 12 बजे, साल में 12 नहीं बल्कि 13 महीने और ये वर्ष 2025 नहीं है बल्कि 2018 है. ये पृथ्वी से इतर किसी दूसरे ग्रह की बात नहीं हो रही है. ये बात हो रही है अफ्रीकी महादेश में बसे इथियोपिया की. समय से जुड़ी कई बातें इस देश को खास बनाती हैं. इसी इथियोपिया में 12 हजार साल बाद एक ज्वालामुखी सक्रिय हुआ है. जिसकी राख दिल्ली तक आ पहुंची है.

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इस देश में एक साल में 13 महीने होते हैं. (Photo: ITG) इस देश में एक साल में 13 महीने होते हैं. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST

इथियोपिया के अफार क्षेत्र में 12000 वर्ष बाद सक्रिय हुआ एक ज्वालामुखी ने एशिया अफ्रीका के कई देशों में हाहाकार मचा दिया है. ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान 14 किलोमीटर ऊंचाई तक राख और धुएं के घने बादल निकले. ये राख और धुआं चारों ओर फैल रहा है. इथियोपिया पूर्वी अफ्रीका के हॉर्न क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन देश है, जो लाल सागर के दक्षिण-पश्चिम में, इरिट्रिया, जिबूती, सोमालिया, केन्या और दक्षिण सूडान से घिरा हुआ है.  यह अफ्रीका का एकमात्र देश है जो कभी यूरोपीय उपनिवेश नहीं बना और अपनी 3,000 वर्ष पुरानी सभ्यता पर गर्व करता है. 

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इथियोपियाई समाज काफी विविधतापूर्ण है. यहां 80 से अधिक जातीय समूह रहते हैं, यहां हर समुदाय की अपनी भाषा-संस्कृति है.यहां 60% से अधिक लोग ईसाई (इथियोपियन ऑर्थोडॉक्स चर्च) हैं, जो दुनिया के सबसे पुराने ईसाई समुदायों में से एक है. यहां की संस्कृति का ही एक अनूठापन है साल के 13 महीने. यहां 13वां महीना 5 दिन का होता है. 

आइए समझते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है? 

इथियोपिया आधुनिक विश्व की वो भूमि है जहां समय अभी भी ठहरा है, सभ्यताएं पुरातन है और जिंदगी दुनिया के मुकाबले सालों पीछे है. इथियोपिया ने जानबूझकर अपनी प्राचीन पहचान, समय-गणना, कैलेंडर और जीवनशैली को आज भी जीवंत रखा है. यह दुनिया का एकमात्र एक देश है जो आज भी ईसा मसीह के जन्म से 7-8 वर्ष पीछे अपना अलग कैलेंडर मानता है. इसे गीज़ कैलेंडर कहते हैं. यहां 2025 नहीं अभी 2018 चल रहा है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गीज कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से  7-8 वर्ष पीछे चलता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया के बाकी हिस्सों में चलता है.

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यह कैलेंडर मिस्र के पुराने कोप्टिक कैलेंडर से लिया गया है, जिसे ईसाई चर्च ने अपनाया. इथियोपिया ने कभी यूरोपीय उपनिवेशवाद को स्वीकार नहीं किया, इसलिए उसकी संस्कृति, लेखन (गीज़ लिपि), चर्च संगीत और खान-पान पर पश्चिमी प्रभाव बहुत कम है. इथियोपिया ने ईसाई चर्च से लिए गए कैलेंडर को अपनाया इसे गीज कैलेंडर कहते हैं. इथियोपिया के अलावा इरिट्रिया ही एकमात्र देश हैं जो आज भी इस कैलेंडर को आधिकारिक रूप से मान्यता देता है. 

30-30 दिन के बारह महीने, तेरहवां महीना 5 दिन का

इथियोपिया में हर महीना ठीक 30 दिन का होता है. यानी कि 12 महीने × 30 दिन = 360 दिन. बाकी बचे 5 दिन को एक अलग छोटे महीने में डाला जाता है. इसे पागुमेन कहते हैं. 

जिस वर्ष लीप ईयर होता है उस साल इथियोपिया का 13वां महीना 6 दिन का होता है. इस तरह यगां कुल 13 महीने हो जाते हैं. यह कैलेंडर पूरी तरह सौर-आधारित है. हर 4 साल में एक लीप डे आता है, जिससे 13वां महीना 6 दिन का हो जाता है.  इसलिए इथियोपियाई लोग मजाक में कहते हैं- We have 13 months of sunshine. यानी कि हमारे पास 13 महीने धूप के हैं.

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ग्रेगोरियन कैलेंडर से 7-8 साल पीछे

हम भारतीय भले ही आज 2025 में जी रहे हैं,  लेकिन इथियोपिया में अभी 2018 चल रहा है, क्योंकि इथियोपियन गीज कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से 7-8 साल पीछे चलता है. इथियोपिया में नया वर्ष हमारे अनुसार सितंबर में शुरू होता है. वे इसे मेस्केरेम (Meskerem) कहते हैं यानी कि फूलों का महीना. इथियोपियाई नववर्ष अमूमन (ग्रेगोरियन कैलेंडर में 11 या 12 सितंबर) को मनाया जाता है. 

इथियोपिया में सूर्योदय 6 बजे सुबह नहीं, 12 बजे दिन

इथियोपिया में सूर्योदय को सुबह 6 बजे नहीं बल्कि सुबह 12 बजे माना जाता है. यानी वहां समय की गिनती सूरज के उगने से शुरू होती है, न कि आधी रात से. इसे इथियोपियन टाइम या कहते हैं. 

इथियोपिया बेहद पिछड़ा देश है. ग्रामीण क्षेत्रों में 70% आबादी आज भी बिना बिजली-पानी के मिट्टी के घरों में रहती है. इंटरनेट पहुंच केवल 25% तक है. यह देश सोशल मीडिया से दूर मौखिक कहानियां के जरिये संवाद और संचार करता है. ललिबेला के चट्टानी चर्चों में आज भी 11वीं सदी जैसी पूजा होती है. 

 

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