एक तरफ चुनाव, दूसरी ओर SIR... राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' से ममता ने क्यों बनाई दूरी?

बिहार में राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' में तृणमूल कांग्रेस ने ममता या अभिषेक बनर्जी के बजाय युसूफ पठान और ललितेश तिवारी को भेजकर साफ संदेश दिया कि पार्टी गठबंधन में रहते हुए भी अपनी स्वतंत्र स्थिति बनाए रखना चाहती है. टीएमसी को डर है कि राहुल के साथ मंच साझा करने से बंगाल में उसका वोट बैंक प्रभावित हो सकता है, खासकर जब अगले साल वहां विधानसभा चुनाव होने हैं और पार्टी ने पहले ही अकेले लड़ने का ऐलान कर रखा है.

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SIR जैसे मुद्दों पर TMC गठबंधन का सहयोग चाहती है लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस के करीब आने से बच रही है. (Photo: PTI) SIR जैसे मुद्दों पर TMC गठबंधन का सहयोग चाहती है लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस के करीब आने से बच रही है. (Photo: PTI)

अनुपम मिश्रा

  • कोलकाता,
  • 01 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:03 PM IST

बिहार में राहुल गांधी की अगुवाई में चल रही वोटर अधिकार यात्रा में युसूफ पठान और ललितेश तिवारी को भेजने से कुछ दिनों पहले ही तृणमूल कांग्रेस ने संकेत दे दिया था कि ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी इस यात्रा में शामिल नहीं होंगे. राजनीतिक हलकों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस संसद में भले ही कांग्रेस के साथ मुद्दों पर आधारित समन्वय बनाए रखती हो, लेकिन इंडिया गठबंधन के भीतर उनकी स्थिति स्वतंत्र है. 

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टीएमसी यह बात पहले ही स्पष्ट कर चुकी है और इसीलिए माना जा रहा है कि ममता या अभिषेक ने राहुल की 'वोटर अधिकार यात्रा' में शामिल होने के बजाय प्रतिनिधि भेजकर कोऑर्डिनेशन बनाए रखने का रास्ता अपनाया है. जाते-जाते यूसुफ और ललितेश ने ऐलान कर दिया कि इंडिया गठबंधन केंद्र की सत्ताधारी सरकार की तमाम 'जनविरोधी' नीतियों के खिलाफ आंदोलन की राह पर साथ रहेगा.

बंगाल में अकेले चुनाव लड़ेगी TMC

दरअसल अगले साल बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसकी तैयारियां राजनीतिक पार्टियों ने शुरू कर दी है. ऐसे में एंटी इंकम्बेंसी से जूझ रही तृणमूल कांग्रेस के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.  इससे पहले साल की शुरुआत में ही ममता बनर्जी ने पार्टी विधायकों की बैठक में साफ कर दिया था कि पश्चिम बंगाल में उन्हें कांग्रेस की जरूरत नहीं है. वो अकेले ही चुनाव लड़ेंगी. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, CPM और BJP के साथ-साथ कांग्रेस को भी विरोधी पार्टी के तौर पर देखती है. 

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राहुल के साथ आने से हो सकता है नुकसान

कुछ साल पहले तक तृणमूल कांग्रेस के संबंध कांग्रेस के साथ बेहद खराब स्तर पर भी पहुंच गए थे लेकिन फिर इन संबंधों में थोड़ा सुधार हुआ लेकिन अभी भी दोनों ही पार्टियों के संबंध बेहद नाजुक हैं. ऐसे में अगर बिहार में ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी राहुल गांधी के साथ रैली में शामिल होते हैं तो इसका प्रभाव बंगाल के चुनाव पर पड़ सकता है. यही वजह है कि ममता बनर्जी ने इस रैली से दूरी बनाई लेकिन गठबंधन की मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए प्रतिनिधि भेजा.

लेकिन एसआईआर पर चाहिए गठबंधन का साथ

एसआईआर पर चल रही तनातनी के दौर में तृणमूल कांग्रेस का रवैया बेहद आक्रामक है और पार्टी ने एक बड़े आंदोलन का भी ऐलान कर दिया है. बंगाल में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू होते ही तनाव और चरम पर पहुंचेगा. ऐसे में टीएमसी बिहार की तर्ज पर इंडिया गठबंधन का सहयोग तो जरूर चाहेगी लेकिन राहुल गांधी से प्रत्यक्ष सहयोग बंगाल की राजनीति में टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है.

टीएमसी ने चुना बीच का रास्ता

साथ ही बिहार में भी राहुल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में वोट बैंक के नुकसान की भी आशंका है. वहीं टीएमसी और कांग्रेस दोनों के लिए बंगाल में बेहद असहज और असमंजस की स्थिति है. टीएमसी पर बीजेपी आरोप लगाती रही है कि केंद्र और केंद्रीय मुद्दों पर साझेदारी को लेकर बंगाल में लगातार परस्पर विरोध देखने को मिलता है. ऐसे में इन सब परिस्थितियों से बचने के लिए टीएमसी ने बीच का रास्ता चुना है. 

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इस मध्य मार्ग में टीएमसी इंडिया गठबंधन के साथ तो है लेकिन ये कोऑर्डिनेशन टीएमसी को इंडिया गठबंधन से स्वतंत्र भी दिखा रहा है. यही सब कारण हैं कि राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा में ना ही ममता शामिल हुईं और ना ही किसी बड़े टीएमसी नेता को भेजा.

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