सुबह प्रभार, शाम को बाहर... मायावती को महंगा पड़ेगा अपने गुस्से का 'नया शिकार'?

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव तैयारी में जुटी मायावती ने गुरुवार अपने करीबी नेता शमसुद्दीन राईन को सुबह तीन मंडल का प्रभार सौंपा और उसके कुछ घंटे के बाद ही पार्टी से बाहर कर दिया. ऐसे में सवाल उठता है कि मायावती को अपने गुस्सा का खामियाजा तो नहीं भुगतना पड़ेगा?

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मायावती ने अपने करीबी शमसुद्दीन राईन को निकाला (Photo-ITG) मायावती ने अपने करीबी शमसुद्दीन राईन को निकाला (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 24 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 4:17 PM IST

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती अपनी अलग राजनीतिक स्टाइल के लिए जानी जाती हैं। यह स्टाइल न सिर्फ़ उनके क़रीबी बल्कि कई बार उनके विरोधियों तक को हैरान करती है. मायावती की इस अलग स्टाइल का शिकार उनकी पार्टी के कई दिग्गज हो चुके हैं और इस फ़ेहरिस्त में नया नाम जुड़ा है शमसुद्दीन राईन का. 

बसपा प्रमुख ने 23 अक्तूबर की सुबह ख़ुद राईन को फ़ोन कर उन्हें लखनऊ, कानपुर और प्रयागराज मंडल जैसे अहम क्षेत्रों का प्रभारी बनने की सूचना दी थी. हैरानी की बात यह है कि माया के इस फ़ोन के कुछ घंटे बाद ही राईन की पार्टी से बर्ख़ास्तगी का लेटर जारी कर दिया गया. उन पर अनुशासनहीनता और पार्टी में गुटबाज़ी बढ़ाने का आरोप लगा.

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हालांकि, राईन कह रहे हैं कि उन पर यह कार्रवाई महज़ इसलिए हुई क्योंकि वह 'बहनजी' का एक कॉल नहीं उठा सके. लेकिन सवाल उठता है कि जो मायावती राईन को उन्हें मिली नई ज़िम्मेदारी के बारे में बता रही हैं, वही उन्हें कुछ घंटे बाद ही पार्टी से बाहर कैसे कर सकती हैं?

मायावती का फैसला किया हैरान

ग़ौरतलब है कि बसपा में मायावती ने कभी किसी नेता को ऐसी छूट नहीं दी कि वह पार्टी में मायावती के बाद अपने आप को दूसरा या तीसरा क़द्दावर चेहरा बता सके। ऐसे कई चेहरों को मायावती बिना किसी लाग-लपेट के सीधे बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। इनमें कई नाम तो ऐसे हैं जिन्हें पार्टी संगठन की रीढ़ कहा जाता था.

हालांकि, मायावती के इन क़दमों का बसपा को नुक़सान भी हुआ पार्टी 14 साल से यूपी की सत्ता से दूर है और इसकी एक वज़ह एक्सपर्ट मायावती की इसी राजनीतिक शैली को बताते हैं. 

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बसपा के लिए कितने अहम थे शमसुद्दीन

नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी के बसपा छोड़ने के बाद मायावती ने शमसुद्दीन राईन को आगे बढ़ाया और मुस्लिम चेहरे के तौर पर पेश करने का काम किया। पहले उन्हें पश्चिमी यूपी की ज़िम्मेदारी सौंपी और उसके बाद यूपी के अलग-अलग मंडलों की कमान देती रहीं. मायावती के क़रीबी नेताओं में उनकी गिनती होती थी.

16 अक्तूबर को बैठक में मायावती ने शमसुद्दीन राईन को लखनऊ, कानपुर और प्रयागराज मंडल की ज़िम्मेदारी सौंपने का फ़ैसला किया था. इस बात की जानकारी बसपा प्रमुख ने गुरुवार को शमसुद्दीन राईन को खुद दी थी. इसके दो घंटे के बाद बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने पार्टी से उनकी बर्ख़ास्तगी का लेटर जारी कर दिया. 

विश्वनाथ पाल ने कहा कि शमसुद्दीन को पार्टी से इसलिए निकाला गया है, क्योंकि उन्होंने अनुशासनहीनता की और पार्टी में गुटबाज़ी को बढ़ावा दिया है.

बसपा के चुनिंदा मुस्लिम चेहरों में एक थे

शमसुद्दीन राईन बसपा के चुनिंदा मुस्लिम नेताओं में से एक थे, जिन्हें मौजूदा समय में मायावती का क़रीबी माना जाता था। इसके अलावा मुनकाद अली और नौशाद अली पार्टी के मुस्लिम चेहरे हैं, लेकिन ये दोनों अशराफ़ (जनरल) मुस्लिम हैं, जबकि शमसुद्दीन राईन पसमांदा (ओबीसी) मुस्लिम समाज से आते हैं. मुस्लिमों की 80 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी पसमांदा मुस्लिमों की है। बसपा में शमसुद्दीन राईन पसमांदा मुस्लिमों की रहनुमाई कर रहे थे.

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शमसुद्दीन दो दशक से बसपा में हैं और पिछले 10 सालों से पार्टी के अहम पद पर रहकर काम कर रहे हैं. 2019 में बसपा का सबसे बेहतर प्रदर्शन शमसुद्दीन राईन के ज़िम्मे में रहे मंडल की सीटों पर रहा था. जहां चार सीट BSP जीती थी. इसके अलावा 2022 के उत्तराखंड चुनाव में शमसुद्दीन के नेतृत्व में BSP को दो सीट मिली थी. जबकि यूपी में सिर्फ एक सीट जीत सकी थी. बसपा के संगठन को धार देने से लेकर कैडर कैंप तक कराने के माहिर शमसुद्दीन माने जाते हैं.

 वह बसपा के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. 2027 के चुनावी लिहाज़ से बसपा के लिए शमसुद्दीन काफ़ी अहम थे, ख़ासकर पश्चिम यूपी के लिए, जहा पर मुस्लिम वोटर काफ़ी अहम है. दलित और मुस्लिम समीकरण पश्चिम यूपी में हिट माना जाता है. 

मायावती का फ़ोन न उठाने पर एक्शन?

बसपा से बर्ख़ास्तगी के बाद शमसुद्दीन राईन ने बताया कि वह अपने ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई से ख़ुद भी आश्चर्यचकित हैं। उन पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे सभी निराधार हैं। उन्होंने कहा कि शायद उन्हें बसपा से इसीलिए निकाला गया है कि वह 'बहनजी' का फ़ोन नहीं उठा सके.

शमसुद्दीन बताते हैं कि वह देर रात गाज़ियाबाद से लखनऊ लौटे थे और सुबह सात बजे मायावती ने उन्हें कानपुर और लखनऊ मंडल की ज़िम्मेदारी दी थी. इसके बाद उनकी तबीयत ठीक न होने की वजह से मोबाइल साइलेंट कर सो गए थे। इस दौरान 'बहनजी' के यहाँ से आने वाले फ़ोन को नहीं उठा सके। इसके 10 बजे के क़रीब मैंने वापस कॉल किया, तब तक वह मुझसे नाराज़ हो गई थीं। मुझे लगता है कि उसी कारण से एक्शन हुआ है.

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मायावती को अपना राजनीतिक गुरु बताते हुए शमसुद्दीन राईन कहते हैं कि बसपा में कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी।. मायावती ने ही उन्हें बूथ कार्यकर्ता से उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाक़ों का कोऑर्डिनेटर बनाने तक का काम किया, जो उनके लिए काफ़ी महत्वपूर्ण रहा.

 शमसुद्दीन कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि मायावती का गुस्सा शांत होने पर उन्हें दोबारा से बसपा में ले लिया जाएगा. वह जल्द ही बहनजी से मिलकर अपनी बात रखेंगे. 

बसपा का गिरता ग्राफ़ और 2027 का चुनाव

2007 का चुनाव मायावती के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुआ. उस साल बसपा ने 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. वोट शेयर क़रीब 30.43 फ़ीसदी तक पहुंच गया था. इस जीत की असली कुंजी मायावती की सोशल इंजीनियरिंग थी, जिसमें दलितों के साथ-साथ पिछड़ों और सवर्ण समुदाय को भी साधा गया. इसके बाद से बसपा लगातार कमज़ोर हुई है. 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से बसपा पर सवाल सिर्फ़ सत्ता से दूर होने का ही नहीं, बल्कि अस्तित्व का भी खड़ा हो गया है.

उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा चुनाव दर चुनाव कमज़ोर होती जा रही है, जिसके चलते मायावती के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं. पिछले कुछ वर्षों में पार्टी का वोट शेयर कम हुआ है, और कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। मायावती की जाटव समाज पर पकड़ अभी भी बरक़रार है, लेकिन ग़ैर-जाटव दलित भी उनसे छिटके हैं.

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ऐसे में सवाल खड़ा है कि क्या 2027 के विधानसभा चुनाव में वे अपने पारंपरिक दलित वोट बैंक और मुस्लिमों को एकजुट कर पाएँगी? ये सवाल इसलिए क्योंकि विपक्ष बसपा पर बीजेपी की बी-टीम होने के आरोप लगाता रहता है. इसके चलते मुस्लिम समुदाय मायावती से छिटका हुआ है. इसकी तस्दीक़ एक के बाद एक यूपी में हो रहे चुनाव नतीजे करते हैं. क्या राईन पर एक्शन इस खाई को और गहरा तो नहीं करेगा?

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