पश्चिमी यूपी में मायावती की काट बन पाएंगे चंद्रशेखर? मुजफ्फरनगर से 'मिशन 2027' का आगाज

आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद संविधान दिवस पर मुजफ्फरनगर में रैली कर रहे हैं तो बसपा प्रमुख मायावती 6 दिसंबर को नोएडा में एक बड़ी जनसभा करने जा रही हैं. इस तरह 2027 विधानसभा चुनाव के लिए पश्चिमी यूपी नया रणक्षेत्र बनता जा रहा है.

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पश्चिमी यूपी में दलितों का दिल मायावती या चंद्रशेखर कौन जीतेगा (Photo-ITG) पश्चिमी यूपी में दलितों का दिल मायावती या चंद्रशेखर कौन जीतेगा (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:49 PM IST

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में हैं, लेकिन राजनीतिक बिसात अभी से ही बिछाई जाने लगी है. बसपा प्रमुख मायावती, संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस के दिन पश्चिमी यूपी के सियासी समीकरण साधने के लिए उतर रही हैं.

वहीं, दलित राजनीति के उभरते चेहरे और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद बुधवार को 'संविधान दिवस' पर मुजफ्फरनगर से मिशन-2027 का आगाज कर रहे हैं. 

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चंद्रशेखर आजाद मुजफ्फरनगर की रैली से 'संवैधानिक अधिकार बचाओ, भाईचारा बनाओ' का नारा बुलंद करके दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने का दांव चलेंगे. इस तरह चंद्रशेखर आजाद ने पश्चिमी यूपी में मायावती की राजनीतिक आधार को अपनाने की स्ट्रेटेजी बनाई है। देखना है कि पश्चिम यूपी की सियासत में कौन बेताज बादशाह बनता है?

चंद्रशेखर आजाद का मिशन-2027

संविधान दिवस के मौके पर आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में 'संवैधानिक अधिकार बचाओ और भाईचारा बनाओ' रैली कर रहे हैं. रैली में आए हुए लोगों को चंद्रशेखर संविधान की शपथ दिलाएंगे. इसके बाद आजाद समाज पार्टी के लोग यूपी के अलग-अलग हिस्सों में 'संवैधानिक अधिकार बचाओ और भाईचारा बनाओ' अभियान के जरिए 50 लाख लोगों को संविधान की शपथ दिलाएंगे.

मुजफ्फरनगर की रैली में चंद्रशेखर आजाद ने सहारनपुर, मेरठ और मुरादाबाद मंडल के कार्यकर्ताओं को बुलाया है. मुजफ्फरनगर रैली में भारी भीड़ जुटाने के लिए आजाद समाज पार्टी के नेताओं ने पिछले एक महीने से गांव-गांव चौपाल लगाई ताकि अपनी सियासी ताकत दिखा सकें. इस रैली को चंद्रशेखर का मिशन-2027 का आगाज माना जा रहा है.

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उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है और 2027 के विधानसभा चुनाव की भी बिसात बिछाई जा रही है. ऐसे में मुजफ्फरनगर की रैली से शक्ति–प्रदर्शन तक चंद्रशेखर आजाद पश्चिमी यूपी को सियासी संदेश देना चाहते हैं. इस रैली के बहाने दलित-मुस्लिम समुदाय का समीकरण बनाने की रणनीति है.

क्या मायावती की काट कर पाएंगे चंद्रशेखर?

बसपा प्रमुख मायावती हाल के दिनों में सियासी तौर पर काफी एक्टिव हुई हैं. कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में बड़ी रैली करने के बाद मायावती अब 6 दिसंबर को बाबा साहब डॉ. आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर नोएडा में बड़ी जनसभा करने जा रही हैं. माना जा रहा है कि मायावती नोएडा से पश्चिमी यूपी के सियासी समीकरण को दुरुस्त करना चाहती हैं.

मायावती के पश्चिमी यूपी के सियासी रण में उतरने से पहले चंद्रशेखर आजाद ने मुजफ्फरनगर से अपने अभियान का आगाज कर दिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि चंद्रशेखर, मायावती की सियासत की काट करना चाहते हैं. चंद्रशेखर सिर्फ भीड़ जुटाकर अपना शक्ति प्रदर्शन ही नहीं करना चाहते हैं बल्कि अपने सियासी समीकरण को भी दुरुस्त करने की रणनीति अपनाई है. इसके जरिए आजाद समाज पार्टी ये आकलन लेना चाहती है कि संगठन कहाँ खड़ा है और 2027 के विधानसभा चुनाव में उसकी जमीन कितनी मजबूत है.

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दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने का प्लान

मायावती का राजनीतिक आधार पश्चिमी यूपी में दलित और मुस्लिम वोटों के बीच रहा है, लेकिन धीरे-धीरे मुस्लिम वोट पूरी तरह से बसपा से खिसक गया और दलित वोटों का भी मोहभंग ही होता जा रहा है. 2024 के चुनाव में मायावती का दलित-मुस्लिम समीकरण पूरी तरह फेल रहा तो चंद्रशेखर आजाद इसी फॉर्मूले के सहारे नगीना लोकसभा सीट से जीतने में सफल रहे हैं.

चंद्रशेखर आजाद अब इसी दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे पश्चिमी यूपी की सियासत में किंगमेकर बनना चाहते हैं, जिसे जमीन पर उतरने के लिए मुजफ्फरनगर को चुना है. मुजफ्फरनगर में दलित-मुस्लिम समीकरण जीत की गारंटी माना जाता है. इसीलिए 'संवैधानिक अधिकार बचाओ और भाईचारा बनाओ' अभियान का आगाज करके वो पश्चिमी यूपी की सियासत में अपना लोहा मनवाना चाहते हैं.

कांशीराम के फॉर्मूले पर चंद्रशेखर आजाद

कांशीराम ने बसपा को जमीनी तौर पर खड़ा करने के लिए एक फॉर्मूला बनाया था, जिसे 'बहुजन' का नाम दिया था. दलित, अति पिछड़ा और मुसलमान ही बसपा के चुनावी समीकरण की धुरी रहे हैं. यूपी में दलित 22 फीसदी हैं और मुस्लिम 20 फीसदी हैं. ये दोनों वोट एक साथ आ जाते हैं तो फिर यह आंकड़ा 42 फीसदी हो जाता है और अति पिछड़ी जातियाँ जुड़ती हैं तो जीत की गारंटी बन जाते हैं.

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पश्चिमी यूपी के बिजनौर, सहारनपुर, आगरा, मेरठ, गाजियाबाद, अलीगढ़, फिरोजाबाद, मुरादाबाद जैसे जिलों में भी दलित मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है तो मुस्लिम वोटर्स भी निर्णायक हैं. इन जिलों में बसपा ने दलित-मुस्लिम केमिस्ट्री बनाकर चुनाव में उलटफेर किए हैं. 

अब चंद्रशेखर आजाद भी दलित-मुस्लिम समीकरण बनाना चाहते हैं. मायावती जिस जाटव समाज से आती हैं, उसी जाति से चंद्रशेखर भी हैं. इतना ही नहीं दोनों ही नेता पश्चिमी यूपी से हैं. दलित युवाओं के बीच चंद्रशेखर आजाद ने अपनी पकड़ मजबूत बनाई है, लेकिन क्या मुस्लिम वोटों को भी जोड़ पाएंगे?

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