कट्टरवाद, इंडिया विरोध और पाक-चीन की कठपुतली... तख्तापलट के एक साल बाद बांग्लादेश किस हाल में?

शेख हसीना की सरकार के पतन के एक साल पूरे हो गए. यह समय न सिर्फ बांग्लादेश के लिए निराशा भरे रहे बल्कि यहां की आजाद हवा और सेकुलर ताने बाने में कट्टरवाद का असर बढ़ा. अल्पसंख्यक हिन्दुओं का दमन हुआ. बांग्लादेश की विदेश नीति ने लगभग यू टर्न लिया और मोहम्मद यूनुस अब पाकिस्तानी हुक्मरानों के स्वागत के लिए रेड कारपेट बिछा रहे हैं.

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5 अगस्त 2024 को शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ा था. (File Photo: AP) 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ा था. (File Photo: AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 1:51 PM IST

5 अगस्त 2024. यानी की वो तारीख जिसने बांग्लादेश का इतिहास बदल दिया. पिछले साल इसी दिन बांग्लादेश में लंबे आंदोलन, सैकड़ों हत्याओं के बाद शेख हसीना की सरकार का पतन हो गया था. आधुनिक इतिहास में ऐसा कम उदाहरण ही होगा जहां छात्रों के आंदोलन से एक देश की निर्वाचित सरकार को जाना पड़ा है. 

बांग्लादेश का ये आंदोलन वहां के लिए उम्मीदों की बयार लेकर आया था. लगभग 15 साल से सत्ता में रही शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट होने के बाद ढाका में एक नई व्यवस्था की उम्मीद जगी थी. इस रिजीम चेंज की कमान जब नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस को मिली तो आशाएं और भी बढ़ गईं. 

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लेकिन पिछले एक साल न सिर्फ बांग्लादेश के लिए निराश भरे रहे बल्कि ढाका की आजाद हवा में कट्टरवाद का असर बढ़ा. यहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं का दमन हुआ. बांग्लादेश की विदेश नीति ने लगभग यू टर्न लिया और जिस पाकिस्तान से बतौर स्वतंत्र देश के रूप में वजूद में आने के लिए बांग्लादेश ने लाखों कुर्बानियां दी, मोहम्मद यूनुस उसी पाकिस्तान के साथ गलबहियां करने लगे. 

मोहम्मद यूनुस की नीतियों ने भारत विरोध को हवा दिया और शेख हसीना को बांग्लादेश भेजने पर दोनों देशों के बीच तीखी बयानबाजियां हुईं.

आइए बांग्लादेश के एक साल के घटनाक्रम को समझते हैं?

कट्टरवाद का उभार और हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले

शेख हसीना के शासनकाल में बांग्लादेश ने आर्थिक प्रगति और धर्मनिरपेक्षता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए थे.आवामी लीग सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों पर कड़ा नियंत्रण रखा था. लेकिन शेख हसीना के पतन के साथ ही मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पर लगा प्रतिबंध हटा लिया. जिससे कट्टरपंथी ताकतें और सशक्त हुई हैं. 

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हिंदू समुदाय, जो बांग्लादेश की आबादी का लगभग 8% है, इस अस्थिरता का सबसे बड़ा शिकार बना है. तख्तापलट के बाद से 2,200 से अधिक हिंसक घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें हिंदुओं की हत्याएं, मंदिरों पर हमले, और संपत्तियों की लूटपाट शामिल हैं. ढाकेश्वरी मंदिर जैसे पवित्र स्थानों को निशाना बनाया गया, और रंगपुर जिले के अलदादपुर गांव में 15 हिंदू घरों को तोड़ा गया. 

अंतिरम सरकार आश्वासन दे रही है लेकिन हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने संविधान से "धर्मनिरपेक्ष" शब्द हटाने की मांग की है. इसका असर हिन्दू समुदाय की जिंदगी पर पड़ सकता है.

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने ढाका में यूनुस से मुलाकात कर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया, लेकिन स्थिति में सुधार के कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले. 

भारत-विरोधी भावनाएं और बीएनपी की भूमिका

शेख हसीना की सरकार भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की समर्थक थी. उनके शासनकाल में भारत-बांग्लादेश संबंधों ने नई ऊंचाइयां छुईं. लेकिन 
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी का भारत से असहज संबंध है. इसके अलावा तख्तापलट के बाद बनी छात्रों की नई पार्टी एनसीपी ने भी भारत विरोध को हवा दिया है.   

ये पार्टियां और संगठन भारत में बांग्लादेशियों के घुसपैठ के मुद्दे को अपने मुल्क में गलत तरीके से पेश करते हैं.  

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इसके अलावा भारत द्वारा शेख हसीना को शरण देने को भी बांग्लादेश में भारत-विरोधी प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने भी शेख हसीना का मुद्दा पीएम मोदी के सामने उठाया. इसके अलावा उन्होंने मोहम्मद यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों पर भी गैर जिम्मेदाराना बयान देकर भारत के साथ संबंधों को खराब कर दिया. मोहम्मद यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का जिक्र कहा था कि बंगाल की खाड़ी का एकमात्र गार्जियन बांग्लादेश है. भारत ने इस बयान पर तीखी टिप्पणी की थी. 

शेख हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश में खालिदा जिया का प्रभाव बढ़ गया है. (File Photo: AP)

हाल ही में बांग्लादेश ने भारत की दो प्रमुख हस्तियों रवीन्द्र नाथ टैगोर और दिग्गज निर्देशक सत्यजीत रे से जुड़ी विरासतों को ध्वस्त कर दिया था. 

पाकिस्तान और चीन की बढ़ती नजदीकियां

बांग्लादेश का झुकाव अब पाकिस्तान और चीन की ओर बढ़ रहा है. सालों बाद पाकिस्तानी सेना और ISI के अफसर बांग्लादेश का दौरा कर रहे हैं. ये इतिहास का निर्मम सच है कि इसी पाकिस्तान की सेना ने 1971 की जंग के दौरान पाकिस्तान में कत्ले-आम मचाया था. मोहम्मद यूनुस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से गर्मजोशी भरी मुलाकात की है. 

पाकिस्तान के साथ समुद्री व्यापार, जो वर्षों से बंद था फिर से शुरू हो गया है. 

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23 अगस्त को पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार 23 अगस्त को ढाका की यात्रा पर आ रहे हैं. पिछले तीन दशकों में किसी भी पाकिस्तानी विदेश मंत्री की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा होगी. 

एक पत्रकार ने जब बांग्लादेश के विदेशी मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन से पूछा कि क्या बांग्लादेश पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाते समय भारत की चिंता पर गौर करेगा तो उन्होंने भड़काऊ जबाव दिया. 

मोहम्मद तौहीद हुसैन ने कहा, "मैं यह तय नहीं करता कि भारत का पाकिस्तान के साथ रिश्ता कैसा होगा. इसी तरह, निश्चित रूप से भारत यह भी तय नहीं करेगा कि पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते कैसे होंगे."

दूसरी ओर चीन बांग्लादेश से भी अपने रिश्तों को सैन्य डोमेन में ले जा रहा है. मोहम्मद यूनुस ने मार्च 2025 में बीजिंग का दौरा किया. इसे दोनों देशों ने 50वें राजनयिक संबंध वर्ष के रूप में मनाया. इस दौरान चीन ने बांग्लादेश को 2.1 बिलियन डॉलर के निवेश, ऋण और अनुदान की पेशकश की. इसमें चटगांव में चीनी औद्योगिक आर्थिक क्षेत्र और मोंगला बंदरगाह के आधुनिकीकरण जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं. 

बांग्लादेश ने तीस्ता नदी परियोजना में चीन की भागीदारी को भी स्वीकार कर लिया है. बांग्लादेश का ये कदम भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती बन गया है. चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा साझेदार है. 2024 में इन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 18.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. 

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चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बांग्लादेश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है. इसमें पद्मा ब्रिज रेल लिंक भी शामिल है. 

बांग्लादेश ने हाल ही में तुर्की से किलर ड्रोन खरीदे और सैन्य ढांचे को भारतीय सीमा के पास मजबूत करने की योजना बनाई है, जिसे भारत के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है. 

आर्थिक और सामाजिक संकट

शेख हसीना के शासनकाल में बांग्लादेश की जीडीपी वृद्धि दर औसतन 6.5% थी, लेकिन यूनुस के नेतृत्व में यह 4% से नीचे गिर गई है. बेरोजगारी चरम पर है और कपड़ा उद्योग जैसी प्रमुख आर्थिक गतिविधियां संकट में हैं.  सामाजिक स्तर पर, धर्मनिरपेक्षता और उदारवादी मूल्यों पर हमला हो रहा है.  

भारत के लिए बांग्लादेश की अस्थिरता कई चुनौतियां ला रही हैं पूर्वोत्तर सीमाओं पर सुरक्षा खतरे बढ़ रहे हैं. कट्टरपंथी ताकतों का उभार क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है. फिलहाल भारत सरकार ने बांग्लादेश के हालात पर पैनी नजर रखी है और सीमा सुरक्षा बल को अलर्ट पर रखा है. 

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