CPEC से कश्मीर मुद्दे पर नहीं बदला रुख, भारत-पाक बातचीत से सुलझाएं कश्मीर मसलाः चीन

चीन का कहना है कि 50 अरब डॉलर की सीपेक परियोजना से कश्मीर पर उसके रूख में कोई बदलाव नहीं आया है और इस मुद्दे का समाधान द्विपक्षीय रूप से होना चाहिए.

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शी जिनपिंग के साथ PM मोदी शी जिनपिंग के साथ PM मोदी

मोहित ग्रोवर

  • बीजिंग ,
  • 03 मई 2017,
  • अपडेटेड 9:20 PM IST

चीन ने इस बात से इनकार किया है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में निवेश की वजह से कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए उसने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की योजना बनाई है.

चीन का कहना है कि 50 अरब डॉलर की सीपेक परियोजना से कश्मीर पर उसके रूख में कोई बदलाव नहीं आया है और इस मुद्दे का समाधान द्विपक्षीय रूप से होना चाहिए.

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रचनात्मक भूमिका निभाएगा चीन
चीन का यह स्पष्टीकरण उस वक्त आया है जब एक दिन पहले ग्लोबल टाइम्स के एक लेख में कहा गया है कि कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता में बीजिंग का निहित स्वार्थ है क्योंकि उसने पीओके से होकर गुजरने वाले सीपेक में भारी निवेश कर रखा है.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा, 'कश्मीर मुद्दे पर चीन का रूख स्पष्ट और सतत है. यह मुद्दा भारत और पाकिस्तान को इतिहास से मिला है. दोनों देशों को बातचीत के जरिए इसका समाधान करना चाहिए.

शुआंग ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार के लिए चीन रचनात्मक भूमिका निभाएगा. गेंग ने कहा, 'सीपेक से इस मुद्दे पर चीन का रूख प्रभावित नहीं होगा.'

क्या कहता है ग्लोबल टाइम्स का लेख
बता दें कि ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में कहा था कि पीओके से गुजरने वाले सीपेक में करीब 50 अरब डॉलर के निवेश के कारण कश्मीर मुद्दे को हल करने में अब चीन के निहित स्वार्थ हैं।

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सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के अखबार ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित लेख में यह संकेत दिया गया है कि क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाने में चीन के अप्रत्यक्ष हित हैं। लेख में दावा किया गया है कि रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दे पर चीन ने म्यांमार और बांग्लादेश के बीच मध्यस्थता की।

चीन की 'वन बेल्ट, वन रोड' नीति
लेख के मुताबिक चीन ने अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करने के सिद्धांत का हमेशा पालन किया है, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि बीजिंग विदेशों में अपने निवेश की रक्षा में चीनी उद्यमों की मांगों पर ध्यान नहीं देगा।

इसमें कहा गया है कि 'वन बेल्ट, वन रोड' पर आने वाले देशों में चीन ने भारी निवेश किया है. इसलिए अब भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद समेत क्षेत्रीय विवाद हल करने में मदद के लिए चीन के निहित स्वार्थ हैं।

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