पहले ताजा मामला जानते चलें. ईरान में फिलहाल युवा, खासकर औरतें बगावत पर उतरी हुई हैं. वे ईरान के उस नियम का विरोध कर रही हैं, जिसमें उन्हें सिर ढककर रहने या किसी खास ड्रेसकोड को मानने को कहा जाए. नियम तोड़ने के लिए पुलिस हिरासत में गई युवती महसा अमीनी की मौत के बाद मुद्दा उछला. अब युवक भी इसमें औरतों के साथ खड़े दिख रहे हैं. ईरान में महिलाओं के साथ हिंसा को ही शार्ली हेब्दो ने घेरे में ले लिया.
बीते साल के आखिर में उसने एक कंपीटिशन का एलान करते हुए ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई का कार्टून बनाकर भेजने के लिए कहा. प्रतियोगिता में भारी एंट्रीज आईं, जिनमें से कई को पत्रिका में जगह मिली. सबमें खामेनेई खलनायक की तरह दिख रहे थे. इसके बाद ही ईरान उबलने लगा और फ्रांस को अपनी हद में रहने की सलाह दे दी. यहां तक कि इस देश ने अपने यहां स्थित फ्रेंच रिसर्च इंस्टीट्यूट को भी बंद करवा दिया.
तो क्या विरोध के बाद मैगजीन पीछे हट जाएगी और व्यंग्य करना बंद कर देगी! शायद नहीं. क्योंकि इससे पहले भी इस कार्टून पत्रिका ने दुनियाभर की मुसीबतें झेलीं और तब भी अपने तेवर नहीं बदले.
फ्रांस की बेहद मशहूर व्यंग्य पत्रिका शार्ली हेब्दो में राजनीति, इकनॉमी, समाज, नस्लभेद, रंगभेद और यहां तक कि कल्चर तक पर तीखे तंज किए जाते हैं. यही इसकी पहचान है. सत्तर की शुरुआत में ये पत्रिका तब शुरू हुई, जब इसी मिजाज की एक मैगजीन हारा कीरी को पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉले की मौत पर व्यंग्य छापने के चलते बंद करा दिया गया. 10 साल चलने के बाद मैगजीन बंद हुई, और फिर री-लॉन्च हुई, जिसके बाद वो लगातार विवादों में आती रही.
इसने हर मजहब पर धारदार कार्टून छापे. तिलमिलाए हुए धर्मों ने कई बार इनके एडिटर्स और कार्टूनिस्टों को जेल भिजवाया, कई बार जान से मारने की कोशिश हुई. और कईयों की जान गई भी. पोप का मजाक उड़ाने के चलते शार्ली हेब्दो को 13 बार कैथोलिक संस्थाओं ने नोटिस भेजकर तगड़ा जुर्माना लगवाया.
लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा तब हुई, जब पत्रिका ने पैगंबर मोहम्मद पर कार्टून छापे. इसके बाद वहां काम करने वाले लोगों को धमकियां मिलने लगीं और साल 2015 में आतंकी संगठन अलकायदा के 2 आतंकियों ने दफ्तर पर हमला कर दिया. इसमें 12 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें फ्रांस के कई प्रमुख कार्टूनिस्ट समेत पुलिसवाले भी थे. इसके बाद भी कई हमले हुए. यहां तक कि फ्रांस पर भी चरमपंथी हमलों का सिलसिला शुरू हो गया. हालांकि मैगजीन तब भी नहीं रुकी. यह सिलसिला आज भी जारी है.
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