बांग्लादेश के मयमनसिंह जिले से सामने आई एक घटना ने न सिर्फ मानवता को शर्मसार किया है, बल्कि कानून-व्यवस्था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. ईशनिंदा के नाम पर एक हिंदू युवक को वहशी भीड़ ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला, फिर उसके निर्वस्त्र शव को सड़क पर घसीटा, हाइवे जाम किया, डिवाइडर पर टांगा और करीब दो घंटे तक जश्न मनाने के बाद शव को आग के हवाले कर दिया. इस केस में अब सरकार ने एक्शन लिया है, 7 आरोपी गिरफ्तार हुए हैं.
मृतक की पहचान 27 वर्षीय दीपू चंद्र दास के रूप में हुई है, जो बांग्लादेश के मयमनसिंह जिले के ताराकांदा उपजिला का रहने वाला था. वह पायनियर निटवेयर्स (BD) लिमिटेड नाम की गारमेंट फैक्ट्री में काम करता था. यह घटना 18 दिसंबर की रात करीब 9:15 बजे मयमनसिंह के भालुका (Bhaluka) इलाके के जामिरदिया दुबलियापाड़ा क्षेत्र में फैक्ट्री के बाहर हुई.
घटना की शुरुआत कैसे हुई
स्थानीय सूत्रों और बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दीपू चंद्र दास फैक्ट्री के लिंकिंग सेक्शन में काम कर रहा था. इसी दौरान कथित तौर पर उसने एक सहकर्मी से बातचीत में आपत्तिजनक टिप्पणी की. इस बात की जानकारी तेजी से फैक्ट्री के बाहर फैल गई. कुछ ही समय में सैकड़ों लोग फैक्ट्री गेट के बाहर जमा हो गए और देखते-देखते भीड़ की संख्या 1500 से 2000 के बीच पहुंच गई.
भीड़ में आक्रोश बढ़ता गया. नारेबाजी शुरू हुई और प्रदर्शनकारी फैक्ट्री के अंदर घुसने की कोशिश करने लगे. फैक्ट्री कर्मचारियों और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव की स्थिति बन गई. हालात बिगड़ते देख औद्योगिक पुलिस और भालुका मॉडल थाना पुलिस मौके पर पहुंची और भीड़ को कंट्रोल करने का प्रयास किया.
पुलिस की मौजूदगी में भी नहीं रुकी भीड़
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, भीड़ इतनी उग्र थी कि पुलिस हालात संभालने में नाकाम रही. आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर भी हमला किया, जिसके बाद पुलिस को आत्मरक्षा में पीछे हटना पड़ा. इसी अफरा-तफरी के बीच भीड़ फैक्ट्री गेट तोड़कर अंदर घुस गई और दीपू चंद्र दास को जबरन बाहर घसीट लाई.
इसके बाद जो हुआ, वह किसी सभ्य समाज में कल्पना से परे है. भीड़ ने दीपू को बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया. लात-घूंसे, डंडों और अन्य चीजों से हमला किया गया. गंभीर रूप से घायल दीपू ने कुछ ही देर में दम तोड़ दिया.
मौत के बाद भी नहीं थमी बर्बरता
युवक की मौत के बाद भी भीड़ का गुस्सा शांत नहीं हुआ. आरोप है कि शव को निर्वस्त्र कर ढाका-मयमनसिंह हाइवे तक घसीटा गया. वहां सड़क जाम कर दी गई. इसके बाद शव को रोड डिवाइडर पर एक पेड़ या खंभे से टांग दिया गया. भीड़ ने नारे लगाए, जश्न मनाया और करीब दो घंटे तक जश्न जैसा माहौल बनाया.
रात करीब 11:15 बजे भीड़ ने शव पर केरोसिन डालकर आग लगा दी. यह पूरी घटना सार्वजनिक रूप से हुई, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए हैं. वीडियो में साफ दिख रहा है कि किस तरह एक युवक को भीड़ के बीच घेरा गया और वह अपनी जान के लिए गिड़गिड़ाता रहा.
स्थिति बेकाबू होने की सूचना पर भालुका उपजिला कार्यकारी अधिकारी, पुलिस और सेना के जवान मौके पर पहुंचे. कड़ी मशक्कत के बाद भीड़ को हटाया गया, आग बुझाई गई और शव को कब्जे में लिया गया. इसके बाद शव को भालुका मॉडल पुलिस स्टेशन ले जाया गया. प्रशासन ने तनाव को देखते हुए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं. फैक्ट्री प्रबंधन ने इस पूरे मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.
जांच और गिरफ्तारियां
इस मामले में बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन (RAB-14) ने एक्शन लेते हुए अब तक सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है. बांग्लादेश सरकार के चीफ एडवाइजर के आधिकारिक बयान के अनुसार, गिरफ्तार आरोपियों में 19 साल का मोहम्मद लिमोन सरकार, 19 साल का मोहम्मद तारेक हुसैन, 20 वर्षीय मोहम्मद मानिक मिया, 39 वर्षीय इरशाद अली, 20 वर्षीय निजुम उद्दीन, 38 वर्षीय आलमगीर हुसैन और 46 वर्षीय मोहम्मद मिराज हुसैन अकॉन शामिल हैं. RAB ने मयमनसिंह के अलग-अलग इलाकों में छापेमारी कर इन सभी को पकड़ा है. अधिकारियों का कहना है कि अन्य संदिग्धों की पहचान भी की जा रही है और आगे और गिरफ्तारियां हो सकती हैं.
भालुका उपजिले के कार्यकारी अधिकारी एमडी फिरोज हुसैन ने कहा कि ईशनिंदा मामले से जुड़ी घटना में एक व्यक्ति की मौत हुई है. शव पुलिस के कब्जे में है. मामले की जांच जारी है. हालांकि अब तक किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की पुष्टि कैसे हुई.
अल्पसंख्यक सुरक्षा पर सवाल
यह घटना बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदू समुदाय की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है. मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि भीड़ द्वारा कानून अपने हाथ में लेना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक है. किसी भी आरोप की जांच का अधिकार कानून को है, न कि उग्र भीड़ को.
दीपू चंद्र दास का आखिरी वीडियो, जिसमें वह भीड़ से घिरा हुआ नजर आता है, सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है.
फिलहाल जांच एजेंसियां इस पूरे घटनाक्रम की कड़ियों को जोड़ने में लगी हैं... भीड़ कैसे जुटी, पुलिस क्यों असफल रही, फैक्ट्री प्रबंधन की क्या भूमिका रही और क्या यह हिंसा पूर्व नियोजित थी या अचानक भड़की. साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया और अफवाहों ने इस हिंसा को कितनी हवा दी.
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