ढाका में लग रहा 'हादी-हादी' का नारा... अवामी और इंडिया के खिलाफ जहर उगल रहे जमात और इंकलाब मंच के नेता

बांग्लादेश में इस समय राजनीतिक शून्य पैदा हुआ है. ढाका में ऐसा एक भी नेता नहीं है जो सही मायने में देश की जनता की आवाज होने का दावा कर सकता हो. ऐसी स्थिति में भारत के इस पड़ोसी देश में भारत विरोध और कट्टरपंथ बखूबी पनप रहा है.

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दंगाइयों ने बांग्लादेश के 2 मीडिया हाउसेज में आग लगा दी. (Photo: PTI) दंगाइयों ने बांग्लादेश के 2 मीडिया हाउसेज में आग लगा दी. (Photo: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:12 PM IST

ढाका का शाहबाग चौक बारुद पर बैठा सुलग रहा है. एक तरफ जुमे की नमाज चल रही है तो दूसरी ओर इंकलाब मंच के नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हो रहा है. जमात-ए-इस्लामी और इंकलाब मंच के नेता कार्यकर्ता भड़काऊ नारे लगा रहे है-  हादी भाई का खून बेकार नहीं जाएगा, 'तुमी के, तुमी के- हादी हादी', 'आमी के, आमी के- हादी-हादी'. लीग धरो, जेल पठाओ- लीग को पकड़ो, जेल भेजो. 

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इस बीच बांग्लादेश में जबर्दस्त हिंसा हो रही है. दो अखबारों के दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया है. भारत के राजनयिक प्रतिष्ठानों पर हमले हो रहे हैं. शेख मुजीबुर्रहमान के धानमंडी आवास में एक बार फिर से आगजनी और तोड़ फोड़ हुई है. कई सांस्कृतिक केंद्रों को तोड़ दिया गया है. दंगाइयों ने एक हिंदू को सरेआम लटकाकर जला दिया. 

बांग्लादेश की ये अराजकता रवांडा नरसंहार की याद दिलाती है. जब औपनिवेशिक काल से चले आ रहे हूतू-तुत्सी जातीय तनाव की वजह से नरसंहार हुआ था. बेल्जियम शासन ने तुत्सी को विशेषाधिकार देकर विभाजन को गहरा कर दिया. 1990 में तुत्सी विद्रोहियों के आक्रमण से गृहयुद्ध शुरू हुआ. 6 अप्रैल 1994 को राष्ट्रपति हब्यारिमाना की हत्या कर दी गई. इसके बाद भड़के गृहयुद्ध में 100 दिनों में करीब 8 लाख तुत्सी और उदारवादी हूतू मारे गए.

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बांग्लादेश में इस वक्त लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेता नहीं है. शेख हसीना निर्वासन पर हैं, खालिदा जिया वेंटिलेटर पर हैं और एक साल से ज्यादा समय से सरकार चला रहे मोहम्मद यूनुस की सत्ता नाम मात्र की है और उनका कट्टरपंथियों पर कोई कंट्रोल नहीं है. इसके उलट वे कट्टरपंथियों के सामने एक नहीं कई बार घुटने टेकते नजर आते हैं. बांग्लादेश की राजनीति में कद्दावर चेहरे के अभाव से पैदा हुए शून्य को भरने के लिए छुटभैये और कट्टरपंथी इस्लामिक नेता सामने आ रहे हैं. जैसे-

नाहिद इस्लाम: छात्र आंदोलन के प्रमुख कोऑर्डिनेटर और अंतरिम सरकार में मंत्री रहे. वे नेशनल सिटिजन पार्टी के कन्वीनर हैं, जो छात्रों द्वारा गठित नई राजनीतिक पार्टी है और कथित सुधारवादी एजेंडा पर काम कर रही है.

हसनत अब्दुल्लाह: नेशनल सिटिजन पार्टी के दक्षिणी क्षेत्र का मुख्य आयोजक है, और भारत-विरोधी बयानों के कारण विवादों में रहता है.

शरीफ उस्मान हादी: जुलाई विद्रोह के फ्रंटलाइन नेता और इंकलाब मंच (Inqilab Manch) का प्रवक्ता था. भारत से कट्टर विरोध पालने वाला हादी ढाका-8 से निर्दलीय उम्मीदवार भी था, लेकिन दिसंबर 2025 में गोली लगने से उसकी मौत हो गई.

महफुज आलम: छात्र आंदोलन का प्रमुख कोऑर्डिनेटर, अंतरिम सरकार में सलाहकार भूमिका और NCP से जुड़ा हुआ है.

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असीफ महमूद: कोटा विरोधी आंदोलन का प्रमुख छात्र नेता, अंतरिम सरकार में शामिल और NCP का हिस्सा. 

गौरतलब है कि इन में से कोई भी नेता जनता द्वारा चुना नहीं गया है. 

अवामी लीग के 400 नेता कार्यकर्ता की हत्या

इधर शेख हसीना के सत्ता से अपदस्थ होने के बाद इस देश में उनकी पार्टी अवामी लीग और उनके नेताओं कार्यकर्ताओं के खिलाफ टारगेटेड हिंसा का दौर शुरू हो चुका है. अवामी लीग का दावा है कि जुलाई 2024 से अब तक लगभग 400 नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है.

शेख हसीना लंबे समय तक देश की पीएम रहीं, लेकिन एक बार सत्ता से बेदखल होने के बाद उनके और उनकी पार्टी के खिलाफ हिंसा और बदले की भावना का सिलसिला शुरू हो चुका है. शेख हसीना को कथित मानवता के अपराधों के आरोप में उनकी अनुपस्थिति में मौत की सजा सुनाई जा चुकी है. उनकी पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध लग चुका है, और कई नेता जांच के घेरे में हैं. उनके लिए स्थिति ऐसी है कि वे ढाका वापस लौट नहीं सकते.

NCP, इंकलाब मंच और जमात कट्टरपंथ की लहर पर सवार

पूर्व पीएम शेख हसीना के खिलाफ न सिर्फ उनकी राजनीतिक विरोधी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) बदले की भावना से काम कर रही है. बल्कि कथित छात्र आंदोलन के दौरान पनपी एनसीपी, इंकलाब मंच जैसी पार्टियां भी हसीना के खिलाफ हैं. इसके अलावा जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश ने बांग्लादेश में कट्टरपंथ की लहर फैला रखी है. इनके निशाने पर भारत और उदारवाद की समर्थक ताकतें हैं.

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बांग्लादेश की राजनीतिक के साथ दिक्कत यह है कि न सिर्फ शेख हसीना सियासी परिदृश्य से बाहर हैं बल्कि देश की दूसरी अहम पार्टी बीएनपी चीफ और पूर्व पीएम खालिदा जिया भी गंभीर रूप से बीमार हैं.

खालिदा जिया के बिना संकट में BNP

दिसंबर 2025 में उनकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा. दिल, फेफड़े और अन्य अंगों की जटिलताओं से जूझ रही 80 वर्षीय खालिदा की स्थिति नाजुक बनी हुई है, जिससे बीएनपी की राजनीतिक ताकत पर भी सवाल उठ रहे हैं. 

इन दोनों दिग्गज नेताओं के सत्ता से बाहर होने से जो खालीपन पैदा हुआ, उसे भरने की जिम्मेदारी नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर है. यूनुस ने 12 फरवरी 2026 को चुनाव कराने की तारीख दे दी है, लेकिन इससे पहले बांग्लादेश राजनीतिक अराजकता के दौर में पहुंच गया है. 

यूनुस ने कट्टरपंथियों के दबाव में झुकते हुए जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामिक दलों पर से प्रतिबंध हटा लिया है, जिसे कुछ लोग लोकतंत्र की दिशा में कदम मानते हैं, तो कुछ कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाला. बांग्लादेश में सबसे चिंताजनक है अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हो रहे हमले. 

हसीना के जाने के बाद से हजारों घटनाएं सामने आईं हैं. इनमें घरों में आगजनी, मंदिरों में तोड़फोड़, लूटपाट और हमले शामिल हैं. हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल ने अगस्त 2024 से जून 2025 तक 2,442 हमलों का दावा किया है. 

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